आखिर समाज बदल रहा है तो पहचान भी बदल रही है ,कल का भारत आज का न्यू इंडिया है तो फिर समाज के ठेकेदार क्यों उसी पुरानी पहचान में लिपटे रहें इन्हें भी बदलाव की दरकार है।अभी हैदराबाद में यह नया ऐलान भी हो गया जब आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पश्चिम बंगाल से प्रतिनिधि मौलाना अबु तालिब रहमानी ने कहा कि उलमा मज़हब के ठेकेदार नहीं हैं बल्कि चौकीदार हैं ।
चलिए हमें यह नया नामकरण मंज़ूर है और हमें इस पर कोई ऐतराज़ नहीं भले ही कांग्रेस चिल्लाती रहे कि चौकीदार चोर है मगर इससे क्या फर्क पड़ता है क्योंकि कांग्रेस कौनसी सत्ता में है उसे तो बीजेपी ने बेदखल किया हुआ है और जिसके पास सत्ता नहीं होती उसकी बात नहीं मानी जाती भले वह सच ही क्यो न हो।
बीजेपी सत्ता में है और प्रधानमंत्री ने मैं भी चौकीदार की मुहिम चला रखी है जो लोग भी कांग्रेस की विचारधारा से सहमत नहीं हैं वह बीजेपी के साथ खड़े होकर मै भी चौकीदार मुहिम में शामिल हो गए हैं ऐसे में मौलाना का यह ऐलान साफ बताता है कि वक़्त के साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कांग्रेस से दूरी बनाकर बीजेपी के करीब आने की मुहिम शुरू कर दी है।मौलाना अबुतालिब रहमानी का यह बयान इसे साबित भी करता है क्योंकि उनके इस बयान के बाद अभी तक बोर्ड ने उनके इस बयान से पल्ला नहीं झाड़ा है।
सिर्फ बोर्ड ही क्यों जैसी हवा में खबर तैर रही है कि जल्द ही मौलाना की ताजपोशी इमार- ए- शरिया बिहार के ट्रस्टी के तौर पर होने वाली है ऐसे में यह बयान बिहार के आने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हिमायत के लिए इमार – ए- शरिया की पेशबंदी के तौर पर भी देखा जा सकता है,।
मौलाना सूत्रों के अनुसार इस बयान को देने से पहले हैदराबाद में ओवैसी से मुलाक़ात कर अाए थे और बयान देने के बाद भी उन्होंने मुलाक़ात की है,एक तरफ मौलाना जिस कार्यक्रम में शामिल होने हैदरबाद आये थे वह ओवैसी को पसंद नहीं था इसीलिए तेलंगाना सरकार के प्रशासन ने उसकी अनुमति यह बहाना कर नहीं दी कि इससे कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है जबकि इस कार्यक्रम में देश भर से मुस्लिम बुद्धिजीवी ,वकील पत्रकार सहित मुस्लिम संसद सदस्य और अन्य धर्मों के सेक्युलर लोगों को शामिल होना था इसके आम जलसे में तमाम मुस्लिम धर्मगुरु भी शामिल हो रहे थे लेकिन इसकी दावत ओवैसी को नहीं दी गई थी।
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मौलाना अबुतालिब रहमानी ने कार्यक्रम के आयोजक मुश्ताक मलिक को यह सलाह भी दी कि अगर वह कार्यक्रम कि अध्यक्षता असदुद्दीन ओवैसी से करवा दे तो कार्यक्रम हो सकता है लेकिन कार्यक्रम के आयोजक इसके लिए तैयार नहीं हुए खैर यह बात तो आपको इसलिए बता दी कि आप अपने हमदर्दों कि सही से पहचान कर सकें और फैसला ले सकें कि आप आगे भी यह सिलसिला जारी रखना चाहते हैं या नहीं।
महमूद मदनी,अरशद मदनी तो बस वह नाम हैं जिनको ज़्यादा जाना जाता है जबकि एक लम्बी सूची है उन नामों की जो इस कारोबार के महारथी है जिसमें बिना किसी खर्च के बड़ी कमाई है,मेरी इस बात से आप बहुत ज़्यादा गुस्सा हो सकते हैं जैसे मौलाना को गुस्सा आया ,क्योंकि आप जिनके हाथों बिकते आए हैं उनके खिलाफ सुनना आपको बर्दाश्त नहीं है और यही हथियार है उन लोगों का को कौम को भेड़ बकरियों से भी बहुत कम कीमत पर बेचते आएं हैं।
मेरी यह बात आपको सीधा इल्ज़ाम लगा रही होगी मगर जैसे ही अतीत पर जमी धूल को साफ किया जाता है वैसे ही इल्ज़ाम सच साबित होता चला जाता है,बहुत छोटे छोटे फायदे के लिए हमारा सौदा हुआ है और हो रहा है यह बात और है कि अब हालात यहां तक आ गए हैं कि हमारी कीमत ही खतम हो गई है मगर फिर भी नमक के भाव तो हमें बेचा जा सकता है और उसके लिए कमर कस ली गई है।
वक्फ संपत्तियों की तबाही हो या सियासी सौदेबाजी इसके प्रमाण पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं लिहाज़ा या तो खुद को बचाने के उद्देश्य से हमें बेचा जाता है या फिर कुछ लालसा के चलते लेकिन नुक़सान सिर्फ हमारा और आपका है ।
यही वजह है कि अभी हाल ही में मुसलमानों से अपील की गई कि वह एन आर सी का बहिष्कार करें जिसका सीधा फायदा जहां बीजेपी आरएसएस को होगा वहीं नुक़सान सिर्फ हमारा और आपका होना है ,जैसे ही मुसलमान एन आर सी का बहिष्कार करेंगे देश में संदेश जायेगा कि मुसलमान भारत के कानून को नहीं मानते इनका भारत के संविधान पर न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है ,पहले से ही यह माहौल बनाया जा रहा है कि मुसलमान गद्दार हैं और देश से प्रेम नहीं करते हैं हालांकि यह एक सफेद झूठ से बढ़कर कुछ नहीं है ,एक तरफ तो मुसलमानों के खिलाफ नफरत बढ़ेगी दूसरी तरफ़ मुसलमान एन आर सी का विरोध कर अपने पास मौजूद दस्तावेजी सबूत होते हुए भी अपने ही देश में शरणार्थी जैसी स्थिति में आ जाएगा ऐसे में भी अभी अभी बने चौकीदार ही फायदे में रहेंगे और भोले भाले मुसलमान इस बेवकूफी भरे फैसले में पिस जायेंगे।
आखिर ऐसा कौन सा व्यापार करते हैं यह ठेकेदार से चौकीदार बने लोग इस पर विचार की जरूरत है कि इनके व्यापार में इन्हें कोई नुक्सान नहीं होता और दिन प्रतिदिन इनकी सुख सुविधाएं बढ़ती जाती हैं ।चुनाव के करीब नई चमचमाती गाड़ियों की खेप कैसे आती है ?मेरा यह सिर्फ सवाल है कोई आरोप नहीं अगर इसबात का किसी को बुरा लगता है तो इसका जवाब देना ज़रूरी है ।
कश्मीर का मुद्दा हो ,बाबरी मस्जिद प्रकरण हो इससे जुड़े लोग अचानक अमीर कैसे हो जाते हैं यह विचार के विषय हैं, मौलाना अबुतालिब रहमानी का यह बयान बहुत कुछ कहता है और इसके बहुत मायने निकलते हैं अगर इस बहस पर विराम लगाना है तो आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसका खुलासा करे ।सिर्फ इतना ही नहीं मौलाना को खुद बताना होगा कि स्मारिका में छपे लेख में धार्मिक ठेकेदारों का ज़िक्र था उनका नहीं तो फिर उन्हें इतना अधिक बुरा क्यों लगा ?
सूत्रों के अनुसार रहमानी ममता दीदी से विधानसभा के लिए टिकट मांग रहे हैं उधर बोर्ड ऊहापोह में है कि वह कौन सा पैतरा खेले कि उसकी साख भी समाज में बहाल हो जाये और सत्ता से उसकी जो दूरी बढ़ी है वह भी कम हो और पहले की तरह वह बेमौसम बरसात की तरह मुद्दों को उठाए और सिर्फ कुछ लोगों को फायदा पहुंचा कर गहरी नींद में सो जाए।
अभी तक ऐसा ही होता आया है और भोली भाली आवाम बेचारी भेड़ बकरियों की रेवड़ की तरह बिकती रही कभी अचानक शरीयत बचाने की मुहिम चलती है कभी कॉमन सिविल कोड पर हंगामा नतीजा वही ढाक के तीन पात आपकी भूक ,बेरोजगारी ,गरीबी से इन्हें कोई मतलब नहीं है यही वजह है कि आजतक ज़कात को लेकर कोई मुहिम इनके द्वारा नहीं चलायी गई कि उसे हकदारों तक पहुंचाना ज़रूरी है बल्कि मदरसों की रसीदें गरीब यतीम बेवा मिस्कीन के हक पर डाकू के हाथ का हथियार बनी हुई हैं आजतक इसके खिलाफ किसी दारूलउलूम या किसी नामनिहाद कौमी तंजीम ने आवाज़ नहीं उठाई।
जन्नत को 100-100 रुपए में बेचने का खेल खेला जा रहा है और मज़े उड़ाए जा रहे हैं आखिर यह लोग अब चौकीदार बने हैं अब देखिए क्या क्या होता है ठेकेदारी आप देख चुके हैं चौकीदारी देखिए वैसे चौकीदार का आपका अनुभव कैसा रहा है मुझे भी बताइएगा ।
यूनुस मोहानी
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