यह बात तो हमेशा होती आई है कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता आतंकी मात्र दरिंदे होते हैं लेकिन यह बात सिर्फ कही जाती रही है और इस सच पर किसी ने कभी यकीन नहीं किया यह इससे बड़ा सच है। पूरी दुनिया ने जब तालिबान के कारनामे देखे तो उन्हें इस्लामी आतंकवाद का चेहरा कहा दाइश की बर्बरता हो या बोको हरम की मानवता को शर्मसार करने वाली हरकते इन सबको इस्लामिक आतंकवाद कहा गया ।
हालांकि इस्लाम में आतंकवाद की कोई गुंजाइश नहीं है और आतंकियों का इस्लाम से कोई रिश्ता भी नहीं लेकिन सवाल बड़ा ज़हरीला निकला कि हर आतंकी मुसलमान क्यों होता है ? इस सवाल ने एक पूरे समाज को कटघरे में खड़ा कर दिया और लोगों के दिल में नफरतों का अंबार इस समाज के लिए लगा दिया यह एक पक्ष है जिससे सभी भलीभांति परिचित हैं लेकिन अब हालात बदल रहे हैं और भारत में घर वापसी की मुहिम तेजी से चल रही है इसका व्यापक पैमाने पर असर भी दिखने लगा है।
इस्लामिक आतंकवाद ने सीधे तौर पर सबसे अधिक मुसलमानों को ही अपना शिकार बनाया ,धार्मिक कट्टरपंथ के समर्थकों ने सीधे तौर पर जहां शांति और भाईचारे का संदेश देने वाले धर्म को आतंक की परछाई में छुपाने का प्रयास किया वहीं सबसे अधिक मुसलमानों को ही मारा,अफगानिस्तान ,सीरिया ,पाकिस्तान आदि देशों की तबाही का जिम्मेदार यह धार्मिक आतंकवाद ही बना और आज भी यह त्रासदी जारी है वहीं जब श्रीलंका और म्यांमार जैसे देशों में बौद्ध धर्म के अनुयाई इस विचार से ग्रसित हुए तो श्रीलंका की तबाही सबने देखी और म्यांमार की स्तिथियां भी कुछ ठीक नहीं है।
अब भारत में बहुसंख्यक वर्ग में यह बीमारी तेज़ी से अपने पांव पसार रही है ,धर्म के नाम पर मानवता की हत्या को नैतिकता और न्याय का चोला पहनाया जा रहा है, कहीं भी किसी भी स्थान पर निहत्थे बेगुनाह लोगों को मात्र इसलिए भीड़ द्वारा पकड़कर मार दिया जा रहा है उनकी लाशों को गाड़ी सहित आग के हवाले किया जा रहा है क्योंकि वह किसी अन्य विचार को या धर्म को मानने वाले हैं, और जब हत्यारे पकड़े जाते हैं तो उनके समर्थन में रैलियां निकलती हैं और उन्हें धर्म रक्षक की उपाधि से नवाज़ा जा रहा है।
देश में मात्र अपने धर्म मात्र का प्रभुत्व स्थापित करने के उद्देश्य से खेला जा रहा यह घिनौना खेल अब इतना आगे बढ़ गया है कि सत्ता पर आसीन लोग चाह कर भी इसे रोकने का प्रयास नहीं कर सकते क्योंकि इसके बाद उनका विरोध तय है, हाईस्कूल में पढ़ने वाले बच्चे तक इस पूरे धार्मिक आतंकवाद के कारखाने में प्रशिक्षित हो रहे हैं और नफरत की आग से अपने भविष्य को ही भस्म करने की प्रतिज्ञा ले रहे हैं।
युवा बेरोजगारी के कारण पनपे अवसाद को दूर करने के उद्देश्य मात्र से या तो नशे के दलदल में फंस रहे हैं या कथित धर्म रक्षा के नाम पर आतंकवाद की ओर कदम बढ़ा रहे हैं ,क्योंकि धर्म का नाम लेकर किए गए अपराध को आतंकवाद के सिवा कुछ नहीं कहा जा सकता इसलिए इस शब्द का चयन एक विवशता से परे कुछ भी नहीं है।
देश में लगातार कभी हिजाब के नाम पर ,कभी खान पान के नाम पर कभी धार्मिक आयोजनों के नाम पर जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं और उसपर जिस तरह राजनैतिक दल घिनौनी राजनीति कर रहे हैं उसने देश को एक बड़े खतरे की तरफ धकेल दिया है । धर्म के आधार पर अपराध और अपराधी पर प्रतिक्रिया कर रहा है समाज जिसने युवाओं को और अधिक तेज़ी से अपनी ओर आकर्षित किया है, चंद जहरीले नफरती बयान देकर लोग सत्ता की सीढ़ियां चढ़ रहे हैं और उनकी तथाकथित कामयाबी देखकर दिग्भ्रमित युवाओं की टोली उनके अनुसरण से स्वयं को रोक नहीं पा रही है।
इस सबके पीछे राजनैतिक संरक्षण सबसे बड़ी वजह है जिस कारण समाज एक अंजाने भय में जीने को मजबूर है, हाल ही में जिस तरह प्रयागराज में अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ को नेशनल मीडिया के कैमरे पर पुलिस की मौजूदगी में एक धार्मिक नारे के उद्घोष के साथ मारा गया उसने अफगानिस्तान और सीरिया में तालिबानी या दाईश आतंकियों की याद दिला दी ,यह सिलसिला यहीं नहीं रुका जो सबसे अधिक चिंता वाली बात है ,लोगों ने इस पूरे घटनाक्रम पर जब प्रतिक्रिया दी तो धार्मिक नारे के उद्घोष को सही ठहरा दिया ।
रही सही कसर देश की जिम्मेदार न्यूज मीडिया ने पूरी कर दी इस हत्याकांड के फौरन बाद एक खबरिया चैनल एक सर्वे लेकर आ गया कि सत्ता पक्ष को उत्तर प्रदेश में हो रहे निकाय चुनाव में इस हत्याकांड से लाभ होगा या हानि,और इस पर दिखाए गाय आंकड़ों ने यह सिद्ध कर दिया कि नफरत का पैमाना लबरेज़ हो चुका है,आज जिस तरह इस हत्याकांड के आरोपियों की पेशी के दौरान कोर्ट परिसर में उसी धार्मिक नारे का उद्घोष किया गया उसने इस बात को और अधिक मज़बूती से स्थापित कर दिया कि हत्यारों को समर्थन हासिल है।
इस घटना ने स्पष्ट तौर पर आतंक की घरवापसी की ओर इशारा किया है और अत्यधिक सहिष्णु सनातन धर्म ,भारतीय संस्कृति,सौहार्द्य आदि को धार्मिक प्रभुत्व की भावना से पनपे आतंकवाद ने आच्छादित कर लिया है , या इसे यूं भी कहा जा सकता है कि आतंक ने धर्म परिवर्तन कर लिया है ?
आतंक के नए रंग से नुकसान भी सबसे अधिक उसी समाज को होना है जिसका चोला इस अवसाद ग्रस्त टोली ने ओढ़ा है क्योंकि अभी तक यही देखा गया है ,देश में इस आतंकवाद से जिस तरह का खतरा पनप रहा है वह जहां आइडिया ऑफ इंडिया के विरुद्ध है और उसे समाप्त करने वाला भारत के विकास के अवरोधक है।
अब जिम्मेदारी आपकी है आप इस आतंक के समर्थक हैं या विरोधी इसे तय करने की वरना किसी को जय श्रीराम के नारे से कोई आपत्ति नहीं है,भले ही यह किसी की हत्या करते समय लगाया जाये, आप अपने बच्चों को भी धर्म रक्षक के रूप में आगे कर सकते हैं।