आप मेरे इस सवाल से हैरान क्यों हो गए ? आप सोच रहे होंगे कि कांग्रेस लगातार अडानी को मुद्दा बना कर लड़ रही है इसके चलते लगातार आंदोलन कर रही है,काले कपड़े पहन कर प्रदर्शन कर रही है ,आखिर फिर कांग्रेस अडानी को कैसे बचा सकती है यह एक बेतुकी बात है।
लेकिन मैं यदि आपकी बात को काट कर कहूं नही कांग्रेस अडानी के लिए ढाल बन गई है तो आप नाराज़ हो जायेंगे लेकिन अभी जिस तरह का व्यवहार कांग्रेस कर रही है उससे सीधे तौर पर यह बात साबित हो रही है क्योंकि जिस तरह संसद के भीतर राहुल गांधी ने अडानी मुद्दे पर सरकार को घेरा उसके बाद उनके भाषण को म्यूट किया गया यहां तक कि भाषण के वह हिस्से जिसमें अडानी का नाम लिया गया था संसद की कार्यवाही से हटा दिए गए सरकार डरी हुई थी ।
जेपीसी की मांग तेजी से उठ रही थी और जन सामान्य में एक विचार बन रहा था कि कहीं न कहीं कुछ घोटाला जरूर है सरकार भाग रही है तभी राहुल गांधी विदेश में एक भाषण देते हैं हालांकि उस भाषण में कुछ भी गलत नही था उन्होंने देश के आंतरिक मामले में किसी गैर मुल्क को दखल देने की अपील नहीं की लेकिन बीजेपी उसे मुद्दा बना देती है और राहुल से माफी मांगने की मांग उठा देती है राहुल बड़ी चालाकी से फिर गेंद सरकार के पाले में डाल देते हैं यह कहकर कि मैं एक सांसद हूं इसलिए मैं इस विषय पर अपनी बात संसद के पटल पर रखूंगा।
चूंकि सरकार जानती थी कि राहुल अगर संसद में बोले तो फिर अडानी का मुद्दा जरूर उठेगा और अडानी को भारी नुकसान होगा लिहाज़ा संसद में राहुल न बोलें इसकी व्यवस्था की गई उसके बाद एक अदालत का फैसला आता है और फिर राहुल की सदस्यता चली जाती है एक तरह से सरकार के सर से अंदर आने वाला तूफान छट जाता है और यहीं से कहानी बदलने लगती है।
राहुल की सदस्यता जाने के बाद आंदोलन का केंद्र बिंदु अडानी से हट कर राहुल हो जाते हैं और यहीं से गलती शुरू हो जाती है पूरी कांग्रेस राहुल का विक्टिम कार्ड लेकर बैठ जाती है हर जगह प्रदर्शन शुरू होते हैं उन प्रदर्शनों में भी अडानी नहीं राहुल मुद्दा होते हैं ,और यहीं से बीजेपी और आरएसएस को मौका मिल जाता है वह जनता के बीच इस सवाल को लेकर पहुंच जाते हैं कि यदि राहुल को अदालत ने सजा दी तो इसमें सरकार की क्या भूमिका और जवाब बीजेपी के पक्ष में मिलता है कि बिलकुल सही बात है कि अगर आप फैसले से सहमत नहीं हैं तो ऊपरी अदालत में अपील कीजिए आखिर इसमें सरकार का क्या मतलब साधारण मस्तिष्क में यह बात सीधे आ गई क्योंकि भारत का मानस ऐसा है जिसे या तो कांग्रेस समझ नहीं पा रही या बीजेपी की समझ इनसे बेहतर है।
खैर इस पूरे घटनाक्रम में अडानी बिलकुल नदराद रहते हैं कभी कभार उनका नाम आ भी रहा है तो जनता तक बात नहीं पहुंच रही है और विपक्ष पूरा राहुल की सदस्यता समाप्ति को लेकर लामबंद नज़र आ रहा है जबकि बीजेपी कहीं न कहीं राहुल से नरेंद्र मोदी की तुलना चाहती भी है क्योंकि उनके लिए राहुल को कमतर साबित करना अपने प्रचार तंत्र के माध्यम से अधिक आसान है और उन्होंने लोगों को इस तुलना पर लगा दिया।
जबकि लोगों के बीच चर्चा होनी थी अडानी की जिसे बड़ी चालाकी से बिसरा दिया गया इस बीच अडानी के पतन का सिलसिला थमा और वह स्थिरता की तरफ बढ़ चले यह सब इतनी चालाकी से हुआ कि राजनैतिक पंडित भी इस विश्लेषण से दूर ही नज़र आये सब राहुल गांधी,कांग्रेस,विपक्ष और नरेंद्र मोदी में ही उलझे रहे और सबसे प्रमुख सवाल इस शोर की ओट में छुप गया,जबकि राहुल की सज़ा का मुद्दा हो या सदस्यता समाप्ति का मुद्दा अगर कांग्रेस इस पर और अधिक जोर से लड़ती है तो सीधे तौर पर बीजेपी बाजी मार लेगी क्योंकि उनके पास तर्क है कि राहुल जिस संविधान की दुहाई दे रहे हैं वह उसका अपमान कर रहे हैं,और भारत की भोली भाली जनता को यह समझा लेना इतना मुश्किल नहीं है ।
जबकि यदि राहुल अपनी सदस्यता का मामला हो, सज़ा का मामला हो या घर खाली कराने की बात हो इसे दूसरे तरीके से लड़ते हुए सीधे सड़क को अपना घर बना कर पूरे देश में वीपी सिंह और अभी हाल फिलहाल के केजरीवाल की परपाटी पर चलते हुए सिर्फ अडानी मुद्दे को उठा लेते तो लोगों के बीच सवाल नहीं मरता ।कांग्रेस की हर राज्य के हर जिला मुख्यालय पर प्रेस मात्र अडानी मुद्दे पर नहीं हुई क्यों ?कांग्रेस शासित राज्यों में या जहां उनके सहयोगी दलों की सरकार हैं वहां तहसील स्तर तक अडानी के मुद्दे पर धरना प्रदर्शन और प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन क्यों नहीं हुआ ? जिस तरह राहुल की सदस्यता जाने के मुद्दे पर सत्याग्रह हुआ अडानी के मुद्दे पर क्यों नहीं ? राहुल स्वयं नेता के रूप में स्वीकार होंगे जब आप व्यक्ति नहीं मुद्दे पर एकत्रित होंगे लेकिन ऐसा न करके पूरी लड़ाई का रुख मोड़ कर कांग्रेस ने साफ संकेत दिए हैं कि वह अडानी को बचा रही है?
अभी तक जनता के बीच अडानी के मुद्दे को ले जाने का कोई कार्यक्रम कांग्रेस नहीं बना सकी जबकि न नेताओं की कमी है न संसाधनों की क्यों ?आखिर इतना समय गुज़र गया इतने सुबूत होने के बावजूद इस प्रश्न को जनता की अदालत में लेकर कांग्रेस क्यों नहीं पहुंची ?उसकी वजह छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अडानी का सत्कार और निवेश तो नहीं या और कोई वजह है ? सवाल बड़ा है अगर उत्तर ढूंढने में देरी हुई तो अडानी बचेंगे कांग्रेस लड़ती रहेगी।