आज सूरत सेशन कोर्ट में राहुल गांधी अपनी सज़ा के खिलाफ अपील के लिए प्रस्तुत हुए खैर यह कानूनी लड़ाई है जिसे उसी तरह से लड़ा जायेगा लेकिन जिस तरह का दिल्ली से सूरत तक का सफर रहा उसने हर किलोमीटर पर कांग्रेस के मुद्दे की हवा निकाल दी यह कहना गलत नहीं होगा।
एक तरफ कांग्रेस जोकि अडानी मुद्दे पर लड़ रही थी अचानक उसने राहुल को मुद्दा बना लिया ,जिस प्रश्न से सत्ता विचलित थी कांग्रेस ने स्वयं ही उससे अपने पैर पीछे खींच लिए और बीजेपी को कंफर्ट ज़ोन में ला खड़ा किया जहां न सिर्फ उसे राहत दी बल्कि उसके हाथ में एक और मुद्दा थमा दिया।
भारत जोड़ो यात्रा के बाद राहुल की जो छवि जनता के मस्तिष्क में बन रही थी आज की घटना ने उसे भी काफी नुकसान पहुंचाया ,क्योंकि राहुल के सामने जो नेता हैं उन्हें मनोविज्ञान की अच्छी समझ है डिग्री है या नहीं लेकिन भारतीय राजनीत का व्यवहारिक ज्ञान वर्तमान समय में नरेंद्र मोदी के पास बखूबी है ,एक तरफ राहुल गांधी खुद को देश के लिए लड़ता हुआ दिखाना चाहते हैं दूसरी तरफ पूरी कांग्रेस सिर्फ उनको बचाने के लिए लड़ती साफ दिखती है ,यह विरोधाभास सीधे तौर पर इशारा करता है कि कांग्रेस में ही कांग्रेस के दुश्मन भी हैं जो शायद उसकी सुपारी ले चुके हैं।
एक तरफ प्रधानमंत्री अपनी मां के देहांत पर जिस सादगी का प्रदर्शन करते हैं वह दिखावा है या टीआरपी का खेल यह अलग बहस है लेकिन भारतीय मानस पर वह छाप छोड़ते हैं वहीं राहुल गांधी का लाव लश्कर साफ बताता है कि राजनैतिक अपरिपक्वता का इससे बड़ा प्रदर्शन मुमकिन नहीं है।
कांग्रेस की इस गलती ने उसे बगले झांकने पर मजबूर किया है ,उसके पास जवाब नहीं है कि वह कह सके कि इतने ताम झॉम की जरूरत क्या थी ?आखिर कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्री अपना काम छोड़ वहां क्या कर रहे थे ? जब देश में राजनैतिक बिसात बिछ चुकी है तो अपना गढ़ छोड़ने की गलती क्यों ? प्रियंका गांधी का राहुल के साथ होना बुरा नहीं है बहन का भाई के साथ खड़ा होना दोनो की आपसी केमिस्ट्री को दुनिया को दिखाने के लिए भी ठीक है व्यवहारिक रूप से भी लेकिन पूरी कांग्रेस का दिल्ली से सीधे गुजरात पलायन चौकाने वाला था।
जबकि बात यह चल रही थी कि राहुल इस पूरे मामले को खींचेंगे और जेल जाकर इस मामले को तूल देंगे लेकिन आज इन सब संभावनाओं पर पानी फिर गया ,राहुल ने लोगों की साहनभूति खोई और बीजेपी अपना विचार लोगों तक बेहतर तरीके से पहुंचाने में एक बार फिर कामयाब हुई।
यदि आज राहुल बिलकुल एक आम नागरिक की तरह कोर्ट में पेश होते बिना किसी शोरशराबे के और वकीलों के बीच कलेक्ट्रेट में ही बैठते तो कांग्रेस आज मजबूती से अपनी बात रख पाती कोर्ट अगर उन्हें जेल भी भेजती तो जिस तरह का माहौल बनता उससे बीजेपी बैकफुट पर होती लेकिन कांग्रेस की भव शोभा यात्रा ने कांग्रेस से मौका फिर छीन लिया।
अडानी मुद्दा जो 2024 के लिए ट्रिगर बन सकता था उसकी हवा निकालते हुए खुद कांग्रेस अपनी पीट थपथपा कर वापिस दिल्ली पहुंच गई है और जवाब ढूंढ रही है कि यह पलटन वहां क्या करने गए थी? कहीं कांग्रेस का वध करने का कोई इरादा तो नहीं भाई यह सवाल बड़ा है??????