यह सवाल मैं पूछ रहा हूँ आपसे क्या आप ईमानदारी से जवाब देने को तैयार हैं ?मैं खूब चीख चीख कर वन्दे मातरम गाता हूँ मुझे इससे कोई ऐतराज़ नहीं है मैं एक भारतीय मुसलमान हूँ ,भारत मेरा मुल्क़ है, मेरी पहचान है मेरे देश से मेरी सरज़मीन से तो मुझे अपनी ज़मीन को सलाम करने में कोई आपत्ति नहीं है ।
हालाँकि कुछ सिरफिरे लोग इसे मुद्दा बना सकते हैं कि वन्दे मातरम इस्लाम के खिलाफ है तो मैं उनसे पूछना चाहता हूँ कि वन्दे मातरम कि रचना पहले हुई या आनंदमठ में इसे देवी स्तुति के लिए पहले इस्तेमाल किया गया इसके लिए हमे वापिस इतिहास को देखना होगा बणक्किम चंद्र चटर्जी ने इसे 1870 में लिखा जिसमे सिर्फ मुल्क़ कि तारीफ है इसके पहाड़ों कि नदियों कि झरनो कि इससे आपको या हमको कोई तकलीफ नहीं।
1881 में बंकिम चंद्र चटर्जी ने उपन्यास लिखा आनंदमठ उसमे उन्होंने इस गीत को शामिल कर लिया यहीं से विवाद को हवा मिली क्योंकि वन्दे मातरम गीत के शुरू के 2 पद ही राष्ट्रीय गीत के रूप में अंगीकृत किये गए हैं जिनमे सिर्फ मादरे वतन कि तारीफ और उसको सलाम किया गया है जबकि बाक़ी के पद देवी दुर्गा जोकि हिन्दू धर्म में पूजी जाती हैं उनकी आस्था का विषय है उसे नहीं लिया गया यह हमारे लोकतंत्र कि ख़ूबसूरती ही है कि इस बात का पूरा ख्याल रखा गया कि किसी की धार्मिक भावनाएं न आहत हों।
लेकिन वन्दे मातरम को लेकर फिर भी विवाद खड़ा किया गया इस गीत का सबसे पहले विरोध मोहम्मद अली जिन्नाह ने किया जी हाँ पकिस्तान के क़ायदे आज़म लेकिन कहीं यह बात नहीं मिलती की उस वक़्त किसी बड़े आलिम ने इस पर फतवा दिया हो
हालाँकि बंकिम चंद्र चटर्जी का उपन्यास आनंदमठ ब्रिटश उपनिवेशवाद की प्रशंसा से भरा है जो शर्म का विषय भी है ब्रिटिशर के लिए यह प्यार आनदमठ में साफ़ झलकता है वह साफ़ कहता है की अंग्रेज़ हमारे दुश्मन नहीं हैं यह हमारे दोस्त हैं हमे इनके प्रति दुश्मनी और युद्ध की भावना छोढ़ देनी चाहिए खैर यह विषय नहीं है कि इस बात को बिलावजह किया जाये उस समय बहुत बड़े बड़े मुस्लिम उलेमा और मशाइख भी आज़ादी के आंदोलन में बराबर से लड़ रहे थे लेकिन उन्होंने वन्दे मातरम का विरोध नहीं किया न ही इसे इस्लाम विरूद्ध बताया न ही इसे गाने को लेकर कोई आपत्ति जताई यहाँ तक कि मौलाना हुसैन अहमद मदनी ,जो कि महमूद मदनी साहब के वालिद हैं ने भी खूब वन्दे मातरम गाया उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई ।
आखिर अब वन्दे मातरम में ऐसा क्या हो गया कि अचानक उसे गाने के लिए लोग या तो ज़बरदस्ती कर रहे हैं या न गाने कि ज़िद्द जबकि यह दोनों ही गलत है।वन्दे मातरम मेरे देश का राष्ट्रीय गीत है और मैं अपनी मादरे वतन को 100 -100 बार सलाम करता हूँ एक मुसलमान होने के नाते हम इस ज़मीन पर अपने रब का सजदा 5 वक़्त में 96 बार करते हैं।यहाँ एक बात और बताना ज़रूरी है वन्दे मातरम का तर्जुमा आरिफ मोहम्मद खान साहब ने किया उर्दू में उसे इस नज़रिये से देखना बिलकुल हिमाकत होगी कि वह बीजेपी के कार्यकर्ता हैं यहीं एक बात और जान लीजिये कि वन्दे मातरम का विरोध करने वाले थे हसन इमाम साहब जो मुस्लिम लीग के प्रेजिडेंट थे और एक शिया मुस्लिम थे यह जानकारी मुख्तार अब्बास नक़वी साहब के लिए ज़रूरी है।
हालाँकि वह इस बात से बखूबी वाक़िफ़ भी होंगे खैर मौलाना मोहम्मद अली जौहर मौलाना हसरत मोहानी सरीखे लोगों ने वन्दे मातरम का कोई विरोध नहीं किया और उसे गाया भी।
तो फिर हमे अपनी मादरे वतन को सलाम कहने में क्या दिक्कत है उसकी ख़ूबसूरती कि तारीफ में क्या परेशानी है मुल्क़ से मोहब्बत आधा ईमान है यही तो नबी का फरमान है तो हम क्यों खुद को परेशानी में डाल रहे हैं जो दूसरे कहते हैं हम वही करने पर क्यों आमादा हैं ?यह गौर करने का विषय है आखिर वन्देमातरम को राष्ट्रगीत के तौर पर गाना ही तो है मैं तैयार हूँ क्या अब मैं देशभक्त हूँ ?
भारत माता कि जय यह वह विषय है जिस पर राजनीत की जाती है आखिर इसमें ऐसा क्या है ?भारत हमारा मुल्क़ है हम उर्दू में जिसे मादरे वतन कहते हैं जय हिन्द कहते हैं अगर उसे खिराज पेश करते हैं तो आखिर कौन सा पहाड़ टूट जाता है, वह कौन सा मज़हब है जो हमे हमारे मुल्क़ को ज़िंदाबाद कहने से रोकता है ?भारत यानि हमारा मुल्क माता यानि मुल्क़ कि सरज़मीन जिस पर हम पलते हैं वह माँ कि गोद की ही तरह है जिसपर जो अनाज उगता है जिससे हम पेट भरते हैं इसपर जो तालाब हैं नदियां हैं झरने हैं जिससे हम पानी पीते हैं वह माँ की तरह ही तो है और जय यानि ज़िंदाबाद तो फिर इसमें कहाँ इस्लाम हमे रोकता है हमे हमारे बनावटी रहनुमा रोकते हैं हमे रोकने वाले सियासतदां हैं मज़हब नहीं ,
भारत माता की जय कहना शिर्क नहीं है हालाँकि दारुलउलूम देवबंद ने कह दिया की यह मुसलमान नहीं कह सकते इसके पीछे दलील यह दी गयी है क्योंकि हिन्दू मत को मानने वाले भारत माता को भारत की केयरटेकर देवी मानते हैं और उसको पूजते हैं लिहाज़ा मुसलमान इसे नहीं कह सकता क्योंकि हम तौहीद के मानने वाले हैं और हम किसी और की पूजा नहीं कर सकते ‘ बिलकुल सही बात मुसलमान किसी गैर की इबादत नहीं कर सकता सिवा अल्लाह के लेकिन यह कैसे तय होगा की क्या इबादत है ?ईसाई लोग हज़रत ईसा रूहुल्लाह को अल्लाह का बेटा मानते हैं और उनकी पूजा भी करते हैं जबकि हम उन्हें अल्लाह का पैगम्बर मानते हैं तो क्या हम इस लिए उनका एहतराम करना छोड़ दें क्योंकि ईसाई लोग उन्हें अल्लाह का बेटा मानते हैं जो इस्लाम के तौहीद के नज़रिये से शिर्क है ?सवाल तो यही है कोई दूसरा क्या मानता है क्या इस पर तय होगा की क्या शिर्क है और क्या नहीं ? आखिर तौहीद क्या है ?यह सवाल बहुत बड़ा है क्या किसी के कुछ सोचने से या समझने से हमारे नज़रिये तौहीद पर ज़र्ब लग जाती है ?यह सवाल उन उलेमा से है जो इस्लाम की तालीमात से बाख़बर है और जो क़ुरआन जानते हैं जो क़ुरआन कहता है कि अल्लाह वह है जो वहमों गुमान के हद में भी न आ सके यानि जो शय महदूद नहीं वही हमारा रब है तो भारत माता कैसे हमारे नज़रिये तौहीद पर ज़र्ब लगाती है ?
मैं कोई फैसला नहीं सुना रहा मैं सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि तमाम मुसलमानो के लिए यह सवाल कर रहा हूँ ताकि हम सब सही बात जान सके।
भारत माता की जय कहने से मेरा नज़रिये तौहीद बिलकुल भी प्रभावित नहीं होता क्योंकि मेरे इस्लाम पर इस बात का कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि दूसरा उस चीज़ को किस तरह मानता है। क्योंकि मेरा रब वह है जो सूरए तौहीद बताती है और जो क़ुरआन में साफ़ एलान मिलता है और हाँ मैं आज तक अपने किसी हिन्दू हमवतन भाई से नहीं मिला जो यह कहता हो कि हम भारत माता को कोई ऐसी देवी मान कर पूजते हैं ,वह भारत भूमि को ही मादरे वतन को ही भारत माता कहते हैं तो फिर यह फतवा देने वाले लोगों को कैसे पता चला कि यह एक देवी हैं जिसकी पूजा होती है ?यह ज़रूर सोचिये !
मैं कह रहा हूँ भारत माता कि जय क्योंकि मुझे अपने मुल्क़ को ज़िंदाबाद कहने में गर्व महसूस होता है मैं कहता हूँ जय हिन्द मेरा नारा है हिन्दोस्तान ज़िंदाबाद मैं भारत मात कि जय इसलिए नहीं कहता कि इससे आप खुश होते हैं या कोई संगठन खुश होता है जी नहीं मैं अपने मुल्क़ कि जय बोलता हूँ क्योंकि मुल्क़ से मोहब्बत मेरा आधा ईमान है क्योंकि मुझे मेरे नबी ने यही बताया है यही तालीम दी है भारत माता कि जय अब तो हूँ मैं राष्ट्रभक्त ?
तीसरा मसला है जय श्री राम का आजकल कुछ शिद्द्त पसंद लोग इस नारे का इस्तेमाल इसलिए नहीं कर रहे कि उन्हें श्री राम से अक़ीदत है बल्कि वह इसलिए यह नारा बुलंद कर रहे हैं क्योंकि इसे मुसलमान चिढ रहा है क्या आप भी इससे चिढ जाते हैं ?मैं नहीं चिढ़ता क्योंकि मेरा इस्लाम मुझे इसकी इजाज़त नहीं देता
रही बात जय श्री राम नारे को बुलंद करने का उसपर भी वही आरोप है कि क्योंकि हिन्दू भाई राम को भगवान् मानते है इसलिए हम राम की जय नहीं बोल सकते मेरा सवाल फिर वहीँ पर है जय का माना है ज़िंदाबाद ,श्री का अनुवाद है उर्दू में जनाब राम तो राम है अगर हम यह कह दे की जनाब राम ज़िंदाबाद तो यह कैसे कुफ्र हो जाता है मैं आज तक नहीं समझ सका मैं यह समझना चाहता हूँ मैं चाहूंगा मुझे यह ज़रूर समझाया जाये मुझे ही क्यों पुरे मुसलमानो को समझाया जाना चाहिए कि आखिर गायत्री प्रसाद प्रजापति ज़िंदाबाद कहने में इस्लाम क्यों आड़े नहीं आता?मैं बस पूछ रहा हूँ कुछ बता नहीं रहा क्योंकि कोर्ट में बलात्कार का मामला चल रहा है गायत्री प्रसाद प्रजापति पर भ्रष्टाचार के भी आरोप हैं लेकिन वह ज़िंदाबाद हैं। ज़िंदाबाद तो आदरणीय अतुल राय भी हैं मैं आगे कुछ नहीं कहूंगा नारे तो वरुण गाँधी ज़िंदाबाद के भी लगाते ही हैं न हम सब कुल मिलाकर अगर यह कहा जाये कि कुल शराबी बलात्कारी भ्रष्टाचारी क़ातिल दंगाई लफंगे माफिया मवाली लुटेरे सब ज़िंदाबाद हो सकते हैं इनकी जय बोलने में कहीं आडे नहीं आता इस्लाम ?आखिर ऐसा कैसे हो सकता है क्या कोई मुझे समझायेगा ?
क्या इस्लाम यह इजाज़त देता है कि ज़ालिम कि हिमायत में उसे ज़िंदाबाद कहिये अगर हाँ तो ज़ोर से चिल्लाइये मुझे कोई आपत्ति नहीं है लेकिन अगर इज़ाज़त नहीं है तो अब तक किसी दारुलउलूम ने फतवा क्यों नहीं दिया ?सवाल कड़वा हो गया है लेकिन पानी के साथ इसे पीजिये ज़रूर आपके अंदर से ही जवाब आएगा यक़ीन मानिये कड़वी दवा ही मर्ज़ को जिस्म के बाहर निकालती है।
आइये अब बात करते हैं श्री राम की श्री राम के सम्बन्ध में जो भी साहित्य या इबारत मिलती है वह बताती है कि वह ज़ुल्म के खिलाफ लड़े,राम ने परस्त्रीगमन नहीं किया उन्होंने कभी ज़ुल्म नहीं किया शराब नहीं पी, जुआं नहीं खेला, झूट नहीं बोला ,बड़ो का अपमान नहीं किया ,यानि श्री राम में सब वह सद्गुण मिलते हैं जो उन्हें मर्यादा पुरषोत्तम के रूप में स्थापित करते हैं। लेकिन उनको ज़िंदाबाद बोलने में हम चिढ़ रहे हैं क्या यह हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हिन्दू भाई श्री राम को भगवान् मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं लेकिन यह भी तो हमारी तौहीद के नज़रिये से नहीं टकराता क्योंकि हमारा रब तो वह है जो ” लम यलिद वलम यूलद ” है तो फिर हम ऐसा क्यों कर रहे हैं ज़रूर हम साजिश का शिकार हैं हमे कुछ तो गलत बताया जा रहा है खैर मेरा यह मक़सद नहीं कि किसी को सही या गलत साबित करूँ मेरा काम था सही सवाल आप तक पहुंचा दूँ वह मेरी कोशिश है जवाब सही पाना आपकी कोशिश होनी चाहिए मैं तो ज़ोर से कहता हूँ भारत माता कि जय क्या अब मैं राष्ट्रभक्त हूँ।