यह सवाल इसलिए नहीं कि मैं राहुल गांधी या उनकी भारत जोड़ो यात्रा का विरोध कर रहा हूं बल्कि यह सवाल इस लिए अधिक जरूरी हो जाता है क्योंकि भारत जोड़ो जिस नफरत के खिलाफ है उससे सबसे अधिक प्रभावित वर्ग तो भारतीय मुसलमान ही है और भारतीय जनता पार्टी की पूरी राजनैतिक बिसात भी इसी पर बिछी है ऐसे में सवाल अहम हो जाता है।
यात्रा धीरे धीरे दिल्ली के करीब पहुंच रही है और कांग्रेस के थिंक टैंक ने इसे अच्छे ढंग से व्यवस्थित भी किया है लेकिन इस पूरी यात्रा में संस्कृतियों की झलक लोक गीत के साथ सॉफ्ट हिंदुत्व की झलक साफ दिख रही है यानी कांग्रेस आज भी अपनी पिच पर खेलती नहीं प्रतीत हो पा रही है ,हालांकि इस पूरी यात्रा में राहुल गांधी ने अपनी छवि को एक मजबूत और बेबाक समझदार नेता के रूप में स्थापित किया है और अपने खिलाफ हुए सारे दुष्प्रचार को लगभग पीछे धकेल दिया है।
लेकिन अभी भी कांग्रेस अपनी चाटुकार मंडली के असर से बहार आती नहीं दिख रही है , नवनिर्वाचित कांग्रेस अध्यक्ष खुद की खामोशी से रबर स्टैंप वाली छवि के नीचे दबते जा रहे हैं जोकि घातक है और कांग्रेस के लिए खतरनाक भी
,कांग्रेस नेतृत्व अभी भी असली कांग्रेस के विचार के साथ खड़ा नहीं दिखता उसपर कहीं न कहीं भय का साया साफ दिखाई दे रहा है ।जिस प्रकार गुजरात चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति हुई उसने एक बात स्पष्ट कर दी कि जब हिंदुत्व बनाम हिंदुत्व की लड़ाई होगी हमेशा भारतीय जनता पार्टी ही जीतेगी ,लेकिन राहुल गांधी को सलाह देने वाले आज भी उन्हें इस बात को समझने नहीं देना चाह रहे हैं ।
राहुल गांधी ने पूरी यात्रा के दौरान किसी भी बड़े मुस्लिम नेता को साथ नहीं लिया क्योंकि उन्हें बताया गया है कि अगर मुस्लिम चेहरे साथ होंगे तो उन्हें नुकसान होगा लिहाजा राहुल ने दूरी बनाई हुई है ,कन्या कुमारी से लेकर राजस्थान तक भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने किसी बड़ी दरगाह पर चादर नहीं चढ़ाई और न ही किसी मुस्लिम धर्मगुरु के साथ उनकी फोटो वायरल हुई यानी साफ तौर से राहुल की पूरी यात्रा को मुसलमान कयादत से बचा कर रखा गया ताकि हिंदू वोटर नाराज न हो।
लेकिन शायद पूरी भारत यात्रा जो अभी राजस्थान में है के दौरान राहुल गांधी को जमीन की हकीकत समझ आई हो जोकि उनके इर्द गिर्द मंडराने वालों द्वारा समझाए गए भारत दर्शन से इतर है देश में आज भी व्यापक रूप से कट्टरता का असर नहीं है और लोग मिलजुल कर रह रहें हैं बीजेपी की विचारधारा से सहमत लोगों का प्रतिशत आज भी भारत में मात्र २०% या उससे भी कम है लेकिन माहौल बनाकर बीजेपी बाजी मार रही है और कांग्रेस या अन्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी को उसी की बिछाई बिसात पर खेल कर हार रहे हैं ।
भारतीय मुसलमान खामोशी से सब देख रहा है और अभी किसी निर्णय पर नहीं पहुंचा है वहीं भारतीय जनता पार्टी ने वहां भी अपना दांव चलना शुरू कर दिया है ,पसमांदा मुस्लिम कार्ड चल कर उसने वहां भी बड़ी सेंध लगाने का प्रयास शुरू कर दिया है और उसपर वह तेजी से काम कर रहे हैं ,उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे मोहसिन रज़ा को बाहर बिठाकर दानिश अंसारी को मंत्री बनाया गया है वहीं निकाय चुनाव में पसमांदा मुस्लिम समाज को टिकट देने की बात भी कही गई है उधर कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को अपने साथ लेने के लिए अभी तक कोई कदम नहीं उठाया ,यह भी मुमकिन है कि ऐसा समझा जा रहा हो कि कांग्रेस एकमात्र विकल्प है मुसलमानों के लिए तो इनपर अधिक मेहनत करने की आवश्कता नहीं है।
लेकिन यह कांग्रेस की बड़ी भूल भी साबित हो सकती है,क्योंकि जिसतरह समाजवादी पार्टी की मजबूती दिखाई जा रहीं है उसने संकेत दे दिया है कि कांग्रेस अभी जाग जाये वरना उसका वही हाल उत्तर प्रदेश में होगा जो 2019 में हो चुका है ,क्योंकि ब्राह्मण वर्ग आंखें गड़ाए बैठा है कि जैसे ही मुसलमान कांग्रेस की तरफ जायेंगे तभी वह कांग्रेस का दामन थामेगा अन्यथा वह बीजेपी की ट्रेन से नही उतरने वाला ।
महाराष्ट्र में हाजी अली की दरगाह को भारत जोड़ो यात्रा से बाहर रखा गया तो कर्नाटक में भी यही किया गया और अब राजस्थान में भारत की सबसे बड़ी दरगाह अजमेर को भी इस यात्रा से दूर रखा गया है ,राहुल गांधी अजमेर नहीं जायेंगे जबकि जब बात भारत जोड़ने की है तब इन स्थलों का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है क्योंकि हर समय भारत दर्शन का केंद्र रहने वाली यह दरगाहें देश में मुहब्बत का प्रचार और नफरत को खतम कर एकता और भाईचारे का संदेश आम करती हैं।
राहुल गांधी की भारत जोड़ने की मुहिम में देश के 80% से अधिक सूफी विचार वाले मुसलमानों को सीधे तौर पर संदेश दिया गया है कि हम आपकी मजबूरी हैं l जबकि सूफी संतों की दरगाहों पर देश के अधिकतर सेकुलर विचार वाले लोग धर्म और जाति के बंधन तोड़ कर प्रेम और आस्था के साथ आते हैं ।राजस्थान पहुंच कर अजमेर न जाने का विचार देने वाले सीधे तौर पर सॉफ्ट हिंदुत्व की पिच पर खेल कर बीजेपी को हराने की फिराक में हैं।जबकि यदि देश में कुल मुस्लिम की 80% से अधिक आबादी सूफी विचार वाले लोगों की है और यदि उनमें यह संदेश जाता है कि राहुल गांधी द्वारा एक प्रकार का सांकेतिक बहिष्कार सूफी संतों का किया जा रहा है तो इसका खामियाजा भी भुगतना पड़ सकता है।
राजस्थान में आपसी तनातनी जोरों पर हैं और मुसलमान गहलोत से काफी नाराज़ हैं ऐसे में यह राजनैतिक प्राणघातक कदम कांग्रेस के लिए भारी पड़ सकता है।नए नवेले कांग्रेसी राज्यसभा सदस्य और कौम का दर्द गाने वाले इमरान प्रतापगढ़ी एक शोमैन के रूप में तो मुसलमानों में स्वीकार किए जाते हैं लेकिन उनका कोई राजनैतिक जनाधार नहीं है वह कांग्रेस के पक्ष में मुसलमानों को लाने में सक्षम नहीं हैं क्योंकि मुस्लिम धार्मिक कयादत उनके साथ सहज नहीं है ।
राहुल गांधी के सलाहकारों के अनुसार मुस्लिम धार्मिक नेतृत्व के पास एक भी वोट नही है उनके इस विचार में सत्यता भी हो सकती है लेकिन मुस्लिम धार्मिक नेतृत्व वोट भले न दिलवा सके लेकिन आज भी आपके समर्थन से रोकने की ताकत में है जिसे समय रहते समझना चाहिए ।गोधरा में इमरान प्रतापगढ़ी की सभा में जिस तरह का हंगामा हुआ उसने एक बात साफ कर दी है कि मुसलमान आज भी जज़्बात में हैं ।अगर यह बात नहीं समझी जा सकी तो पुरानी कहावत है हुनूज़ दिल्ली दुरस्त यानी अभी दिल्ली दूर है।