क्या देश ग्रह युद्ध की ओर ले जाया जा रहा है ?
यह एक यक्ष प्रश्न है और इस समय रोज़गार ,रोटी ,तथा विकास से बड़ा सवाल बन गया है क्योंकि यह सब चीज़े तब हो सकती हैं जब शांति बहाल रहे !
पूरी दुनिया में अनेकों उदाहरण है जहाँ अशांति की वजह से विकास पूरी तरह बाधित हो गया या विनाश में परिवर्तित हो गया और उसका सबसे ताज़ा उदाहरण सीरिया तथा इराक़ हैं जहाँ हर तरफ़ तबाही के पदचिह्न बिखरे हुए हैं और लगभग ऐसे ही कुछ हालात से अछूता इज़राइल भी नहीं है जहाँ एक शासक की अपनी सत्ता बचाने की सनक ने पूरे देश को एक आर्थिक गर्त में धकेल दिया ।
अफ़्रीका के कई मुल्क आपसी खानाजंगी का शिकार हैं तो बांग्लादेश और पाकिस्तान के हालात हम सब बहुत क़रीब से देख रहे हैं ,बांग्लादेश जिस तरह आर्थिक तरक्की की पटरी से उतरा और कट्टरपंथी विचार की चपेट में आकर तख़्ता पलट तक पहुँचा वह भारत के लिए बड़ा सबक़ है हालाँकि बांग्लादेश में विदेशी ताक़तों का इस पूरे मामले में क्या दखल रहा नहीं रहा यह अलग विषय है लेकिन भारत को अस्थिर करने के लिए क्या विदेशी ताक़तें नहीं तैयार है यह प्रश्न भी है ?
भारत में जिस तरह नफ़रत की बयार बह रही है उसने नीचे तक अपनी पैठ बना ली है प्रदेशों के मुखिया सीधे संवैधानिक पद पर आसीन होकर भारत के संविधान की शपथ ले कर जिस तरह एक वर्ग विशेष के खिलाफ बयानबाज़ी कर रहे हैं वह सीधे तौर पर देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी के मन में एक अविश्वास का भाव पैदा कर रही है जो एक राष्ट्र के तौर पर भारत के लिए घातक है ।
हर रोज़ जिस तरह की घटनायें सरकारी संरक्षण में हो रही हैं और उन पर मेन स्ट्रीम मीडिया में जिस तरह की परिचर्चा होती है वह उस अविश्वास को और अधिक बढ़ाने का काम करती है जनसामान्य के बीच इस नफ़रती प्रचार ने एक खाई पैदा कर दी है और मूल सवालों से आमजन को भटकाने का सरकारी प्रयास कामयाब हुआ है ।
वक्क संशोधन बिल को जिस तरह सरकारी तंत्र और मीडिया ने प्रचारित और प्रसारित किया है उसने इस पूरे मुद्दे को हिंदू बनाम मुस्लिम कर दिया है जबकि यह एक सीधी सी बात है कि वक़्फ़ मुसलमान अपनी गाढ़ी कमायी से अर्जित संपत्ति को दान कर लोककल्याण और धार्मिक प्रयोजन के लिए इस्तेमाल करने के उद्देश्य से करते हैं ,मस्जिद कभी भी क़ब्ज़ा की गई या जबरन हासिल की गई भूमि पर नहीं बनायी जा सकती उसके किए पाक कमायी से अर्जित धन से भूमि को ख़रीदना या प्राप्त किया जाना अनिवार्य है ठीक इसी प्रकार कब्रिस्तान जहाँ इंसान दफ़न होता है उसका ख़रीद कर लिया जाना अनिवार्य है विवादित भूमि पर दफ़न नहीं किया जा सकता है ,यहाँ एक बात साफ़ कर देनी चाहिए की अपवाद संभव है क्योंकि कोई ज़ालिम व्यक्ति किसी स्थान पर इसके उलट कार्य को कर देता है तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता लेकिन यह बहुतायत में होना संभव ही नहीं है।
और जहाँ ऐसा अपवाद मौजूद है उसके बारे में स्वयं मुसलमान ही चर्चा करते मिल जाते हैं और अक्सर लोग ऐसी जगह से दूरी बनाते हुए भी पाये जाते हैं ।
लेकिन इस समय यह प्रचारित किया जा रहा है कि इतनी संपत्ति वक़्फ़ की है यह जबरन हासिल की गई है या सरकारी भूमि पर क़ब्ज़ा करके की गई है और इसे वापिस लिया जाना चाहिए और लोगों के मस्तिष्क में यह बात डाली जा रही है कि मुसलमानों ने यह संपत्ति बलपूर्वक अर्जित की है इसलिए अब इसे सरकार छीन रही है इससे उनका कल्याण होगा ।
लेकिन सच इसके उलट है और वह यह है कि पवित्र कमायी से लोक कल्याण के लिए अर्जित संपत्ति को मुसलमानों ने ख़ुद वक़्फ़ किया है इसमें सरकार ने उनकी कोई मदद नहीं की उल्टा अपनी ही संपत्ति के प्रबंधन के नाम पर मुसलमान वक़्फ़ बोर्ड को 7% कर चुकाते हैं जिससे वक़्फ़ बोर्ड के कर्मचारियों को वेतन मिलता है यहाँ एक बात और समझने योग्य है और वह यह है कि अधिकतर वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन सरकार के लोग ही होते रहे हैं जिन्हें सरकार द्वारा बनाया गया और इन लोगों ने वक़्फ़ को खूब नुक़सान भी पहुंचाया |
आज जब सवाल वक़्फ़नामों के प्रस्तुत करने का आया है तो बोर्ड के पास अधिकतर दस्तावेज मौजूद नहीं है उसकी वजह यही तंत्र ही है जिसने रिकॉर्ड को मिटाने में बड़ी भूमिका निभाई और इस तरह बड़े पैमाने पर वक़्फ़ की ज़मीनो को बेचा और लूटा गया वक़्फ़ बोर्ड पर अधिकतर उन लोगों का क़ब्ज़ा रहा जिनका वक़्फ़ से यानी दरगाहों ,इमाम चौक,तकिया ,इमामबारगाह आदि में विश्वास ही नहीं रहा और यही वजह रही की इन लोगो द्वारा इनकी संपत्तियों को खूब बर्बाद किया गया इसमें उन लोगों ने भी खूब भूमिका निभाई जो इस वक़्फ़ से संबंधित रहे आपसी विवाद के चलते उनके द्वारा भी इसमें ऐसे लोगों का साथ दिया गया मतलब सभी ने वक़्फ़ को बर्बाद करने में पूरा सहयोग दिया ।
खैर अब बात को लंबा न करते हुए सीधे उस यक्ष प्रश्न की और आते हैं जो भारत के भविष्य को तय करने वाला है और वह सवाल यह है कि क्या देश गृहयुद्ध के लिए तैयार है ?क्या भारत पूरे देश में हिंसा को झेलने की क्षमता रखता है? यह मैं किसी को धमकाने या डराने की बात नहीं कर रहा हूँ आपको बस इस सवाल की तरफ़ ला रहा हूँ क्योंकि यह सवाल पूरे 150 करोड़ भारतीयों का है और सबको प्रभावित करने वाला है ।
जिस समय संभवानों से हमारा देश भरा हुआ है पूरी दुनिया हमारी तरफ़ देख रही है ऐसे समय में क्या देश को अविश्वास की पराकाष्ठा पर खड़ा किया जाना चाहिए ?
जब दुनिया में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर रहा है ऐसे समय में मात्र सत्ता को संरक्षित करने मात्र के लिए देश को अस्थिरता की ओर धकेल दिए जाने का समर्थन किया जा सकता है ?
इस विषय पर सोचना होगा क्योंकि वक़्फ़ संशोधन बिल 2024 में मौजूद वक़्फ़ बाय यूज़ेज़ के प्रावधान को हटाने के बाद हर गांव तक अविश्वास फैलेगा इससे इनकार नहीं किया जा सकता सैकड़ों वर्षों तक मस्जिद के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली इमारत को सरकारी भूमि घोषित कर जब उस जगह कोई अन्य निर्माण करने का काम होगा तो परिणाम क्या होगा ? जिस भूमि में पुरखों की कब्रें हैं उसे सरकारी ज़मीन बताकर जब समतल किया जायेगा तो नतीजा क्या होगा ?
सभी भारतवासियों को इसे समझना होगा और इसपर विचार करना होगा साथ ही एक और बिंदु पर भी विचार करना होगा और वह यह है कि इस देश के 97% से भी अधिक मुसलमान जोकि मात्र आस्था परिवर्तन कर यहाँ रह रहे हैं वह कौन हैं ?इनका किसी भी तरह आक्रांताओं से कोई संबंध नहीं है यह इसी सिंधु घाटी सभ्यता में जन्मे और यही जीते मरते हैं उन्हें उनके ही भाई बंधुओं से लड़ाने का कुत्सित प्रयास क्या सही हो सकता है ?

जब नफ़रत की राजनीति लगभग अपनी धार खो रही है और लोग मूल सवालों की तरफ़ लौटने का मन बना रहे हैं ऐसे में हर गांव की चौपाल तक इस विवाद को पहुचाने का परिणाम क्या होगा ? क्या देश को इसपर विचार नहीं करना चाहिये??