ज़मीन पर अगर कहीं जन्नत है तो बस यहीं है ,यहीं है ,यहीं है
कश्मीर की खूबसूरत वादियां बरसों से संगीनों के साये में हैं,कश्मीरियत सिसक रही है और चल रही है राजनीत ,क्योंकि कश्मीर एक अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है जिसकी गूंज समय समय पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सुनाई देती है,उसी कश्मीर में आज गहरा सन्नाटा है ,वजह है भारत की सरकार द्वारा राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से धारा 370 से दो खण्ड धारा 370 (2) एवम धारा 370(3) संशोधित कर दिए हैं हालांकि 370(1) अभी मौजूद है ,साथ ही जम्मू कश्मीर राज्य को दो भागों में विभाजित कर केंद्र शासित राज्य बना दिया है ,जिसमें लद्दाख और जम्मू कश्मीर हैं जम्मू कश्मीर में विधानसभा होगी लेकिन यह केंद्र शासित प्रदेश होगा जबकि लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश होगा लेकिन वहां विधानसभा नहीं होगी।

हालांकि भारतीय जनता पार्टी ने आरएसएस के एजेंडे को जिस तरह लागू किया इस पर बहस चल रही है ,370 को लेकर आरएसएस लगातार प्रयास करता रहा है और बीजेपी के घोषणा पत्र में भी यह वादा था कि हम इसे हटा देंगे,हमारी बात इसपर हरगिज़ नहीं है कि यह सब किस तरह हुआ।
आपको अब यहां एक बात साफ समझना होगी वह यह है कि यह सीधे तौर पर राज्य की नीति का विषय है इसे हरगिज़ हिन्दू मुस्लिम चश्मे से न देखा जाए ,इसका प्रयोग नफरत पनपाने के लिए नहीं होने देना है ,क्योंकि धारा 370 मात्र कश्मीर में बसने वालों का मामला है ,इसका भारत के मुसलमानों से कोई ताल्लुक नहीं है,और न ही यह भारत के हिन्दुओं का विषय है ,इसको और बेहतर समझने के लिए हमें पता होना चाहिए कि धारा 370 में बहुत बार बदलाव किया गया है यहां तक कि यह 75% समाप्त हो गई सिर्फ 25% ही बची हुई थी ,क्योंकि कांग्रेस सरकारों द्वारा इस पर 98 प्रेसिडेंशियल ऑर्डर जारी कराये गये, कश्मीर में केन्द्रीय सूची के 94 आइटम लागू किए गए मौजूदा समय में 286 से अधिक केन्द्रीय कानून की धारा जम्मू कश्मीर में लागू हैं यह सब 370 के रहते हुआ बची खुची कसर राजीव गांधी सरकार ने 30 जुलाई 1987 को संविधान संशोधन कर तय कर दिया कि केंद्र जम्मू कश्मीर से संबंधित हर विषय पर कानून बना सकता है,सिर्फ विलय संधि को बरकरार रखा गया।

अभी मोदी जी ने भी जम्मू कश्मीर में जीएसटी कानून लागू किया यानी बात साफ है कि सदा से ही बैंक डोर से कश्मीर में केंद्र का दखल रहा है क्योंकि राज्य सरकार बिना केंद्र का सहयोग लिए नहीं चल सकती थी लिहाजा केंद्र जो चाहता वह लागू होने में कोई खास परेशानी नहीं थी।
यह बस जानकारी के लिए जान लीजिए कि कुछ बहुत अलग नहीं हुआ है बस फर्क इतना भर है कि पहले जो करते थे उन्हें आप अपना हितैषी समझते थे और आंख बंद कर भरोसा करते थे,अब मौजूदा समय में आप सरकार को दुश्मन मान रहे हैं लिहाजा आपकी इस भावना का आपको नुकसान हो रहा है और सत्ताधारी दल को फायदा आपका दिमाग तो नहीं घूमा कहीं मेरी बात सुनकर ,खैर उससे होगा भी क्या ? कुछ गालियां देंगे आप मुझे फिर खामोश हो जाएंगे।
बात हो रही है ज़मीन की जन्नत कश्मीर की जहां कुदरत ने बेपनाह खूबसूरती दी है लेकिन इंसानों ने उसे जहन्नम बना दिया है।एक तरफ पाकिस्तान की घिनौनी साजिश तो दूसरी तरफ हमारी गलत नीति दोनों ने दर्द कश्मीरियों को ही दिया ,लूटे ,बर्बाद हुए और भटके तो सिर्फ कश्मीरी ही,जहां हम कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कहते हैं वहीं कश्मीरियों से हमारा जो व्यवहार है दुश्मन देश के नागरिक जैसा रहा जिससे विश्वास बढ़ने के बजाए घटता रहा।
छद्म राष्ट्रवाद ने इसे और चोट पहुंचाई और देश के कई हिस्सों में कश्मीरियों के साथ हिंसा हुई जबकि यह सच है कि चाहे कश्मीर कितना भी अशांत क्यों न रहा हो लेकिन वहां पर्यटकों के साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं किया गया,अमरनाथ यात्रा का प्रबंध हो या यात्रियों की सेवा कश्मीरियों ने अपनी संस्कृति को ज़िंदा रखते हुए खूब की।

देश के नेताओं से जो बड़ी भूल संविधान सभा के दौरान हुई कश्मीर इसको आज भी भुगत रहा है ,अगर उस समय मौलाना हसरत मोहानी के सवाल का सही जवाब खोजा गया होता तो आज हम और कश्मीर में रहने वाले भारतीय बहुत सुकून में होते। हसरत मोहानी ने संविधान सभा में 17 अक्टूबर 1949 को आर्टिकल 306-A जो अब धारा 370 है पर चर्चा के दौरान इसका विरोध करते हुए कहा था कि कश्मीर के लिए यह विशेष प्रावधान क्यों ? उनका कहना था कि देश के लिए नासूर होगा यह आखिर सियासतदानों के कारनामों ने साबित भी हुआ ,जहां फूल महकते थें वहां सिर्फ बारूद महकने लगी कुछ बेहतर होने के बजाए दिन प्रतिदिन हालात बदतर हुए ,आतंकवाद के दंश ने रोज़ डंसा और युवा भी कुछ दिग्भ्रमित हुए लेकिन यह आधा सच है कश्मीर का इतना सबकुछ जहां हो रहा था फिर भी कश्मीरियत ज़िंदा रही ,जहां सेब के बगीचे में बम गिर रहे थे वहीं केसर की खुशबू भी फैल रही थी,लगातार कश्मीर के लोग खुद को आगे बढ़ाने में लगे थे,कश्मीर के साथ दोगला व्यवहार कश्मीर के शासकों ने भी कम नहीं किया और अपने जाती फायदों के लिए आम कश्मीरियों को तबाही में डाला।

हसरत की बात अब लागू नहीं होती क्योंकि अब हम 70 साल आगे निकल आएं हैं परिस्थितियां बदल चुकी है ,स्वार्थी लोगों ने अपना काम कर लिया है,अब यह सिर्फ बात का विषय रह गया है लेकिन अब इस समय हुआ यह निर्णय भारत को कहां ला खड़ा करेगा यह देखने वाली बात होगी।
खैर आइए कुछ और जान लीजिए जम्मू कश्मीर राज्य का अपना संविधान है जिसके अनुसार पाक अधिकृत कश्मीर भी अभी कश्मीर का हिस्सा है इसी लिए कश्मीर विधानसभा में पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 आरक्षित विधानसभा सीट रिक्त रहती थी, कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है इस बात से जहां भारत को अंतरराष्ट्रीय पटल पर पाक अधिकृत कश्मीर के मसले पर बल मिलता है समाप्त हो जाएगा क्योंकि जब कश्मीर पूर्ण राज्य नहीं होगा तो उसका संविधान भी नहीं होगा।इस ओर भी ध्यान देना चाहिए। अब लिए गये इस निर्णय से हम फिलिस्तीन बनायेंगे या फिर शांतिस्थल कनाडा यह हमारी सरकार की नियत तय करेगी।

हालांकि भारत के गृह मंत्री ने कश्मीर को बांट कर ऐलान कर दिया है कि इससे आतंकवाद पर रोक लगेगी,साथ ही कश्मीरी युवाओं से 5 साल का समय मांगा ताकि उनकी ज़िंदगी बदली जा सके उनका देश के सबसे विकसित राज्य के रूप में उदय देखे।हालांकि किसी को पता नहीं कि कश्मीर के क्या हालात है क्योंकि वहां संचार के सभी साधन बंद है नेता विपक्ष गिरफ्तार है सन्नाटा पसरा है अब इस ख़ामोशी में क्या है नहीं कह सकते लेकिन देश को समझना होगा कि नफरत अगर पनपी तो सिर्फ नुकसान होगा आइए बदलाव को गहराई से समझे कहीं हमारी गलती हमारे कल को कलंकित न करे ।
कश्मीर ही नहीं कश्मीरी भी हमारे हैं ,भारत का हिस्सा सिर्फ ज़मीन का टुकड़ा नहीं बल्कि वहां के बाशिंदे भी हैं उनका विश्वास सरकार को जीतना होगा अगर ऐसा है तो बदलाव अच्छा है।
यूनुस मोहानी
8299687452,9305829207
younusmohani@gmail.com

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