आज जमीयत उलमा हिंद के अधिवेशन में जिस तरह से अचानक मौलाना अरशद मदनी ने एक बात कही और उसपर धर्म संसद के लोग यानी जैन मुनि सहित कई धर्म गुरु वहां अपना विरोध दर्ज करवाते हुए स्टेज से उतरे और एक हंगामा खड़ा हो गया यह कोई अचानक से होने वाली आम बात लग सकती है लेकिन अगर पिछले दिनों मौलाना अरशद मदनी और संघ सरसंघचालक मोहन भागवत की मुलाकातों को सामने रखा जाए तो तस्वीर काफी हद तक साफ होती दिखेगी।
वैसे तो यह अधिवेशन का समापन था लेकिन इसमें बात होनी थी सर्व धर्म समभाव की जो हुई भी दूसरे धर्मों और खुद जमीयत के खिलाफ रहने वाले सूफी समाज के लोगों की नुमाइंदगी भी रही और भारत जोड़ने की बात हुई अंत आते आते मौलाना अरशद मदनी ने इस पूरी कवायद पर पानी फेर दिया।

आप मेरी बात से बिलकुल सहमत नहीं हो पा रहे होंगे और इतना ही नहीं आप मुझे जमीयत विरोधी,मुस्लिम विरोधी और न जाने क्या क्या मान चुके होंगे लेकिन फिर भी मैं आपके सामने तथ्य रख रहा हूं इनसे सहमत होना या न होना आपकी अपनी स्वतंत्रता है ।
जमीयत के इस पूरे अधिवेशन में भारतीय मुस्लिम समाज की भलाई उसके विकास या उसकी तकलीफों पर लगभग न के बराबर चर्चा हुई ,जमीयत 1919 में वजूद में आई जब भारत में हिन्दू महासभा 1915 बन चुकी थी उसके बाद जमीयत के कयाम के लगभग 6 साल बाद 1925 में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बना और तब से आज तक संघ ने कभी जमीयत का विरोध नहीं किया और न ही जमीयत के द्वारा कभी बड़े पैमाने पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के खिलाफ कोई मुहिम चलाई गई हल्की फुल्की बयानबाज़ी के अलावा ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता जब संघ और जमीयत आमने सामने आई हो।

जबकि ऐसे बहुत से मौके आए जब जमीयत द्वारा किसी न किसी प्रकार से संघ को फायदा पहुंचाने वाला कार्य किया जाता रहा है उसी का उदाहरण है अभी हाल में संघ प्रमुख और मौलाना अरशद मदनी से मुलाकात के बाद आए बयान पर अगर गौर किया जाए तो तस्वीर बिलकुल साफ हो जाती है,भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने से पहले जमीयत द्वारा लगातार सरकारी एजेंडे को प्रमोट करने का काम किया गया और क़ौम का सौदा किया जाता रहा ,पूरा मुस्लिम समाज ठगा जाता रहा और मात्र एक संस्था सारे फायदे जो मुसलमानों के नाम पर मिल रहे थे उसका मज़ा लूटती रही और नतीजा जस्टिस सच्चर कमेटी के रूप में सामने आया।
मेरी बात आपको बहुत बुरी लग रही होगी लेकिन सच इसके सिवा भी नही है यहां एक बात कहना ज़रूरी है कि ऐसा नहीं है कि जमीयत ने काम नहीं किया बीच बीच में जमीयत ने नुमाया काम भी किया है जिसकी सराहना भी करना और उसका ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है वरना यह इंसाफ नहीं होगा ,लेकिन इसके बिल्कुल उलट जो क़ौम को नुकसान पहुंचा उसे माफ भी नहीं किया जा सकता।

हाल ही में मौलाना अरशद मदनी की मुलाक़ात संघ प्रमुख से हुई और बात यहां तक पहुंची कि जमीयत और संघ देश में भाईचारे का माहौल बनाने में साथ काम करेंगे ,संघ जिस तरह का भाईचारा चाहता है उसकी समझ तो आपको होगी ही इसलिए इसपर शब्द बर्बाद करने का कोई फायदा नहीं और फिर मोहान भागवत का एक बयान आया कि मुसलमानों को डरने की ज़रूरत नहीं है लेकिन हां उन्हें अपना इतिहास का बखान बंद करना होगा।

मौलाना महमूद मदनी का जमीयत के इसी अधिवेशन में दिया गया बयान “यह मुल्क जितना मोहन का मोदी का है उतना ही महमूद का भी है न उससे एक इंच ज्यादा मोहन का है न एक इंच ज्यादा महमूद का “सीधे तौर पर मोहन भागवत के बयान का जवाब नहीं बल्कि विस्तार ही था इसी भाषण में जब महमूद मदनी ने गांधी जी स्वामी विवेकानंद आदि के विचारों की बात की तो साथ में चिश्ती का विचार ऐसे कहा जैसे इनपर कोई पाबंदी थी ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का नाम इज्ज़त के साथ लेने में, जो साफ तौर से इशारा है कि हकीकत क्या है।

और फिर आज बारी आई मौलाना अरशद मदनी की उन्होंने वही किया जो करना था यानी बिलकुल सच बात कही कि इस्लाम सबसे प्राचीन मज़हब है यह भारत से ही शुरू हुआ आदम अलैहिस्सलाम यहां पैदा हुए आदि यह बात हाल में चल रहे विवाद सनातन सबसे पुराना या इस्लाम के परिपेक्ष में थी जिसका इस अधिवेशन में कहा जाना किसी तरह सही नहीं था,वहीं मनु को आदम से जोड़ना ऐसे समय में जब भारत में मनुस्मृति को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है सीधे तौर पर एक लिखी लिखाई स्क्रिप्ट का अंश ही जान पड़ता है।

मनु का वाक्या जिस तरह है ऐसा वाक्या नूंह अलैहिस्सलाम का है आदम अलैहिस्सलाम का नहीं लेकिन इस बात को जोड़ना और विवाद को गहरा देना कहां तक जायज़ है इसपर आपको भी सोचने की ज़रूरत है वहीं एक बात और ध्यान देने की है कि इस समय जिस तरह मुस्लिम समाज में नए नए विवाद देखने को मिल रहे हैं उन्हें नजरंदाज नहीं किया जा सकता फिरकों की जंग तेज़ हुई है और नफरतें बढ़ी हैं ऐसे समय में यह पूरा खेल आंख और दिमाग खोल कर समझना होगा।
सिर्फ मुहब्बत का राग अलापने से मुहब्बत नहीं होती कट्टर सोच पर जितना भी आवरण उड़ा लिया जाए उसे छुपाया नहीं जा सकता सर्व धर्म समभाव के लिए सम्मेलन से पहले दिमाग का साफ होना ज़रूरी है जोकि प्रेम मार्ग पर चलने के लिए प्राथमिक आवश्कता है।

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