भारत भूमि जिसे ऋषि मुनि सूफी संतों की भूमि कहा जाता है,कश्मीर से कन्याकुमारी तक हर तरफ इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि किस तरह व्याकुल दुख से कराहती मानवता के उद्धार के लिए इन सूफी संतों ने काम किया ,यहां अचरज की एक और बात भी है वह यह है कि लोगों ने जितनी नफरत की आग लगानी चाही हो लेकिन इनकी चौखट पर उमड़ता प्रेम खतम नहीं हुआ और सिर्फ इतना ही नहीं भारत में सूफी के साथ संत शब्द को पूरक जैसा ही माना गया इसीलिए जब भी बात चलती है सूफी संत शब्द का ही इस्तेमाल होता आया है।
लेकिन अब एक नए सवाल ने जन्म लिया है कि क्या दरवेश की चौखट पर जाने से टूटेगा भारत ? आपको चौकने की ज़रूरत नहीं है बस थोड़ा गंभीर होकर इस विषय पर सोचने की आवश्कता है कि आखिर क्या ऐसा हो सकता है? आप मुझे पागल कह सकते हैं बेमतलब के सवाल करने के लिए, यह आपका अधिकार है लेकिन सवाल से भाग नही सकते क्योंकि देश में भारत जोड़ने की मुहिम चल रही है यह मुहिम कितनी सार्थक है यह तो समय आने पर पता चलेगा लेकिन इस पूरी कवायद में देश की लगभग 20% आबादी को जिस तरह से किनारे किया गया है उसने भारत की नई तस्वीर जरूर बनाने की कोशिश की है।
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आप शायद कुछ कुछ समझने लगे हैं मैं देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी की बात कर रहा हूं यानी सेकेंड लार्जेस्ट मेजॉरिटी भारतीय मुसलमान जिसे भारत जोड़ो की मुहिम से किनारे कर यह बताने की कोशिश की जा रही है कि अब आप वोट बैंक भी नहीं बल्कि मात्र राजनैतिक मुद्दा भर हैं आपके वोट को पाने के लिए आपके साथ की कोई जरूरत नहीं हैं बल्कि एक अनजाने खौफ से ही आपको हमारा समर्थन करना है ।
आप शायद अब बात समझने लगे हैं मैं भारत जोड़ो यात्रा में मुसलमानों की भूमिका पर बात कर रहा हूं ,जिस तरह इस पूरी यात्रा में मुसलमान मज़हबी कयादत को किनारे रखा गया साथ ही इस देश को वास्तव में जोड़ने वाले सूफी संतों की अनदेखी की गई इसने कांग्रेस के अंदर बैठे उस तंत्र को बेनकाब कर दिया जोकि कांग्रेस को 2009 से अब तक उसके मूल से हटाने के लिए प्रयासरत था,कांग्रेस लगातार प्रयास कर रही है कि उसकी हिंदू हितैषी छवि स्थापित हो और वह सॉफ्ट हिंदुत्व के एजेंडे पर आगे बढ़ कर बीजेपी को मात दे ।
लेकिन सवाल यह है कि क्या यह संभव है कि बीजेपी की ही पिच पर खेल कर उसे हराया जा सकेगा ? राहुल गांधी ने जिस तरह मध्य प्रदेश में खुद को हिंदू बताने की कोशिश की उसने नई कांग्रेस के विचार को उजागर किया कि कांग्रेस अब अपनी मूल विचारधारा से अलग जा चुकी है ,कांग्रेस का मूल पानी की तरह है जिसका कोई रंग नहीं और हर व्यक्ति उसे ग्रहण कर सकता है ,लेकिन शायद अब यह पानी एक खास रंग को आत्मसात करने के लिए झटपटा रहा है।
जहां तक गांधी परिवार का सवाल है उनके निजी विचार भी इस बात से मेल नहीं खाते उनकी उकताहट उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती है कि वह इस सोच को हृदय से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं लेकिन उनके इर्द गिर्द जमा सलाहकार मंडली की सलाह के आगे वह बेबस दिखाई देते हैं।
इधर भारतीय मुसलमानों में भी एक नकारात्मकता ने घर कर लिया है उसने अपने आपको एक खामोशी की चादर में लपेट लिया है और सब खेल देख रहा है वह अभी किसी फैसले पर नहीं पहुंचा है लेकिन एक बात चलने लगी है कि कांग्रेस और बीजेपी में फर्क क्या है ?
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के रूट से जिस तरह चुन चुन कर सूफी दरगाहों को दूर रखा गया यहां तक कि राजस्थान पहुंचने के बाद भी अजमेर दरगाह से दूरी बनाई गई उसने स्पष्ट संदेश दिया कि हम कांग्रेस को उसकी पुरानी राह पर नहीं चलने दे सकते।
न सिर्फ दाढ़ी टोपी वालों के साथ फोटो बल्कि किसी दरवेश की दरगाह पर चादर चढ़ाने वाली खबर से भी राहुल को दूर रखा गया है यानी अब देश उसी तरह चलेगा जैसा बीजेपी ने बना दिया है सरकार बदलने से कुछ खास नहीं बदलने वाला।
कांग्रेस की लीडरशिप से जब इस विषय में बात की जाती है तो उनका सीधा जवाब है कि हमें बहुसंख्यक वर्ग को नाराज़ नहीं करना है जबकि कांग्रेस की मूल विचारधारा से जुड़ने वालों की संख्या इस आयातित विचार में विश्वास करने वालों से कहीं अधिक है और इसके साथ जब भारतीय मुसलमान जुड़ता है तो सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने की सीढ़ी बन जाती है।
खैर कांग्रेस ने साफ कर दिया है वह जिस भारत को जोड़ने निकली है उसमें मुसलमान नहीं हैं और न ही दरवेशाें की दुआ यही कारण है देश के मुसलमानों को बिल्कुल अलग थलग करने के पीछे लेकिन इस देश में न सिर्फ मुसलमान बल्कि हर धर्म और हर संप्रदाय के लोग हज़रत ख़्वाजा गरीब नवाज़ से प्रेम करते हैं और उनकी चौखट पर अपनी झोली फैलाते हैं और दामाने मुराद भरते हैं ,राहुल का भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दरगाह पर न जाना सबकी आंखों में चुभा है ।
देश का 80% सूफी मुसलमान इसे अहंकार के तौर पर देख रहा है जब सत्ता से बाहर रहने पर यह हाल है तो सत्ता में आकर यह सलाहकार मंडल कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा कट्टर बना सकते हैं इस आशंका ने घर करना शुरू कर दिया है लेकिन कांग्रेस भारतीय मुसलमानों को लाचार मान चुकी है उसके विचार से इनके पास उन्हें वोट देने के इतर कोई चारा नहीं है जबकि यह महज एक भूल भर है। राहुल के इस कदम की आलोचना शुरू हो गई है सुगबुगाहट तेज हो गई है जल्द ही इसका असर दिखना शुरू हो जायेगा क्योंकि सवाल बड़ा है कि क्या दरवेश की चौखट पर जाने से टूटेगा भारत?