कुछ हो न हो लेकिन देश में एक चीज में बढ़ोत्तरी अडानी की संपत्ति से भी अधिक तेजी से हो रही है और इसका असर हर गांव हर शहर में बराबर दिख रहा है ,यह कोई चंद लोगों तक सीमित नहीं रह गया जैसे भारत की संपदा सीमित है ,भारत सरकार ने खनन का टेंडर पूजीपतियों को दिया है लेकिन इसके खनन का अधिकार आम नागरिकों को बराबर से दिया गया है यह और बात है इसकी घोषणा लालकिले की प्राचीर से नहीं हुई।वरना हो तो यह भी सकता था कि कहा जाता कि हमने हर गांव में समूह बना दिए हैं जिनको लगातार व्हाट्सएप विश्विद्यालय से ट्रेनिंग करवाई जा रही है।
मैं बात कर रहा हूं नफरत की उसी नफरत की जिसके शिकार कोई एक समूह मात्र के लोग नही ,अभी देश है फिर इसकी चपेट में दुनिया होगी ,हमने जो नर्सरी लगाई है उससे जो पौधे तैयार हो रहे हैं उन्होंने फल देने भी शुरू कर दिए हैं ,जिस तन्मयता से इस नर्सरी को तैयार किया जा रहा है उससे वह दिन दूर नहीं कि जब अपने ही घर के चिराग घर को आग के हवाले करेंगे ,क्योंकि यह पौधे जब फल देंगें तो कोई इनका खरीदार नहीं होगा और इनकी सड़ांध से पूरा संसार दूषित होगा।
एक नन्हा बच्चा जिसे शायद अभी धर्म का मतलब भी नहीं पता वह बच्चा जो अपनी मर्जी से किसी धर्म में नहीं पैदा हुआ बल्कि उसके माता पिता जहां आस्था रखते हैं अभी उसे उसी धर्म का माना जा रहा है शिक्षा ग्रहण करने के लिए एक शिक्षा के मंदिर में जाता है , रोज़ सवेरे साफ सुथरा होकर तैयार होकर ,शिक्षा देने वाले गुरु को सम्मान देता और उनसे कबीर का दोहा “गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागूं पाय,बलहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताये ” भी कभी सुन लेता होगा, जिसमें गुरु की महिमा का बखान है और उसे भगवान को जानने का मार्ग बताने वाले बताया गया है ,अब उस शिक्षक द्वारा यदि धर्म का चश्मा लगा कर इस नन्हे मुन्ने को उसके धर्म के आधार पर देखा जाए तो क्या बीतेगी एक बालमन पर? ज़रा सोचिए आपके बेटे या बेटी के साथ कहीं ऐसा घटे तो क्या सोचेंगे आप ? क्या इस अघात को सहने के लिए आपका बच्चा तैयार है ?
यह आज़ाद भारत का अमृत उत्सव काल है ,यह न्यू इंडिया की तस्वीर है जहां एक बच्चा जो कथित तौर पर एक मटके को छूने का अधिकारी नहीं था सिर्फ प्यास बुझाने के उद्देश्य से घड़ा छू लेता है और एक निहायत नीच जो खुद को उच्च कुल का मानता है उसकी जान ले लेता है यह एक घटना है ,इसी नर्सरी में एक धर्म विशेष के लड़के को शिक्षक द्वारा आतंकवादी कह कर पुकारा जाता है यह भी एक घटना है और अब इसी नर्सरी की एक और बानगी सामने है एक शिक्षिका साथ पड़ने वाले कोमल मन वाले धर्म का अर्थ भी न समझने वाले बच्चों से धर्म बता कर एक बच्चे की पिटाई करवा रही है। कहने को यह भी एक घटना है लेकिन सोचिए इनमें से कोई भी घटना नहीं है बल्कि खतरे की घंटी है।
आज भारत के युवा अपनी प्रतिभा के बल पर दुनिया की बड़ी बड़ी कंपनियों में बड़े बड़े कारपोरेट ग्रुपस में सीईओ जैसे पदों को सुशोभित कर रहे हैं आने वाले 20 साल बाद इस नफरत में परवान चढ़े युवा अगर इस लायक हुए और ऐसे पदों पर आसीन हुए तो दुनिया क्या देखेगी? आज जो नफरत की खेती हम कर रहे हैं इसकी फसल जब लहलहायेगी तो परिणाम क्या होगा ? सवाल यह नहीं है कि ऐसा धर्म विशेष के खिलाफ हो रहा है या जाति विशेष के, सवाल यह है जब यह अपमान और नफरत का शिकार बच्चा बड़ा होगा तो कैसा नागरिक बनेगा?
कहीं हम अपने वहशीपन से आतंक की नई नर्सरी तो नहीं तैयार कर रहे हैं ? यह एक देश के तौर पर सबसे बड़ा और वाजिब सवाल है,जब एक सामाजिक नफरत का शिकार बालक कुंठित व्यक्ति के रूप में एक नागरिक बनेगा तो कल्पना कीजिए उसकी नफरत की ! दरअसल हम अभी मेरा धर्म और तेरा धर्म कह कर खुश हो सकते हैं लेकिन जब धर्म के नाम पर परवान चढ़ी आग दहकेगी तो क्या हमारा या आपका घर बचेगा? सवाल बहुत हैं क्योंकि मामला किसी नेहा पब्लिक स्कूल की तृप्ता त्यागी जैसी शिक्षिका का नहीं है सवाल है न्यू इंडिया की घिनौनी तस्वीर का जिसमें केसरिया की जगह मानव रक्त पोतने की घिनौनी साजिश की जा रही है।
आप इस पूरे प्रकरण से यदि सहमत हैं तो सोचिए आप अपने स्वयं के बच्चों को क्या देने जा रहे हैं? हम चांद के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंच गए हैं और नफरत के काले ध्रुव पर हमारा समाज ।
यह सवाल आपसे इसलिए हैं क्योंकि देश भी आपका है और अगला नंबर भी आपका क्योंकि जब नफरत घर घर होगी तो सुरक्षित भी कोई नहीं होगा ,चांद मुबारक कहने पर भड़कने वाले राजनेताओं द्वारा तैयार नफरत की नर्सरी न्यू इंडिया में आतंक की खेप उगा देगी और रक्त की सड़ांध से आपके नथुने फट जायेंगे,यहां राहुल गांधी की सराहना करनी होगी क्योंकि उन्होंने सच के साथ खड़े होने की हिम्मत दिखाई लेकिन उत्तर प्रदेश के मिस्टर मुस्कान मुसलमान नाम तक लेने से डरते रहे इस बात को समझना होगा ।नफरत सिर्फ आग है जो अपना पराया नहीं देखती आइए मुहब्बत करें ।