इस वक़्त मुस्लिम समाज जिस तरह पूरे देश में अलग अलग तरह की परेशानी से जूझ रहा है उसकी एक वजह तो यह है कि उसके नेतृत्व ने उसके साथ छल किया वहीं दूसरा कारण यह भी है कि इस समय समाज नेतृत्व हीन हो गया है , इन दोनों ही परिस्थितियों में नुक़सान सिर्फ समाज का हुआ है।
समाज को जिस तरह अपने नेतृत्व से निराशा मिली और हर जगह उसे यह अहसास हुआ कि उसे भीड़ बकरियों की तरह सिर्फ बेचा गया और इस खरीद फरोख्त में जो भी मिला उससे धार्मिक और राजनैतिक कथित रहनुमा दिन प्रतिदिन अमीर हुए लंबी लंबी गाड़ियों की कतारें खड़ी हुई बड़ी बड़ी इमारतें बनी लेकिन मुसलमानों को कुछ भी नहीं मिला सिवा फरेब के।
देश आगे बढ़ा मगर देश के मुसलमान पीछे हुए उनका प्रतिशत आबादी में भले बढ़ा हो बाकी तरक्की के हर पैमाने पर गिरा ही और जब न्यू इंडिया की बात शुरू हुई तो फिर एक नए संकट में यह समाज दिखाई देने लगा,एक तरफ जहां यह राहत की बात थी कि समाज बहुत सारे अंतर्विरोधों के बावजूद भी मोदी सरकार आने के बाद से एकजुट दिखाई दिया और आपस में संगठित होकर विकास की बात शुरू हुई ,इसके साथ साथ एक और बदलाव भी शुरू हुआ वह था धार्मिक नेतृत्व के खिलाफ जाकर उनके बहिष्कार की बात ,लोगों में गुस्सा इतना बढ़ा कि सोशल मीडिया के माध्यम से वह सार्वजानिक दिखने लगा कुछ ने तो अपनी सीमाएं भी लांघी ।
2019 में दोबारा सरकार बनने के बाद से जिस तरह तीन अहम बड़े फैसले हुए और इस बीच मुस्लिम नेतृत्व की ख़ामोशी ने या फिर गलत नीति ने लोगों के विश्वास को और डगमगा दिया ,कश्मीर में धारा 370 पर हुए फैसले के बाद जिस तरह की तस्वीरे धार्मिक नेतृत्व की अाई और बयान आए उसके फौरन बाद बाबरी मस्जिद राममंदिर विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से पहले जो कुछ देखने सुनने को मिला उसने लगभग नेतृत्व हीन हो चुके मुस्लिम समाज को बिखरा दिया।
और अभी समाज कुछ सोच समझ पाता कि नागरिकता संशोधन कानून और नागरिकता रजिस्टर को लेकर बात शुरू हो गई ,यहां स्पेन में मुस्लिम समुदाय के साथ हुए खेल को नज़रों के सामने रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि जब स्पेन में मुसलमानों से उनका वर्चस्व छीना गया तो उसके पीछे की अहम रणनीति यही थी कि उनके बीच से नेतृत्व समाप्त कर दिया गया और हाल यहां तक पहुंचा कि मस्जिद से निकलते वक़्त जब किसी इमाम की टोपी वहां का कोई शरारती इसाई युवक छड़ी से उछाल देता तो मुसलमान ताड़ी बजाते और जैसे ही यह हालात हुए तो वह हुआ जिसे दूसरे करना चाहते थे और देखते देखते ही स्पेन में सिर्फ निशानियां ही बची।
आइए अब वापिस अपने प्यारे हिंदोस्तान की तरफ जहां मुसलमान एन आर सी और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर देशवासियों के साथ सड़क पर आ गया अभी आंदोलन शुरू ही हुआ था कि जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में पुलिसिया ज़ुल्म की एक नई दास्तान लिख दी गई इसके बाद फिर लोगों ने धार्मिक और राजनैतिक नेतृत्व की तलाश की जो ख़ामोशी से अभी सब देख रहा था, इसी बीच आल इंडिया उलमा व मशाइख़ बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष सय्यद मोहम्मद अशरफ किछौछवी का बयान आ गया कि पुलिस की यह कार्यवाही भारत के भविष्य पर हमला है उनके बयान के आते ही पहले तो वह लोगों के गुस्से का शिकार बने लेकिन जब उनकी टीम अस्पतालों में पहुंची और मदद के लिए तत्पर दिखी तो गुस्सा समर्थन में बदला लेकिन नाराजगी रही।
रात गहराने के साथ साथ जमीयत के सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी भी पुलिस हेडक्वार्टर पर हो रहे प्रदर्शन में पहुंचे हालांकि अशरफ किछौछवी भी वहां पहुंचे लेकिन उनके बीमार होने के कारण कार से उतरते ही चक्कर आ जाने की वजह से कार में बैठे रहे ,महमूद मदनी को लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा लेकिन कहीं न कहीं उनके क़दम को सराहा भी गया।
आंदोलन दिल्ली से निकला और देखते ही देखते पूरे देश में चल पड़ा इसी बीच यह सवाल भी चला कि आखिर धर्म के कारोबारी कहां हैं,आखिर चंदा खोर ,ज़कातचोर किधर है लोगों ने यहां तक कहा कि क़ौम के दिए पर पलने वाले अब आरएसएस के पालने में दूध पी रहें हैं ऐसे दौर में फिर अशरफ किछौछवी लखनऊ की सड़कों पर शिवपाल यादव के साथ इस आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन करते दिखे 18 दिसंबर का यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहा वहीं 19 को बिना नेतृत्व के किया गया प्रदर्शन हिंसक हो गया और जिसकी बड़ी कीमत लोगों ने चुकाई जान और माल दोनों का नुक़सान हुआ।
इस संबंध में किछौछवी ने जो लोगों को सलाह दी वह सच में अच्छी और असरदार थी उन्होंने कहा कि यह मसला मुसलमानों का न बनाया जाए बल्कि इसे होश के साथ पॉलिटिकल पार्टी के सहयोग से लड़ा जाए इस आंदोलन का किसी भी कीमत पर इस्लामीकरण न होने पाए जबकि उनकी सलाह बेहतर थी और समाज तथा देशहित में भी लेकिन उनपर सूफी कॉन्फ्रेंस के बाद से विरोधी मोदी का सहयोगी होने का आरोप लगाते रहे है।लेकिन उन्होंने पहले सड़क पर आने की हिम्मत दिखाई और एक दिशा जरूर दी जो कहीं न कहीं उनका कर्तव्य भी था।
यहां एक बात समझनी होगी कि आरएसएस ने जिस तरह अपना काम किया वह अपना असर कर गया जिस तरह मुस्लिम नेतृत्व की ख़ामोशी खरीदी गई और इसे समाज को दिखाया भी गया जिससे दो काम एक साथ हुए एक तरफ जिस काम की कीमत मिली वह हुआ वहीं उतना ही इस मुस्लिम नेतृत्व का चेहरा मुस्लिम समाज में खराब होता गया और धीरे धीरे इनपर से बिल्कुल भरोसा उठ गया इस तरह इतना बड़ा काम हुआ कि एक बहुत बड़ा समाज नेतृत्व हीन होकर भीड़ बनकर रह गया।
अब समाज दोहरे युद्ध को लड़ने के लिए मजबूर है एक तरफ उसके बिकाऊ नेतृत्व से जंग है दूसरी तरफ मुस्लिम समाज में एक तबका ऐसा भी है जो बेरोजगारी के चलते मुखबर बन गया है और जहां जहां भी नेतृत्व हीन आंदोलन में हिंसा हुई वहां वहां यही लोग पूरे समाज के लिए मुसीबत बने हुए हैं क्योंकि यह अपनी जाती लड़ाई निकालने के लिए बेगुनाह लोगों को शिकार बना रहे हैं समाज इस दोहरे द्वंद्व में फंस चुका है।
इस आंदोलन से कई धार्मिक नेता जागे भी और कई जगह नया नेतृत्व भी बाहर आया जो एक अच्छा बदलाव है जहां लोग अपने अहम को तोड़कर बाहर आए उनका स्वागत भी होना ज़रूरी है क्योंकि समाज की जंग किसी भी व्यक्ति से नहीं बल्कि उस विचार से है जो नेतृत्व में पनप गया था कि समाज के पैसे पर वह ऐश भी करेंगे और जब जहां चाहेंगे उसे उसकी मर्ज़ी के बिना बेच देंगे,अब संदेश साफ है कि अगर आपको समाज में इज्जत दी जाती है आपको नेता चुना गया है दिशा देने के लिए बेच देने के लिए नहीं।
साथ ही नए नेतृत्व का उभार भी ज़रूरी है जिसमें बुद्धिजीवी समाज से आने वाले ऊर्जावान युवा हो जो देश और समाज के हितैषी हो और सही निर्णय लेने में सक्षम हों लेकिन क़ौम को बेचने की इजाज़त तो किसी को नहीं दी जा सकती। इस आंदोलन में अब समाज को नेतृत्व के साथ ही उतारना होगा ताकि कोई हिंसा का पुजारी इसे भटका न सके लेकिन बिकाऊ नेतृत्व नहीं क्षेत्रीय नेतृत्व सहित राष्ट्रीय नेतृत्व की दरकार है लिहाज़ा जो बच गए हैं उन्हें आगे बढ़ाते हुए इस शर्त के साथ कि कोई फैसला अंधेरे में रखकर नहीं लिया जाएगा नया क्षेत्रवार नेतृत्व ज़रूरी है।
देश को किसी भी कीमत में बर्बाद नहीं होने देना है और न ही इसे टूटने या जलने देना है हमें इसकी लड़ाई भीड़ की शक्ल में नहीं बल्कि एक नेतृत्व के साथ संगठित एवम् अनुशासित नागरिक की तरह अन्न्याय के खिलाफ खड़े होकर लड़नी पड़ेगी।
हिंसा सिर्फ विनाश लाती है भटकाव लाती है लिहाज़ा इस बात को समझना होगा
यूनुस मोहानी
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