आप समझ पा रहे हैं में क्या कह रहा हूं ,सबसे पहला ख्याल जो आपके मन में आया है वह मेरे संबंध में आया है कि क्या मैं इजराइल का समर्थक हूं ? फिर आपको गुस्सा सा लग रहा है मैं सही कह रहा हूं न? लेकिन क्या आपको पता है में जो बात कह रहा हूं उसका संबंध मेरे समर्थन या विरोध से नहीं बल्कि सच से है।

में सीधे तौर से एक बात जानता हूं कि पीड़ित यानी मजलूम का समर्थन इंसाफ है और इंसाफ के बिना शांति संभव नहीं क्योंकि शांति का पहला क़दम न्याय है यदि किसी समाज में किसी देश में या किसी क्षेत्र विशेष में न्याय नहीं होगा अन्याय का शासन होगा तो शांति की बात निरर्थक है,मुझे लगता है आप मेरी इस बात से सहमत होंगे।
आइए अब बात करते हैं इजराइल और फिलिस्तीन की इस पूरे विवाद के इतिहास पर बात करना अब इसलिए फिजूल हो चुका है क्योंकि इस संबंध में हर तरफ व्यापक पैमाने पर चर्चा हो रही है,पक्ष और विपक्ष होने के बाद भी ऐतिहासिक तथ्यों को झुटलाया नहीं जा पा रहा है,द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत 1948 में जिस तरह इजराइल वजूद में आया और फिर जिस तरह फिलिस्तीन के लोगों की ज़मीन पर कब्जा बढ़ता गया और उनपर ज़ुल्म होता रहा जिसपर पूरी दुनिया आंखें मूंदे रही बच्चों बूढ़ों और महिलाओं को जिस तरह प्रतिदिन कत्ल किया जाता रहा इजराइल के सैनिकों द्वारा इससे सभी भलीभांति परिचित हैं।

अब हमास ने जिसे इजराइल समर्थक देश मात्र एक आतंकी संस्था मानते हैं जबकि अरब देश उसे अपनी जमीन के लिए लड़ने वाला संगठन कहते हैं ने इजराइल पर पहली बार इतना भीषण हमला किया कि इजराइल परेशान हो गया और फिर उसके समर्थक देश बिलबिला कर बाहर आए और मानवाधिकारों की बात करते हुए खड़े हो गए जबकि यह सब लगातार फिलिस्तीन के नागरिकों के कत्ल पर चुप्पी साधे रहते हैं यह एक अंतरराष्ट्रीय राजनीत का विषय है और उसमें किस तरह का समर्थन या विरोध करना है वह समय और परिस्थितियों के अनुसार किया जाता रहा है।

इस बार क्योंकि इजराइल के काफी नागरिकों को मौत के मुंह में समाना पड़ा है तो बौखलाहट भी बड़ी है अब यहां एक और पहलू पर भी ध्यान दिया जाना जरूरी है जिसपर बात नहीं हो रही है और वह है इजराइल के भीतर की राजनीत! बेंजामन नेतन्याहू इजराइल के प्रधानमंत्री जोकि भ्रष्टाचार के आरोपी हैं और उनके खिलाफ इजराइल में गहरा आक्रोश है उन्हें सजा भी हो सकती है क्योंकि इजराइल की जनता उनके खिलाफ है उनके समर्थकों की संख्या कम है वर्ष 2018 से वर्ष 2022 तक इजराइल में जिस प्रकार का राजनैतिक अस्थिरता का माहौल रहा है उसे सब जानते हैं ,इस समय वहां 121 सीटों वाली संसद जिसमें बहुमत के लिए 61 सीटों की आवश्कता होती है बेंजामिन नेतन्याहू की पार्टी लिकुड के पास मात्र 32 सीटे हैं हालांकि यह 2021 में हुए चुनाव में प्राप्त 30 से 2 सीट अधिक जरूर है लेकिन उनका और उनकी नीतियों का इजराइल में जिस तरह का विरोध है उसमें उनकी सरकार का कोई भरोसा नहीं है ऐसे में सत्ता जाते ही नेतन्याहू को सज़ा भी हो सकती है।

अब इस पूरे आंतरिक राजनैतिक घटनाक्रम को समझते हुए मौजूदा हमास और इजराइल की लड़ाई को देखने की जरूरत भी है,ऐसा क्या हुआ की विश्व की बेहतरीन खुफिया एजेंसियों में से एक मोसाद अचानक इतने छोटे मसले पर चूक जाती है यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है कि यह सब अचानक कैसे हो जाता है?
कहां से हमास को इतना हथियार मिलता है और इतना बड़ा हमला होता है? कुछ रिपोर्ट्स कह रही हैं कि इसके पीछे अमेरिका है क्योंकि अभी ईरान को 600 करोड़ डॉलर मिले हैं उसकी तरफ से तो ईरान ने उसी पैसे का इस्तेमाल हमास को मदद में किया है लेकिन इस खबर का खण्डन खुद अमेरिका ने आगे आकर किया है खैर जो भी है , नेतन्याहू के फायदे और नुकसान के आकलन को लेकर भी इस पूरी जंग को देखा जाना चाहिए वैसे इसराइली क़ौम राष्ट्रवाद के जज्बे से ओतप्रोत है लेकिन इस जज्बे को राजनैतिक रूप में परिवर्तित करने में यह हमला अहम योगदान निभा सकता है और अचानक से फिलिस्तीन के खातमें और बदला लेने की बात लोगों के मानस पटल से नेतन्याहू के भ्रष्टाचार का पहलू निकाल सकती है और उन्हें राजनैतिक रूप से मजबूत कर सकती है ,यह खेल बड़ा रिस्की है क्योंकि दुनिया तेज़ी से बदल रही है लेकिन दुनिया के बड़े देशों के मिलीभगत से बहुत कुछ संभव हो सकता है।

यह एक पक्ष है जिसपर ध्यान देना आवश्यक है और कम से कम भारतवासी इसे जल्दी समझ सकते हैं क्योंकि हम अभी पुलवामा अटैक नहीं भूलें हैं मैं कदापि ऐसा नहीं कह रहा हूं कि वह एक राजनैतिक साजिश थी लेकिन जांच का विषय अवश्य है ,लेकिन यह बात भी सही है कि इस अटैक के बाद बीजेपी को बड़ा फायदा जरूर मिला राष्ट्रवाद ने बाकी मुद्दों को पीछे धकेल दिया, खैर यह एक विचार है कि राजनैतिक खेल भी हो सकता है दो देशों का इतना बड़ा संकट लेकिन बात भारत की करनी है कि किस प्रकार हमारे देश में इजराइल फिलिस्तीन युद्ध के चलते नफरत की नर्सरी तैयार की जा रही है।

दरअसल फिलिस्तीन के हमास संगठन द्वारा जब इजराइल पर हमला हुआ और इजराइल में भयानक तबाही हुई तो भारत क्या पूरी दुनिया में मुसलमान खुश हुए यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया है क्योंकि अभी तक लगातार फिलिस्तीन के नागरिकों पर इजराइल जुल्म कर रहा था उनके बच्चों को मार रहा था उनकी महिलाओं और बुजुर्गों को मार रहा था हर घर में कम से कम एक जवान लाश तो थी ही और फिर इस जगह से मुसलमानों की धार्मिक आस्था जुड़ी हुई है तो हमास की जीत पर मुसलमान खुश हुए और सिर्फ मुसलमान नही बल्कि हर इंसाफ पसंद व्यक्ति ने कहा कि अन्याय का अंत करीब है लेकिन हमारे देश ने अपनी अंतरराष्ट्रीय नीति में बड़ा परिवर्तन करते हुए इजराइल का समर्थन किया जबकि भारत हमेशा से गुट निरपेक्ष रहा है और शांति की बात करता रहा है,यहां तक कि बीजेपी के संस्थापक पंडित अटल बिहारी वाजपेई जी ने भी हमेशा फिलिस्तीन का समर्थन किया लेकिन इस बार भारत ने इजराइल का समर्थन किया और समूचे विपक्ष ने फिलिस्तीन का अब यहां से शुरू हुआ राजनैतिक खेल जिसमें मुसलमान युवा एक टूल के रूप में काम आने लगे।

बीजेपी और गोदी मीडिया ने फिलिस्तीन के समर्थन को आतंकवाद का समर्थन बताना शुरू कर दिया वहीं भारत के भोले भाले मुसलमान युवा फिलिस्तीन के समर्थन में वीडियो ,फोटो और पोस्ट लिखने लगे जो अभी भी जारी है यहां तक कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीन के समर्थन में मार्च भी निकाला गया और आई स्टैंड विध फिलिस्तीन के खूब नारे लगे और गोदी मीडिया ने इसे हमास का समर्थन बताते हुए आतंकवाद का समर्थन बताना शुरू कर दिया, इतना ही नहीं कुमार विश्वास जैसे लोग इसे देश में पनप रही जहरीली मानसिकता बताने लगे और राष्ट्रवाद का रंग चढ़ना शुरू हो गया,हालांकि अभी इसने गति नहीं पकड़ी है जबकि मीडिया पूरा माहौल बना रहा है।

अब भारतीय मुसलमानों पर बड़ी जिम्मेदारी आ गई है कि वह इस खेल को पहले समझें और फिर ऐसी किसी भी हरकत से दूर रहें जिससे नफरत को बल मिलता हो सोशल मीडिया पर किसी भी तरह की बयानबाजी राजनैतिक खेल को सफल बना सकती है और हालिया होने वाले पांच चुनावों का रुख तक पलट सकती है अब इसे समझना भी है और इसे रोकना भी है क्योंकि बिना कोलड्रिंक के खाना न खाने वाली कौम सिर्फ सोशल मीडिया से बदलाव लाने के मूड में है इसलिए खतरा बड़ा है,जो लोग ब्रांड को लेकर बहुत अधिक दीवाने हैं उन्हें कोई हक नहीं किसी का समर्थन करने का ऐसा भी एक विचार है हालांकि इस विचार के समर्थन में एक बात और जोड़कर खड़ा हुआ जा सकता है और वह स्वदेशी है यानी ब्रांड सिर्फ अपने देश का जिसपर गौर किया जा सकता है हमारा काम नफरत को रोकना है और अपने देश में अमन को बरकरार रखना है।यदि आप मुझे गाली देना चाहते हैं तो मेरा नंबर मौजूद है।
जय हिन्द।

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