यहां मंदिर है ,यह मस्जिद नहीं है,इसे इस शासक ने तोड़ा उसे उस शासक ने बनवाया आजकल भारतीय मीडिया पर यही चीख पुकार सुनी जा रही है,यह सब उस देश में सुना जा रहा है जहां घर एक मंदिर जैसी फिल्में देखी जाती रही हैं और सराही जाती रही हैं इन फिल्मों के कुछ दृश्य देख कर घर में बैठे सभी लोगों को एक साथ रोता तो शायद आपने भी देखा हो या मुमकिन है आप उस उम्र के हो जब भारत से यह दौर विदा हो गया।
खैर यह किस्से कहानी कब तक अब तो भारत में हर व्हाट्सएप विश्विद्यालय का छात्र इतिहास का बड़ा जानकार है हर व्यक्ति के पास इतिहास की वह जानकारी मौजूद है जिसे पढ़कर स्वयं इतिहास के प्रोफेसर , बड़े बड़े संस्थानों में अध्धयन करने वाले भी हैरान हैं कि इतना सब पढ़ने का क्या फायदा जब हम लोगों की जन्म ,मृत्यु और उनके शासन काल को ही सही से नहीं जान पाए खैर यह भी हमारा विषय नहीं है।
आइए अब हम मुद्दे की बात करते हैं लेकिन उससे पहले हम और आप आपस में एक बात पर सहमत हो कि हम स्वयं से कम से कम सच बोलेंगे ध्यान दीजिए मैं आपसे या खुद से यह नहीं कह रहा हूं कि हमे सार्वजनिक रूप से सच बोलना है, क्योंकि मैं जानता हूं यह चुनौतीपूर्ण है और अभी अभी जो झूठ आप बोल चुके हैं उसी के विरुद्ध यह सच आप कैसे कहेंगे? इससे आपकी प्रतिष्ठा झूठी ही सही लेकिन जो भी है वह गिर सकती है और हां सच घातक भी हो सकता है लिहाजा सिर्फ खुद से सच बोलना है अपने आप से चुपके से क्या आप सहमत हैं?
मुझे लगता है अभी इतनी ईमानदारी तो हममें बची है कि हम कम से कम खुद से सच बोल पाएं ,खैर आइए अब सवाल जवाब शुरू करते हैं आप तैयार हैं न ?मैंने बात की है मंदिर की तो पहले यह समझना जरूरी है की मंदिर आखिर है क्या ? मंदिर का अर्थ होता हैं मन से दूर कोई स्थान। मंदिर को हम द्वार भी कहते हैं। जैसे रामद्वारा, गुरुद्वारा आदि। मंदिर को आलय भी कह सकते हैं जैसे की शिवालय, जिनालय। लेकिन जब हम कहते हैं कि मन से दूर जो है वह मंदिर तो, उसके मायने बदल जाते हैं।मन से दूर रहकर निराकार ईश्वर की आराधना या ध्यान करने के स्थान को मंदिर कहते हैं। जिस तरह हम जूते उतारकर मंदिर में प्रवेश करते हैं उसी तरह मन और अहंकार को भी बाहर छोड़ दिया जाता है। वेदज्ञ मानते हैं कि भगवान प्रार्थना से प्रसन्न होते हैं पूजा से नहीं।
एक बात समझ लीजिए यह परिभाषा सनातन वैदिक ज्ञान रखने वालों ने दी है यह मेरी सोची हुई कदापि नहीं है इसका एक शब्द भी मेरा विचार नहीं है पूरा पूरा सनातन परंपरा पर आधारित है ।
यह तो बात हुई मंदिर की यानी मंदिर में अहंकार नहीं होता कोई दुर्भावना नहीं होती सिर्फ प्रार्थना होती है उस परमपिता परमेश्वर से जो सम्पूर्ण सृष्टि को बनाने वाला है । भारत में विभिन्न धर्मों संप्रदायों के लोग वास करते हैं जिनकी प्रार्थना पद्धति अलग अलग है लेकिन सभी यह मानते हैं कि ईश्वर एक है सब कहते हैं “GOD is One’ सब इस विषय पर एकमत हैं तो फिर मंदिर की जो परिभाषा दी गई है उसके अनुसार हर इबादतगाह मंदिर हुई इससे कोई क्या इंकार कर सकता है ?
आप बताइए मंदिर में प्रवेश अहंकार को त्याग कर किया जाता है क्योंकि मंदिर में हम समर्पण के लिए जाते हैं तो फिर कैसे संभव है कि हम वहां मेरा ईश्वर तेरा ईश्वर जैसी चर्चा करें?क्या वास्तव में धर्म के अनुसार ऐसा संभव है कि हम कब्जेदारी की जंग को लेकर वहां प्रार्थना में खड़े हों ?
मुझे मालूम है कि जैसा हम लोगों ने पहले ही वादा किया है कि स्वयं से सच बोलेंगे तो आपको बात समझ आ रही होगी कि हम जिस चीज के लिए झगड़ रहे हैं उससे तो हम धर्म के विरुद्ध अधर्मी की श्रेणी में खड़े होते हैं।
मंदिर के संबंध में सनातन धर्म जो कहता है उसपर तो बात हो गई अब बात कर ली जाए इस्लाम की आखिर इस्लाम मस्जिद की क्या परिभाषा देता है? कुरान की सूरा अल नूर की आयत नम्बर 36 में आता है कि “(वह कंदील) उन घरों में रोशन है जिनकी निस्बत खुदा ने हुक्म दिया कि उनकी ताजीम की जाय और उनमें उसका नाम लिया जाए जिनमें सुबह व शाम वह लोग उसकी तस्बीह किया करते हैं” यानी यहां भी बात वही है कि जहां सुबह शाम उसका नाम लिया जाता हो ऐसा स्थान मस्जिद है यानी जहां सिर्फ उस परमपिता परमेश्वर का ही नाम लिया जाए वही मस्जिद है तो अब सवाल फिर वहीं आ गया कि जब सिर्फ उसी का नाम लेना है खुद समर्पण करना है तो यह झगड़ा लेकर उसके सामने कैसे खड़ा हुआ जा सकता है ? जवाब आपको मुझे नही अपने आपको देना है और अगर आप अपने लिए ईमानदार नहीं तो किसी और के लिए कैसे होंगे।
अभी तक जो भी बात हमारे बीच हुई उसमें कहीं आपका इतिहास मेरे वाले इतिहास या उसके वाले या किसी चौथे वाले इतिहास से तो टकराया ही नहीं यहां तक कि आपकी धार्मिक भावनाएं भी नहीं टकराई सच कहिए मैं सही कह रहा हूं कि नही ? अगर यहां टकराव नहीं है तो देश में ऐसा माहौल कौन बना रहा है यह सवाल कौन करेगा ?
अभी तक हमने जो मंदिर और मस्जिद की परिभाषा समझी उसमें तो यही समझ आया कि ईश्वर का नाम जहां पुकारा जाए वही मंदिर वही मस्जिद तो झगड़ा किस बात का हमारे अहंकार का या उसकी राजनीत का अब यह मत पूछिए कि किसकी राजनीत आप खूब जानते हैं।
वैसे जो परिभाषा मंदिर मस्जिद की है इसके अनुसार तो हमारा भारत एक मंदिर है माफ कीजियेगा मंदिर,मस्जिद ,गुरुद्वारा और गिरिजा ही तो है यहां हर जगह कोई खुशी में या परेशानी में परमपिता परमेश्वर का नाम ही जप रहा है भारत एक मंदिर ही तो है तो फिर मंदिर में तो झगड़ा अधर्म है आप तो धर्म को मानते हैं धर्म के लिए सर्वस्व न्योछावर करने को तैयार हैं फिर अधर्म क्यों ?
मंदिर में तो अहंकार नहीं होता मेरा तेरा की जंग ही नहीं सब उसका होता है जो रचने वाला है आप उसे जो भी नाम दें तब फिर यह कब्जेदारी की लड़ाई कैसे ? सवाल खुद से कीजिए जवाब खुद को दीजिए मैं तो कहता हूं भारत एक मंदिर है अब सब झगड़ा खतम आइए धर्म निभाएं भारत को और सुसज्जित करने का इसकी पवित्रता को अक्षुण्य रखने का भारत एक मंदिर है हम सब प्रार्थी आइए प्रार्थना में लीन हों क्योंकि वह प्रेम को पसंद करता है आइए प्रेम करें और लोगों को बताए मंदिर ऐसा होता है जैसा भारत एक मंदिर है।
यूनुस मोहानी