जी हाँ जिधर जाइए अगर आपको मुसलमान मिलेंगे और उनसे राजनैतिक चर्चा आपने कर दी तो उनके पास कहने को कुछ नहीं है या तो वह बीजेपी को अजेय घोषित करते मिलेंगे या फिर संविधान या मतदान का अधिकार बचाने जैसी बातों पर चर्चा करेंगे उनके पास कहीं उनके मुद्दे नहीं हैं ।
ऐसा भी नहीं है कि यह समाज राजनैतिक मामलों में रुचि न लेता हो या फिर इनके कोई अपने मुद्दे ही न हों लेकिन फिर भी इनके पास दूसरों के चबाए शब्दों को उगलने के सिवा कुछ नहीं है , यह मैं ऐसे ही नहीं कह रहा हूँ 2024 लोकसभा चुनाव की घोषणा के पहले और बाद में मैंने भारत के कई हिस्सों में जाकर इस बात को समझा जहां एक तरफ़ इस समाज में भयानक तौर से उदासीनता और राजनैतिक निराशा घर की हुई है वहीं इन्हें लोगों ने जो समझाया है उसका गहरा असर हुआ है ।
मुसलमानों से जब टिकट बँटवारें में हुई नाइंसाफ़ी के संबंध में बात की जाती है तो वह ग़ुस्सा तो दिखाते है राजनैतिक दलों के प्रति लेकिन बाद में एक मज़लूम सवाल उनके लबों पर आ जाता है कि आख़िर विकल्प भी तो नहीं है ?
यही उनका मज़लूमियत से भरा सवाल उनके लिए राजनैतिक संभावनाओं के सारे दरवाज़े बंद कर दे रहा है जब कोई समाज पूरी तरह से विकल्प से ख़ाली हो जाये तो फिर उसके अस्तित्व की लड़ाई बहुत कठिन हो जाती है और सही मायने में इस चुनाव में मुसलमान दलितों से बदतर स्थिति में पहुँच गये हैं , सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में जो बात कही गई थी वह तो आंशिक रूप से ही सही थी और कई मायनों में काफ़ी भ्रामक भी लेकिन वास्तविक रूप में अब मुसलमान उस रिपोर्ट के बिलकुल अनुकूल बनते जा रहे हैं ।
यह बात आपको बहुत चुभ रही होगी क्योंकि सीधे समाज के ज़ख़्म में लाल मिर्च छिड़क रहा हूँ मेरी मर्ज़ी हरगिज़ समाज को तकलीफ़ पहुँचाने की नहीं है मैं बस इतना चाहता हूँ यह ज़ख़्म नासूर न बने और इसे हालात के मरहम से भर दिया जाये । एक बात बताइए क्या वाक़ई आपके पास कोई विकल्प नहीं है ? या फिर किसी ने आपको विकल्पहीन करने की साज़िश रची है ?जिसे आप कामयाब कर रहे हैं अनजाने में ? ठंडे दिमाग़ से सोचिए क्योंकि आपको ग़ुस्सा बहुत आता है और अक्सर आपके इसी ग़ुस्से का लोग फ़ायदा उठाते हैं आप ग़ुस्से में घर से मज़लूम बनकर निकलते हैं और वापिस मुजरिम बन कर आते हैं ख़ैर यह बताइए कि आप विकल्पहीन हैं तो इस चुनाव से आपको क्या मिलेगा ?
जब आपकी कोई भागीदारी ही नहीं होगी तो किसी दल का झंडा बुलंद कर आपको क्या हासिल होगा ? क्योंकि जब आपको कोई पार्टी अपना प्रत्याशी ही नहीं बनायेगी तो आप क्या सिर्फ़ उस पार्टी का प्रचार करते फिरेंगे और दरी बिछायेंगे? यह जुमलेबाज़ी नहीं है समाज के सामने कड़वे सवाल हैं आख़िर बड़ी राजनैतिक समझदारी वाली बात करने वाले मुसलमान किस बुनियाद पर कह रहे हैं कि उनके पास विकल्प नहीं है ?
बड़ी शातिर तरीक़े से आपके बीच में मौजूद आपके दलाल टाइप के कथित रहनुमाओं ने आपकी सुपारी ले ली और आपको समझा दिया गया कि यह चुनाव बाक़ी चुनाव से अलग है क्योंकि इस बार सिर्फ़ बीजेपी को हटाना है उसके सिवा कुछ नहीं देखना है क्योंकि अगर वापिस यह सरकार आई तो आपके सारे अधिकार ख़त्म समझिए और उन अधिकारों में सबसे बड़ा अधिकार वोट देने का अधिकार है और आपने मान लिया कि इनकी बात बिलकुल सही है बिना इस बात पर विचार किए कि क्या सिर्फ़ आपके इनके साथ खड़े होने भर से आपके अधिकार बच जायेंगे?
आप से अब मैं एक सवाल पूछता हूँ ज़रा सोच कर जवाब दीजिए क्या अगर आपका प्रतिनिधित्व समाप्त कर आपको वोट का अधिकार दे दिया जाये तो उससे आपको कुछ लाभ होगा ?जवाब मैं जानता हूँ आपका भी यही है बिलकुल नहीं होगा जब आपको पता है कि कोई फ़ायदा नहीं होगा तो फिर आप इस अधिकार को अपने प्रतिनिधित्व को घटाने की क़ीमत पर बचाने को क्यों तैयार हैं ?
मैं यह भी जानता हूँ मेरे विचार से आप सहमत होकर भी नहीं हैं और कोई आएगा और आपको समझा देगा कि यह बीजेपी का एजेंट है आपको बहका रहा है और आप उसकी बात मान लेंगे क्योंकि आप यही करते आ रहे हैं इसीलिए ओवैसी ,बदरूदद्दीन अजमल ,डॉ अय्यूब सबको ग़ैरों से पहले और उनसे ज़्यादा हम बी टीम कहते नहीं थकते जबकि क्या यह हमें करना चाहिए ? छोटी छोटी जातियों के नेता अपना हिस्सा माँग रहे हैं और उनको ख़ुशी ख़ुशी दिया भी जा रहा है लेकिन 15 से 20 प्रतिशत मुसलमानों को कोई हिस्सा नहीं देने को तैयार है ।
इसकी वजह साफ़ है हमने अपने समाज के नेताओं को ख़ुद बदनाम भी किया और कमज़ोर भी किया और उनकी जगह पर ग़ैरों को जोकि सिर्फ़ तुम्हारा वोट चाहते है और बदले में तुम्हें कुछ देने को तैयार नहीं हैं उनको मज़बूती देते चले आ रहे हैं जिसके बदले में तुम्हें मिल रहा है धोखा इसके सिवा कुछ भी नहीं । चलिए अगर आप इनकी बात मान कर इन्हें वोट कर भी दिया और यह जीत कर संसद में चले गये तो इस बात की क्या गारंटी है कि यह पाला नहीं बदलेंगे ? क्या इस बात को यक़ीनी बनाया जा रहा है कि जिन्हें आप वोट की ताक़त देकर मनसब पर बिठा रहे हैं उनकी अंतरात्मा नहीं जागेगी ? अभी बहुत दिन नहीं हुए जब उत्तर प्रदेश में राज्यसभा का चुनाव आया तो लोगों की अंतरात्मा जाग गई और उसके बाद भी इसी सेक्युलर पार्टी ने उन लोगों पर कोई कार्यवाही न करते हुए बता दिया कि उनकी ख़ुद की मंशा इसमें शामिल थी उसके बाद भी आप समझने को तैयार नहीं हैं ।
बात लंबी हो रही है और आप उकता भी रहे हैं क्योंकि आपके इरादे के ख़िलाफ़ बात है लेकिन बात अहम है इसलिए इसे इस वक़्त किया जाना ज़रूरी है क्योंकि अगर इसे अभी नहीं किया गया तो इसका मौक़ा फिर कभी नहीं आयेगा, तो सुनिए मतदान का अधिकार बचा कर आपको कुछ हासिल नहीं होगा जब तक आप प्रतिनिधित्व की लड़ाई नहीं जीत जाते क्योंकि अगर यह हारे तो आपके वोट की कोई क़ीमत ही नहीं बचने वाली फिर सिर्फ़ आपको आदेश होगा कि फ़लाँ को वोट दें और आप यही रोना रोते हुए कि विकल्प नहीं है वोट करेंगे इससे अच्छा आपका अधिकार ही न बचे ताकि आपका टाइम ही बचेगा और इस वक़्त को आप दूसरे कामों में लगा पायेगे।
अगर आपकी समझ में कुछ बात आ रही है तो मायावती से इतना डर क्यों है ? अगर उनके द्वारा आपके समाज को प्रतिनिधित्व दिया जा रहा है और आपको यह भी पता है कि उनके समाज का वोट ट्रांसफ़र भी होता है तो अपनी जीत सुनिश्चित करने में हिचक कैसी ? यदि बहुजन समाज पार्टी आपके समर्थन के साथ 30 सीट जीत लेती है और उसमें 12 मुसलमान जीत कर आ जाते हैं तो आप दोहरी लड़ाई में कामयाब होते हैं एक तरफ़ आप एक ऐसा समीकरण बना पाने में कामयाब हो जायेंगे जो आपको वापिस भारतीय राजनीत में स्थापित कर सकती है वहीं आपका प्रतिनिधित्व सुरक्षित होगा और जब बात मताधिकार को छीनने की होगी या संविधान बदलने की होगी तो दलित समाज कभी इसका समर्थन नहीं कर सकता क्योंकि इसी समाज का सबसे बड़ा नुक़सान होना है तो फिर डर कैसा?
बसपा के मुसलमान उम्मीदवार की जगह इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को वोट देने की कोई एक जायज़ वजह जो आपके पास नहीं है ज़रूरत क्या है ? मैं यह सिर्फ़ बसपा के लिये नहीं कह रहा हूँ मैं इसलिए यह बात कह रहा हूँ कि पूरे देश में इस चीज़ को अपनाया जाना चाहिए जहां आपके उम्मीदवार मैदान में हैं उन्हें वोट कीजिए और कही कहीं निर्दलीय उम्मीदवारों पर भी भरोसा रखिए चाहे पप्पू यादव हों या हिना शहाब । अधिकतर सुरक्षित सीटो पर अगर बसपा को समर्थन किया जाये तो बीजेपी बहुत आसानी से हार सकती है क्योंकि लगभग सभी सुरक्षित सीटों पर मुस्लिम समाज के वोट 25% के क़रीब हैं या उससे अधिक इस तरह 17सीट जीती जा सकती हैं वहीं लगभग 30 लोकसभा सीट ऐसी हैं प्रदेश में जहां मुसलमानो का वोट जीत और हार तय कर सकता है लेकिन जिस समाज का पूरे प्रदेश में 22% वोट है कोई सेक्युलर कहलाने वाला दल उसे प्रतिनिधित्व देने को तैयार नही सिर्फ़ इतना ही नहीं उनका नाम लेने को भी राज़ी नहीं ऐसे में मुसलमानो का बेवक़ूफ़ी भरा फ़ैसला सीधे उन्हें सिर्फ़ वोटर बना देने के लिए काफ़ी होगा ।
विकल्पहीनता का मूर्खतापूर्ण प्रश्न उन्हें दोयम दर्जे का शहरी बना देने के लिए मुँह बायें खड़ा है अब फ़ैसला इस सोये हुए समाज को करना है कि किसी के बहकावे में आना है या प्रतिनिधित्व की लड़ाई लड़ कर भारत को जीत दिलानी है ।