नागरिकता संशोधन बिल यानी बंद होती हुई दुकानों के लिए एक संजीवनी जैसा क्योंकि बाबरी मस्जिद, तीन तलाक़, जैसे मोस्ट सेलिंग प्रोडक्ट के बाज़ार से बाहर होने के बाद साम्प्रदायिकता के बाज़ार में बड़ी मायूसी थी कि अब धंधा कैसा चलेगा ,धार्मिक ठेकेदार भी सकते में थे कि अब क्या होगा?
लेकिन भला हो सरकार का जिसने इस बात का ख्याल करते हुए नागरिक संशोधन जैसा बिकाऊ माल बाज़ार में उपलब्ध करवा दिया और इस माल के आते ही इसकी ज़ोरदार मार्केटिंग शुरू हो गई ,इस प्रोडक्ट के बाज़ार में उतरते ही पुराने माल का कोई मोल नहीं बचा और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बाबरी प्रकरण पर दायर सभी पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज कर दिया गया जिसकी कोई चर्चा भी नहीं हुई मानो यह चलन से बाहर हज़ार पांच सौ के पुराने नोट हो ।
नया माल मार्केटिंग के समय ही इतनी ज़्यादा मांग में आ गया कि लगता है बाज़ार में इसकी उपलब्धता अभी से कम हो रही है ,क्योंकि सभी दुकानों पर इसकी बिक्री के लिए वैसे ही बोर्ड लगे हैं जैसे एक मोबाइल कंपनी के फ़्री कॉल और इंटरनेट सेवा प्रदान करने वाले सिम के लिए लगे थे।
हर दुकानदार इस माल की अपने खरीदारों के हिसाब से गुणवत्ता बता रहा है, खैर हम आप भी कहां तक इस बाज़ार में उलझेंगे आइए आपको कुछ ताज़ी बात बताऊं जमीयत उलमा हिन्द ने आज पूरे भारत में नागरिकता संशोधन बिल के विरोध में प्रदर्शन का ऐलान किया है,भारतीय मुस्लिम लीग पहले ही अपना काम शुरू कर चुकी है असदुद्दीन ओवैसी भी इस संबंध में अपना काम तत्परता से कर रहे हैं वहीं बदरुद्दीन अजमल भी पीछे नहीं हैं ,मौलाना तौकीर रजा खान ने भी बरेली से बिगुल बजा दिया है आपके पास पहले से ही वक़्त कम है में कितने नाम बताऊं, यूं समझ लीजिए कि लगभग हर जगह से बात शुरू कर दी गई है,यहां तक बात पहुंचा दी गई है कि जुमे के बाद हर मस्जिद के बाहर निकालकर प्रदर्शन किया जाए। खानकाहों से भी कहा गया है कि वह भी इसमें शामिल हों ।यानी हर तरफ माहौल तैयार है ,अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हो या फिर जमिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय सब जगह छात्र सड़कों पर तख्ती लेकर आ चुके हैं।
यानी एक सोची समझी रणनीति के अन्तर्गत पूरे विधेयक को मात्र मुसलमानों के खिलाफ बता कर आंदोलन तैयार है ,और राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का साझा एजेंडा कामयाबी की तरफ है ,क्योंकि जो संदेश अभी अभी वोट बैंक में बदले हिन्दू समाज को दिया जाना था वह सफलतापूर्वक दिया जा चुका है कि सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण वाली नहीं बल्कि हिंदुत्व की घोर हिमायती है, हालांकि इसमें ज़रा भी सच्चाई नहीं है लेकिन लोगों को यह बात समझाने में सत्ताधारी पार्टी को सफलता मिल गई है।
उधर अपने अस्तित्व को बचाने के लिए कथित मुस्लिम धार्मिक संस्थाएं एवम् राजनैतिक लोग भी जुट गए हैं इस मुद्दे को भुनाने में और अपने अस्तित्व की लड़ाई को जीतने के लिए, यही वजह रही कि इस बिल के आने के फ़ौरन बाद से प्रदर्शनों का ऐलान शुरू हो गया और आरएसएस के एजेंडे के अनुरूप ही इसे हवा दी गई,
यद्धपि कि यह कानून भारतीय मुसलमान के खिलाफ नहीं है बल्कि भारत के संविधान के खिलाफ है ,और यह भारत के विचार के खिलाफ है, आइडिया ऑफ इंडिया के खिलाफ पारित होने वाले बिल को जिस तरह मुस्लिम संगठनों ने प्रचारित किया वह सीधे तौर पर भारतीय मुसलमानों के साथ किया गया धोखा ही है ,वैसे ही जैसे पहले शरीयत बचाओ आंदोलन खड़ा कर किया गया।
एक पर्सनल लॉ बोर्ड नाम की संस्था बनाकर जिस तरह भारतीय मुसलमानों के हक की लड़ाई के नाम पर जो हासिल किया गया वह किसी से छुपा हुआ नहीं है ,बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी से किस किस को क्या क्या हासिल हुआ यह बताने की ज़रूरत नहीं है,लेकिन फिर से यह सिलसिला शुरू हो गया है।
एक तरफ देश के मुसलमानों ने हाल ही में अाए अदालत के फैसले पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी उसने आरएसएस को कड़ा झटका दिया और सत्ता को सोचने पर मजबूत किया था ।लेकिन अभी यह मामला ठंडा पड़ता उससे पहले ही नागरिकता संशोधन बिल पर शुरू हुए हंगामें ने उसकी चिंताओं को समाप्त कर दिया।
आपको लग रहा होगा कि में मुसलमानों को ख़ामोशी के साथ हर ज़ुल्म के खिलाफ बैठ जाने की सलाह दे रहा हूं ,आपमें कुछ लोग यहां अपनी जवांमर्दी की बात करते हुए यह कहेंगे कि हम बुजदिल नहीं है ,हम हर ज़ुल्म के खिलाफ लड़ेंगे जरूर, हाथ पर हाथ धरकर बैठकर तमाशा नहीं देखेंगे, मैं कहता हूं बिल्कुल ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना ज़रूरी है क्योंकि गर्दन बचाने वालों की कहानी दुनिया बयान नहीं करती बल्कि सर कटाने वालों की दास्तां हर दौर में सुनाई जाती है,लेकिन मै बस इतना कहता हूं कि लड़ाई किस चीज पर लड़ी जायेगी इसका फैसला कैसे होगा ?
क्या कुछ दुकानदारों की दुकानदारी के लिए आप लड़ेंगे? यह बस एक सवाल है क्योंकि आप समझदार हैं बाकी आप समझ रहे हैं ।
नागरिकता संशोधन बिल जब संविधान के खिलाफ है तो लड़ाई संविधान बचाने की होनी चाहिए या फिर इसे मुसलमान विरोधी प्रचारित कर लड़ा जाना चाहिए?
संविधान क्या सिर्फ भारतीय मुसलमानों के लिए है या फिर हर भारतीय के लिए जो उस पर विश्वास रखता है? तो लड़ाई भी तो सबकी हुई
संविधान का अपमान क्या राष्ट्रद्रोह नहीं है? अगर है तो राष्ट्रभक्त को इस लड़ाई को लड़ना चाहिए चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो कि नहीं ? इन सवालों का जवाब आपको खुद अपने आप से लेना है कोई और इसका जवाब नहीं देगा जब आपको इसका जवाब मिल जाएगा तब आपको पता चलेगा कि इस बिल के खिलाफ इस तरह माहौल बनाने वाले ,कि यह मुसलमानों के खिलाफ हैं आपके कितने हिमायती हैं।
सवाल यह भी है कि,संविधान का विरोध क्या भारतीय संविधान के महान शिल्पी बाबा साहब अम्बेडकर का प्रत्यक्ष अपमान नहीं है? कहीं यह संविधान को प्रतिस्थापित कर मनुस्मृति को लागू किए जाने की ओर एक क़दम तो नहीं है? आखिर इन सवालों को क्यों नहीं पूछा जा रहा है? कभी ठंडे दिमाग से सोचिए जरूर, जवाब आप खुद जानते हैं मगर जज्बात में आने के बाद आप भूल जाते हैं यह बात और है।
आखिर क्यों इस बिल को सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ प्रचारित कर आंदोलन खड़ा किया जा रहा है यह आंदोलन संविधान बचाने के लिए क्यों नहीं है?यह आंदोलन संविधान निर्माताओं के अपमान के खिलाफ क्यों नहीं है?आखिर क्यों एन आर सी आने के बाद दलित आदिवासियों के आर्थिक शोषण पर बात नहीं की जा रही है? आनेवाले समय में गरीब दलित आदिवासियों के नागरिकता पाने के लिए भ्रष्ट तंत्र द्वार किए जाने वाले अत्याचार पर बात हो रही है?
अगर कुछ समझ में आया हो तो सोचिए समझिए वरना दुकान पर नया माल आया है शौक से खरीदिए और मुझे जी भर भर के गालियां दीजिए।
यूनुस मोहानी
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