आज भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या विवाद पर अपना फैसला सुना दिया ,जैसा पहले से पता था कि आमजन मिलकर हिंदोस्तान को जिता देंगे और नफरत को हारना होगा हुआ भी वैसा ही हर तरफ से फैसले के स्वागत की बात हुई लोगों ने दिल यहां तक बड़ा किया कि राममंदिर के उसी स्थान पर बनाए जाने के फैसले पर जहां बाबरी मस्जिद मौजूद थी अपने हमवतन भाइयों को मुबारकबाद पेश की यह सब एक तरफ हो रहा था लेकिन बिकाऊ नेतृत्व चाहे वह राजनैतिक नेतृत्व हो या फिर धार्मिक ,उसके चेहरे बेनकाब जरूर हुए ।
हालांकि फैसले को लेकर कहीं न कहीं एक बात कही जा रही है कि अदालत ने फैसला सुनाया है इंसाफ नहीं किया खैर यह तो होगा ही क्योंकि सभी फैसले को अपने अनुसार देखेंगे लेकिन यह बात सिद्ध हो चुकी है कि भारत मजबूत है जिसमें एकजुट रहने की असीम शक्ति है।
एक तरफ हुकूमत ने जहां यह साबित किया कि वह किसी भी मुद्दे को हल करने की ताकत रखती है और उसने अपने नारे मोदी है तो मुमकिन है को चरितार्थ करके दिखाया भी चाहे वह कश्मीर में धारा 370 का मामला हो या फिर बाबरी मस्जिद विवाद को लेकर आया फैसला हो उसके लिए जहां जी भर के आवश्यक कथित धर्मगुरुओं की मुंह भराई की रसम निभाई गई हो या फिर उनकी गलतियों को उनके खिलाफ हथियार बनाया गया हो दोनों तरह से जो माहौल बनाया गया उसमें सरकार की उपलब्धि और बिकाऊ नेतृत्व का असली चेहरा साफ दिखाई देता है।
यहीं से जीत और हार का फैसला होता है इंसाफ मांगने का ढोंग करने वाले क्या वाक़ई में इसके लिए ईमानदारी से काम रहे थे ? सवाल है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस से पहले स्कूटर से चलने वाले बंगलो के मालिक कैसे बने ? आखिर यह धन कहां से आया इसकी जांच क्यों नहीं होनी चाहिए? कुछ लोग मंदिर मस्जिद करते करते कहां से कहां पहुंचे यह आवाम को बताया जाना चाहिए? सवाल यह भी है कि अब बाबरी मामले की पैरवी करने वाले वकील साहब क्यों संतुष्ट नहीं हैं ? असदुद्दीन ओवैसी क्यों परेशान हैं ? कथित धर्मगुरुओं की आवाज़ क्यों नहीं आ रही है यहां तक कि पैग़म्बरे अमन की विलादत की मुबारकबाद देने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहे ऐसा क्यों? यह मेरे द्वारा स्थापित सवाल नहीं है यह सवाल उस आमजन के हैं जिसे रेवड़ की तरह बेचा जाता रहा है।
सवाल जुम्मन मियां से भी है कि अब उनका अपना फैसला क्या है क्योंकि भारत के इतिहास में एक अध्याय नया जुड़ गया है इसके सिवा कुछ नहीं हुआ है तो फिर अब वह क्या करेंगे?
कोई शक्स आकर कहेगा कि उसने निज़ामे मुस्तफा और क़ुरआन के कानून को रिजेक्ट कर आइडिया ऑफ इंडिया को चुना है भारत के संविधान को चुना है और उसे क्या मुसलमानों के पेशवा के तौर पर देखा जायेगा?
आप वैसे इशारे खूब समझते हैं लेकिन कुछ खास मौकों पर आपको यह समझ नहीं आते लिहाज़ा साफ साफ सुनिए यह ज़ुबान महमूद मदनी साहब की है किसी और की नहीं है सिर्फ इस सफ में तन्हा नहीं खड़े हैं ऐसे कई हैं जो कभी धुर विरोधी थे,अब सवाल यह भी है कि ओवैसी के साथ क्या आवाम है यकीन जानिए आवाज़ आएगी हरगिज़ नहीं क्योंकि नफरत की ज़ुबान किसी को पसंद नहीं है।अब हमें समय के पहिए के साथ चलना होगा और अपने अंदर नेतृत्व पैदा करना होगा जो गलती न करे जो उसके खिलाफ हथियार बने और बिकाऊ न हो जो हमें रेवड़ की तरह बेच ले अगर हमने इस फैसले से कुछ सीखा है तो यकीन मानिए हिंदोस्तान जीता है और हारा है बिकाऊ नेतृत्व। फैसले की समीक्षा अब आवश्यक नहीं क्योंकि जो पूरी कौम के साथ नाइंसाफी करते रहे हैं उन्हें इंसाफ जैसे शब्द के उच्चारण का अधिकार भी नहीं है ।आप सहमत हो तो सराहिये वरना मुझे खुले मन से गाली दीजिए ।हिंदोस्तान ज़िंदाबाद ,इंसानियत ज़िंदाबाद ।
यूनुस मोहानी
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