लोकसभा चुनाव का आख़िरी दौर है और कांग्रेस के बीच नेताओं की गुटबाज़ी साफ़ तौर से दिखाई दे रही है हालाँकि यह कोई नई ख़बर नहीं है इस तरह की चीज़ें कांग्रेस में दिखना नई बात भी नहीं है लेकिन लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान अगर इस तरह की चीज दिखाई देती हैं तो यह साफ़ तौर से जनता में एक नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है ।
29 मई यानी लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के प्रचार बंद होने के ठीक एक दिन पहले कांग्रेस की यह गुटबाज़ी और राहुल को अपना नेता न मानने की रवायत पर अमल करते हुए पंजाब की संगरूर लोकसभा सीट में प्रचार करते हुए मलेरकोटला में अल्पसंख्यक कांग्रेस के चेयरमैन इमरान प्रतापगढ़ी की सभा का आयोजन हुआ पहले राज्यसभा सांसद इमरान की टीम द्वारा इमरान का पोस्टर बड़ा लगाने की बात की गई ऐसा मंच सजाने वाले लोगों का कहना है फिर मलेरकोटला की पूर्व विधायक और पंजाब मे सिद्धू गुट की मुख्य सदस्य पूर्व मंत्री रज़िया सुल्ताना ने अपना दबाव बनाकर अपना और अपनी बेटी का बड़ा फोटो लगाने का दबाव बनाया जिसके बाद साफ़ तौर से जो चित्र उभर कर आया उसमें कहीं देश में अलग छवि बनाने वाले राष्ट्रीय राजनैतिक संत राहुल गांधी का चित्र ग़ायब कर दिया गया पूरे पोस्टर पर कहीं कांग्रेस का नाम नहीं नज़र आया ।
इमरान का मुस्कुराता चेहरा तो दिखा लेकिन राहुल की विचारधारा से पलायन करते कांग्रेसी भी साफ़ दिखाई दिये सिर्फ़ इतना ही नहीं कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मल्लिका अर्जुन खड़गे भी इस पूरे प्रचार कार्यक्रम में अपनी जगह नहीं बना पाये जबकि कार्यक्रम पंजाब में था तब भी पूर्व प्रधानमंत्री सरदार मनमोहन सिंह की तस्वीर भी लगाने की इजाज़त रज़िया सुल्ताना द्वारा नहीं दी गई ।
एक तरफ़ जहां हर तरफ़ इस चुनाव में राहुल बनाम मोदी का खुला मुक़ाबला है वहीं कांग्रेस के अपने अपने इलाक़ों के सूरमा राहुल से खुली बग़ावत करते साफ़ दिखते हैं जगह जगह कांग्रेस इस तरह के नेताओं की बंधक दिखाई देती है ।
इमरान प्रतापगढ़ी अभी भी अपने मुशायरों वाली पहचान और आदत से बाज आने को तैयार नहीं दिखते उम्मीदवारों से तरह तरह की डिमांड के क़िस्से खुले आम सुनाई देते हैं सिर्फ़ इतना ही नहीं उनकी ख़ुद की पीआर टीम यह भी तय करती है कि पोस्टर का डिज़ाइन कैसा होगा और उनके साहब का फोटो कितना बड़ा लगाया जायेगा चाहे राष्ट्रीय नेतृत्व का फोटो लगे या न लगे लेकिन इमरान का फोटो बड़ा होना चाहिए कांग्रेस की यही मजबूरियाँ और कमज़ोरियों कहीं न कहीं राहुल गांधी की कोशिश को हल्का करती रही हैं ।
जब जनता राहुल गांधी को अपने नेता के रूप में स्वीकार कर रही है ऐसे में इन ज़मीन से कटे हुए नेताओं का रवैया डराता है की कहीं कांग्रेस के लिए जो जनता तैयार है क्या आपसी बग़ावत और गट बाज़ी के चलते पिछड़ तो नहीं जाएगी और उन्हें फिर से मुँह की खानी पड़ेगी ।