आपको अजीब लग रहा होगा कि मैं यह क्या कह रहा हूँ लेकिन यह एक ऐसा सच है जिसे घोर विरोधी भी अपनी अंतरात्मा से स्वीकार करता है , राहुल गांधी ने जिस तरह एक झटके में अपने परिश्रम और मज़बूत इच्छाशक्ति से बीजेपी के प्रोपेगंडा की हवा निकाली और अपनी पप्पू वाली इमेज जोकि करोड़ो रुपये खर्च करके उनकी बनाई गई थी उससे बाहर निकलकर ख़ुद को एक ताकतवर सच्चे नेता के तौर पर स्थापित किया यह कोई सच्चा व्यक्ति ही कर सकता है कोई नाटक मंडली का बौना किरदार नहीं ।
अब इस बात को तो कोई नहीं नकार सकता कि जिस तरह राहुल गांधी ने अकेले संघर्ष किया है बिना अपनी पार्टी के भरपूर समर्थन के उससे यह साबित होता है कि उनमें क्षमता है हवा के विपरीत चलने की ,वही एक मात्र उम्मीद हैं इस देश को सही दिशा देने की क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा के बाद से जिस तरह का रूप राहुल गांधी का सामने आया है सब यह मानने पर मजबूर हो गये कि न सिर्फ़ यह व्यक्ति इरादे का फ़ौलादी है बल्कि इसकी सोच भी व्यापक है साथ ही इसे डराया नहीं जा सकता क्योंकि यह लड़ने की कला जानता है इतना ही नहीं जो लोग विदेशों में भारत का डंका बजने की बात कर सारे तर्कों को काटने पर तुले रहते हैं उन्होंने विदेशों में जब राहुल को बोलते सुना तो वह उनके ज्ञान के क़ायल भी हो गये ।
यह सारी खूबियों के साथ राहुल गांधी ने भारत वासियों के बीच ख़ुद को एक सच्चा नेता मनवा लिया जबकि उनके ख़िलाफ़ उनके विरोधी ही नहीं बल्कि उन्हीं की पार्टी के लोग बैटिंग करते रहे और अब भी लगातार यह काम जारी है ।इसी बीच जब राहुल गांधी ने यह कहा कि कांग्रेस में जितने लोग आरएसएस की विचारधारा के समर्थक हैं छोड़ कर चले जायें तो काफ़ी नेता सहम गये उन्होंने मुखर विरोध तो बंद किया लेकिन समर्थन तक आज भी नहीं पहुँचे और भ्रष्ट आचरण वाले अधिकतर लोग कांग्रेस छोड़ कर जाते रहे और अभी भी यह सिलसिला रुका नहीं है अवसरवादी अभी भी अपना ठिकाना ढूँढ रहे हैं ।
कांग्रेस जितना विपक्ष से लड़ रही है उससे अधिक बड़ी जंग उसे अपने भीतर लड़नी पड़ रही है क्योंकि बंद वातानुकूलित कमरों के नेता किसी भी तरह अपने पद और कमरे छोड़ने को तैयार नहीं है और साथ ही उनकी इच्छा अपने परिवार को वह सब सौंपने की है जोकि उन्हें कांग्रेस ने दिया इसके चलते वह सिर्फ़ अपने परिवार के लिए किसी भी तरह का समझौता कर रहे हैं और राहुल की लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं ।
राहुल गांधी संगठन के सहयोग के बिना सबसे बड़े नेता के रूप में ख़ुद को स्थापित कर चुके हैं जिन्हें लोग सुनना चाहते हैं जबकि नरेंद्र मोदी के साथ बीजेपी का संगठन ,राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और बाक़ी आनुषंगिक संगठन ,मीडिया ,ट्रोल आर्मी ,सब एक जुट हैं उसके बाद भी उनकी इमेज को डेंट लगने से नहीं बचा पा रहे हैं वहीं राहुल अकेले अपने आत्मबल और सच के साथ खड़े हैं और जनता धीरे धीरे उनके पीछे लामबंद होना शुरू हो चुकी है ।
अब बात करते हैं कांग्रेस की यह पार्टी निकम्मे नेताओं का कबाड़ख़ाना बनी हुई है जिनकी कोई ज़मीनी पकड़ नहीं है जब पार्टी सत्ता में थी तब मलाई चाटने वाले यह सब अब संघर्ष के बिना दुबारा मलाई के इंतज़ार में हैं ।यहाँ तक तो सही था लेकिन यह अपने स्वार्थ के कारण युवा कार्यकर्ता या ऐसे लोग जोकि ज़मीन पर पकड़ रखते हैं उन्हें आगे नहीं बढ़ने देने के लिए पूरा ज़ोर लगाते हैं और राहुल से मिलने न देने के लिए पूरा प्रयास करते हैं ,क्योंकि यह जानते हैं अगर यह लोग राहुल से मिले तो निकम्मों की गद्दी ख़तरे में पड़ेगी और यही असुरक्षा की भावना और अति महत्वाकांक्षा का भाव कांग्रेस को बार बार छल रहा है ।
जब किसी नेता को लगता है कि उसकी कलई खुल गई वह दबाव बनाता है और जब दबाव नहीं बन पाता फ़ौरन रास्ता बदल कर कांग्रेस को छोड़ देता है वैसे भी पार्टी के भीतर एक पूरा संघी गिरोह सक्रिय है जिसका काम कांग्रेस की मूल विचारधारा को परवान न चढ़ने देने की निरंतर कोशिश करना है ।लेकिन सबसे अधिक हास्यास्पद बात यह है कि यही मंडली बड़े पद हथियाने में कामयाब है यहाँ तक कि टिकट के बँटवारे में भी इनका दख़ल खूब है जिसे राहुल नहीं चाहते वही इनकी पसंद होता है और उसके लिए यह आपस में ऐसी चाल चलते हैं कि इनका मनमाना फ़ैसला होता है जिसके बाद लोग कांग्रेस को शक की निगाहों से देखते हैं ।
वहीं कांग्रेस की एक और बड़ी कमज़ोरी आयातित विचार भी है जिसे कांग्रेस अपना मूल विचार त्याग कर अपना चुकी है सॉफ्ट हिंदुत्व का नज़रिया इसी आयातित विचारधारा की उपज है जोकि सीधे तौर पर कांग्रेस को डुबाने के लिए काफ़ी है ।
कुल मिलाकर एक आकर्षक और चमत्कारिक नेता होने के बावजूद कांग्रेस अपने भस्मासुरों से परेशान है और राहुल गांधी उस तरह से कामयाब नहीं हो पा रहे हैं जैसा उन्हें होना चाहिए लेकिन यह बात अब स्थापित हो चुकी है कि राहुल ने भारत के मन और मानस पर अपनी हुकूमत क़ायम कर दी है सिर्फ़ चंद नफ़रत के गिरफ़्तार लोग ही अब उनके ख़िलाफ़ हैं ऐसे में उनके लिए जो अंडर करंट है वह इण्डिया गठबंधन को पूरी शक्ति दे रहा है ।
यही वजह है ज़मीन पर कोई भी विश्लेषक यह नहीं बता पा रहा है कि किस पार्टी की लहर है क्योंकि किसी भी पार्टी के पक्ष में कोई लहर नहीं है बल्कि वोटर उत्साहहीन है लेकिन राहुल की लहर दिख रही है ।
राहुल गांधी ने जो बीजेपी का चक्रव्यूह तोड़ा है उसने उन्हें एक राष्ट्रीय राजनैतिक संत के रूप में स्थापित कर दिया है लोगों को उनसे उम्मीद है लेकिन अल्पसंख्यक कांग्रेस से आज भी डरे हुए हैं वह पिछले ज़ख़्म नहीं भूले हैं लेकिन उन्हें राहुल गांधी से उम्मीद है ।