लाशें वोट नहीं देंती!!

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आप शायद इस सच को नहीं समझ पा रहे हों और बेमकसद सरकार को कोसने बैठ गए हों लेकिन आपको इस सच को समझना होगा क्योंकि अगर आप इसे नहीं समझ पायेंगे तो आप ऐसी बड़ी गलती कर बैठेंगे जिसे एहसान फरामोशी कहा जायेगा और अगर आगे इतिहास लिखने का प्रचलन बाकी रहा तो आपका नाम काले अक्षरों में दर्ज होगा जिसे पढ़कर लोग आपको न जाने क्या क्या कहेंगे और यह सिलसिला थमेगा नहीं ,भला कैसे आप सरकार को कुछ कह सकते हैं बताइए क्या कुछ नहीं कर रही सरकार आपके लिए लेकिन आप हैं कि बिना सोचे समझे कुछ भी कहने लगते हैं।

जी हां आप सही समझ रहे हैं मै उड़ीसा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे की ही बात कर रहा हूं और इस वक्त मैं बड़ा बेचैन हूं इसलिए नहीं कि काफी लोग हताहत हुए हैं बल्कि इसलिए कि सोशल मीडिया पर जिस तरह की हताहत लोगों की वीडियो डाल कर सरकार के खिलाफ बयानबाज़ी की जा रही है वह बर्दाश्त करने योग्य नहीं है।
भला बताइए वर्षों में अगर इतने बड़े देश में कहीं एक आधी ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई तो इतना चीखने की क्या जरूरत है फिर दो या तीन सौ लोगों की मौत का क्या कहा जाए ?जब कोरोना में करोड़ों लाशें देख चुके हैं इससे बुरे हाल में, तो अब सरकार को बदनाम करने की साजिश क्यों? बेचारे प्रधानमंत्री जी ऐसी चिलचिलाती धूप में कहीं लोगों के साथ कोई काम की मीटिंग किसी एयर कंडीशन कमरे में कर रहे थे दुर्घटना की सूचना मिली और फौरन कपड़े बदल कर बेचारे दुर्घटना स्थल आ गए जिंदा लोगों से मुलाकात करने और अपने नायक को देखकर लोग उत्साहित हो गए और नारे लगाने लगे तो इसमें विपक्ष ने उनकी आलोचना करना शुरू कर दी ,भला यह कोई बात है आखिर ऐसी गर्मी में वह वहां पधारे इसकी तो प्रशंसा होनी चाहिए और जो लोग घायल हैं अभी वो तो वोटर हैं उनसे मिलना भी जरूरी है कि नहीं विपक्ष यह बात समझने को तैयार नहीं है।

मुझे लगता है कि शायद विपक्ष की हार का कारण भी यही है वह लाशों की बात कर रहा है जोकि अब वोटर नहीं हैं और प्रधानमंत्री जी सिर्फ वोटर या फिर वोट की संभावना पर कार्य करते हैं,खैर मुझे क्या पड़ी है विपक्ष को समझाने की मुझे तो गहरा आघात पहुंचा है प्रधानमंत्री जी के कपड़े बदल कर जाने को लेकर और वहां उनके नाम के नारे लगाने पर जो उनकी आलोचना हो रही है उससे ,आपको भी यह बात कहीं न कहीं कचोट रही होगी?

ज़रा सोचिए कुछ लोग इतने बड़े देश में मर जाते हैं तो यह कौन सी बड़ी बात है और उनकी लाशों के साथ निर्दयता और निर्लज्जता के साथ अपमान किया जाता है ,भला बताइए यह इस विशाल देश में कबसे इतना बड़ा मुद्दा होने लगा ? जब गरीब की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है तो उसकी लाश पर इतना विलाप क्यों? यही क्या कम है कि लाश मिल रही है वरना राशन तो सरकार दे ही रही है न?
जिस विशाल देश में 80 करोड़ लोगों को फ्री राशन दे रही है उस देश की जनता को कतई कोई अधिकार नहीं है कि वह इस तरह की फिजूल बात करें और सरकार पर आरोप लगाने का काम करें।गरीब के लिए जिंदा रह कर भी क्या है जो उसके मर जाने पर विलाप किया जाए यह कोई रॉकेट साइंस तो नहीं है जो आपकी बुद्धि में नहीं आ रही है।

और कुछ लोग तो वही पुराना राग अलाप रहें हैं कि लाल बहादुर शास्त्री जी ने ट्रेन दुर्घटना पर इस्तीफा दे दिया था हादसे की जिम्मेदारी लेते हुए इसलिए अब भी ऐसा हो , उन लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि तब हादसा नेहरू जी की गलती से हुआ होगा जिसके लिए शास्त्री जी से इस्तीफा दिलवा दिया गया होगा लेकिन मीडिया कमज़ोर था सच नहीं दिखा पा रहा था लेकिन अब मीडिया ताकतवर है आज़ाद है हर पल की खबर दिखा देता है उसके पास सूत्र हैं जिनके हवाले से कोई भी खबर उससे छुप नहीं सकती ,खुद सोचिए सरकार ने दो हजार के नोट में चिप लगी होने की बात कितनी छुपाई लेकिन क्या छुप सकी ?तो सोचिए अगर इस हादसे की जिम्मेदारी रेल मंत्री और प्रधानमंत्री की बनती तो क्या छुप सकती थी ?तो जब जिम्मेदारी नहीं तो इस्तीफा कैसा ?

और एक बात जान लीजिए तब में और अब में बहुत फर्क है तब सरकार के पास कोई विकल्प नहीं था अगर ज्यादा दुर्घटनाएं हों तो कुछ नहीं हो सकता था लेकिन अब तो विकल्प है ! फौरन रेल को अडानी जी को सौंप दिया जाये ताकि वह इसकी व्यवस्था को सुधार सकें नेहरू जी ने जो खराब सिस्टम बनाया हुआ है उसे बदल कर रेल को मुनाफे में लाया जाए ऐसा करने का विकल्प पहले मौजूद नहीं था।
खैर अब खामोश रहने की आदत डालिए विपक्ष के फैलाए झूठ में मत उलझिए गरीब की लाश का क्या है जब उसकी जिंदगी में कोई कद्र नहीं तो मरने के बाद क्या होनी चाहिए ? मर गया उठा कर ट्रक पर लाद दिया और क्या करें भला आप बताइए ? कफन जरूरी तो नहीं सबको दिया जाए और जो बहुत बात कर रहे हैं वह जवाब दें क्या हर गरीब को कफन नसीब है जो यहां इतना चिल्ला रहे हैं?
गरीब इंसान मर गया तो मर गया हां अगर जिंदा होता तो चुनाव के करीब कुछ इसकी भी इज्जत हो सकती है वरना गरीब है किसी साहब के घर का कुत्ता थोड़े नहीं है जो अलग से कुत्ते की मौत पर लोग शोक व्यक्त करने आए और चंदन की चिता में उसे जलाया जाए।

गरीब की मौत, मौत नहीं होती उसकी जिंदगी की कैद से रिहाई होती है तो रिहाई पर शोक कैसा? गरीब गरीब होता है उसकी न जिंदा रहते इज़्ज़त होती है न उसकी लाश की तो यह विलाप कैसा? लाशें वोट नहीं देती तो उनका सम्मान कैसा?वैसे राशन सबको मिलेगा कफन नहीं मिला तो नहीं सही।
ॐ शांति

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