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भारत में आम चुनाव के नतीजे आ गये जिसमें किसी भी दल को भारत की जनता ने स्पष्ट बहुमत नहीं दिया यह कोई खबर ऐसी नहीं है जिसे मैं आपको दूँ क्योंकि आप लगातार ख़ुद बदलते आँकड़ों के साथ पूरा दिन काट चुके हैं ख़ैर अंतिम परिणाम सबको पता है और वह यह है कि बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में अब भी है लेकिन अकेले बहुमत से 32 सीट पीछे हालाँकि एनडीए ने स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया है वहीं कांग्रेस का गठबंधन भी सत्ता से ज़्यादा दूर नहीं है हल्की सी हलचल या आपसी खींच तान से तस्वीर बदलने की स्थिति है ।

मोदी की इमेज को बढ़ा झटका लगा है और अब वह अपनी चमक खोते साफ़ तौर से दिखे जिस तरह उन्हें बनारस में संघर्ष करना पड़ा और अजय राय से कड़ी टक्कर हुई उसने साफ़ किया कि अब देश उनके जादू से बाहर आ रहा है वहीं राहुल गांधी ने भारतीय राजनीत में ख़ुद को एक परिपक्व और ईमानदार नेता के तौर पर स्थापित कर लिया है जनता ने उन्हें स्वीकारा है और उनकी मेहनत को सराहा भी है ।

आइये अब बात मुद्दे की करते हैं और मुद्दा यह है कि भारत की नई सरकार का स्वरूप क्या होगा ? यह एक बड़ा सवाल है क्योंकि अभी तय नहीं है सबके नितीश किसके हैं वहीं आंध्र में वापसी करने वाले चंद्र बाबू नायडू क्या निर्णय लेंगे अगर यह दोनों एनडीए के साथ रहते हैं तो सरकार एनडीए की बनना तय है लेकिन इसमें यह तय नहीं है कि प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी इस सरकार का चेहरा होंगे क्योंकि कहीं न कहीं राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी कुछ अलग तरह से सोच रहा है ।
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वहीं नितीश कुमार अगर पाला बदलते हैं और तेलगू देशम पार्टी भी उनका साथ देती है तो तस्वीर कुछ और हो सकती है यह भी मुमकिन है कि इंडिया गठबंधन की सरकार बन जाए और उसका चेहरा नितीश कुमार हों क्योंकि इससे अच्छा मौक़ा नितीश कुमार के लिए नहीं हो सकता क्योंकि जहां उन्होंने बिहार में अपने आपको साबित कर दिया है वहीं तेजस्वी को बड़ी पटखनी दी है और अब उनका विरोध करने की ताक़त भी आरजेडी के पास नहीं है हालाँकि अखिलेश यादव या ममता बनर्जी ज़रूर कुछ नख़रे दिखा सकते है। लेकिन यह दोनों किसी भी कीमत पर अगर इंडिया गठबंधन सरकार बनाता है तो उसके विरोध में नहीं जा सकते क्योंकि इससे साफ़ तौर पर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव सीधे तौर पर प्रभावित होंगे वहीं ईडी और सीबीआई भी एक फैक्टर ज़रूर हैं यानी यहाँ भी संभावना है ।
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बाक़ी महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश सहित बिहार के छोटे दलों में चिराग़ पासवान को छोड़कर सभी दल इंडिया गठबंधन के साथ खड़े हो सकते हैं अगर ऐसा होता है तो बीजेपी को सत्ता से दूर बैठना होगा हालाँकि विपक्ष के रूप में वह सत्ता पक्ष से अधिक मज़बूत होगी और एक स्वस्थ्य लोकतंत्र की संसद खूबसूरत दिखेगी।
वहीं अगर बीजेपी का गठबंधन सत्ता में वापसी करता है तो उसे दो नख़रीली गर्लफ्रेंड के साथ निभाना होगा जो हर सुबह और हर रात नई नई फ़रमाइश लेकर खड़ी होंगी और सुकून से रहने के लिए उनकी माँग पूरी करनी होगी स्तिथि ऐसी है कि दोनों की बात माननी पड़ेगी सिर्फ़ इतना ही नहीं इनकी मनमानी देखकर बाक़ी दल भी आँख दिखायेंगे यानी सरकार की स्थिति ऐसी होगी जैसे कोई आशिक़ अपनी महबूबाओं के फेरे में हो और किसी एक की नाराज़गी से उसका घर बर्बाद हो जायेगा।
यानी भारत की जनता ने तानाशाही जैसी संभावनाओं को पूरी तरह से ख़त्म करते हुए ऐसा खेल रच दिया है कि अब तानाशाही का इल्ज़ाम झेल रहे प्रधानमंत्री मोदी की स्थित उस आशिक़ जैसी कर दी है जो अपनी दो लिवइन पार्टनर को मैनेज करने में हलकान रहेगा यहाँ एक और दिलचस्प खेल भी है और वह यह है कि इस बार बीजेपी ऑपरेशन लोटस चलाने की स्थिति में भी नहीं है जिससे वह अपनी स्थिति मज़बूत करने कम से कम एक गर्लफ़्रेंड के दबाव से बाहर आ सके !
कुल मिलाकर सरकार कोई भी बनाये लेकिन इसके स्थायित्व की कोई गारंटी नहीं होगी देश वापिस यू टर्न लेकर 90 के दशक में आ खड़ा हुआ है गठबंधन वाली कमज़ोर सरकार का आगमन है और यह लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहतर भी है वैसे लोकतंत्र लिवइन में है और इस रिश्ते के लंबे चलने की संभावना कम ही होती है क्योंकि जब तक ज़रूरत तब तक साथ वरना रास्ते जुदा क्योंकि लिवइन रिलेशन में कोई कमिटमेंट नहीं होता भारत को लिवइन में लोकतंत्र मुबारक !

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