देश में किसान आंदोलन चल रहा है और इसके चलते आज यानी 8 दिसंबर को भारत बंद का ऐलान किया गया और आज किसान आंदोलन के चलते इसका छिटपुट असर देखा जा रहा है हालांकि कहने को देश के प्रमुख 24 विपक्षी राजनैतिक दलों का इस आंदोलन को समर्थन है और आजके भारत बंद का भी समर्थन किया गया है मगर यह सिर्फ एक छलावे से अधिक कुछ नहीं प्रतीत होता आप मेरी इस बात से असहमत हो सकते हैं लेकिन तथ्यों को देखने के बाद आप इस विचार से सहमत होंगे।
एक तरफ विपक्ष आंदोलन का समर्थन कर रहा है दूसरी तरफ बीजेपी इसके विरोध में खड़ी है यह अजीब विडंबना है कि सत्ताधारी दल इस पूरे आंदोलन को मोदी विरोध के रूप में चित्रित कर रहा है किसान जिस बात पर आक्रोशित हैं अगर उसको सही रूप से समझ लिया जाए तो यह कानून सिर्फ भारतीय किसानों के विरोध में नहीं है बल्कि आमजन के विरोध में है क्योंकि इसके माध्यम से बड़े कारोबारी किसान की सारी फसल मनमाने दामों में खरीद लेंगे और उसके बाद आमजन को अपने अनुसार बेचेंगे जैसे 1 रुपए किलो का आलू चिप्स के पैकेट में 1000 रुपए किलो बेचा जाता है इससे आमजन को नुकसान होने जा रहा है वह यह होगा कि बड़ी कंपनियां मंडी के बाहर ही किसानों से खरीद लेंगी और छोटे व्यापारी इसे अधिक दाम में प्राप्त कर सकेंगे लिहाज़ा वह अपने यहां थोड़ा ज़्यादा दाम लेकर बेचेंगे ऐसे में यह बड़ी कंपनियां सस्ते दरों पर कुछ दिन सामान उपलब्ध करायेंगी जिस कारण सभी छोटे व्यापारी समाप्त हो जायेंगे और इस प्रकार इन बड़ी कंपनियों का एकाधिकार स्थापित हो जायेगा फिर यह मनमानी कीमत पर ही सामान बेचेंगी और खरीदना हमारी मजबूरी होगी।ऐसे में कभी भी एक तय कीमत से नीचे हमें कोई सामग्री उपलब्ध नहीं हो सकेगी।
यानी सीधे तौर पर यह बड़े पूंजीपतियों को और अधिक समृद्ध बनाने का एक मसौदा भर है लेकिन आम भारत के लोग इसे इस ढंग से नहीं समझना चाहते और न ही किसान और न हमारा मुख्यधारा का मीडिया इस बात को बता रहा है और उस पूरे आंदोलन को सिर्फ किसान से जोड़ कर देखा जा रहा है जबकि सत्यता यह है कि यह पूरी लड़ाई भारत के लोगों की न्यू इंडिया के खिलाफ है,क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत के लगभग 70% लोग कृषि पर ही निर्भर है ऐसे में ऐसा कुछ भी जो किसानों को नुकसान पहुंचाने वाला और पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने वाला हो भारत विरोधी ही है ।
अब बात है विपक्ष की जो अपनी संदिग्ध भूमिका के चलते जनसामान्य का विश्वास हासिल नहीं कर पा रहा है और लगातार हार का सामना कर रहा है लेकिन वह सुधार के लिए तैयार नहीं है और यह भ्रम पाले हुए है कि जनता मौजूदा सरकार से तंग आकर उसका समर्थन मजबूरी में करेगी जबकि ऐसा सच नहीं है और यही मुख्य कारण अभी हाल में बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे से साबित हुआ है जहां भारतीय जनता पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया है,क्योंकि वहां पर मुख्य विपक्ष के नेता तेजस्वी इसी भ्रम में अपने वातानुकूलित कमरे से सोशल मीडिया से जनता की लड़ाई लड़ रहे थे और समझ रहे थे कि मात्र 1 माह में धुंआधार प्रचार कर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथिया लेंगे जबकि सत्ता में भागीदार भारतीय जनता पार्टी ने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं की और जनता तक अपना संदेश पहुंचा दिया।
इसी तरह का हाल उत्तर प्रदेश में भी है जहां अखिलेश यादव कमरे में कैद होकर जनता की लड़ाई लड़ रहे हैं और मायावती का सड़कों पर संघर्ष का कोई इतिहास ही नहीं रहा है ,कांग्रेस अभी टूरिज्म पॉलिटिक्स से बाहर नहीं आती दिख रही है बाकी काम उसके लिए बिहार के नतीजों ने कर दिया जहां प्रदेश नेतृत्व का बिकाऊ चेहरा सामने आया और टिकट बंटवारे से लेकर चुनाव प्रबंधन तक जो कुछ हुआ उसका असर परिणाम पर दिखा लेकिन कांग्रेस नेतृत्व अभी भी ज़मीनी कार्यकर्ताओं को तरजीह देने को तैयार नहीं और सत्ता के भस्मासुर रहे नेताओं को ही ढो रही है,यही वजह है कि वह अप्रासंगिक होती जा रही है।
कांग्रेस का अभी कोई भविष्य नहीं दिख रहा है क्योंकि वह स्वयं भी आर एस एस की सेट विचारधारा की पिछलग्गू ही बनी हुई है और सॉफ्ट हिंदुत्व जैसे काल्पनिक विचार को आत्मसात किए हुए है जिसकी भारतीय समाज में कम से कम अब कोई स्वीकार्यता नहीं है,क्योंकि भारतीय जनता पार्टी से लड़ने के लिए या तो आपको पूर्णतया धर्मनिरपेक्ष होना होगा या फिर कट्टर हिंदुत्व का समर्थक क्योंकि जब चुनाव हिंदुत्व पर लड़ा जायेगा तो इस विचार के समर्थक अधिक कट्टर हिंदुत्व का ही समर्थन करेंगे और ऐसे में सॉफ्ट हिंदुत्व का विचार हारेगा ,यह भी बिहार में लेफ्ट के अच्छे प्रदर्शन से साफ हुआ कि दक्षिण पंथी विचार को वामपंथी विचार से ही हराया जा सकता है इसका सीधा संदेश है कि कोई भी छदम आवरण अब आपको सफलता नहीं दिला सकता। इसे सम्पूर्ण विपक्ष को जितनी भी जल्दी हो समझ लेना चाहिए,क्योंकि भारत का अभी भी विचार धर्मनिरपेक्ष ही है और 65% भारत इसका समर्थन करता है ,दरअसल विपक्ष की हर मोर्चे पर हार उसके दोहरे चरित्र के ही कारण है किसी धांधली की बात करना बचकाना है और अपनी असफलता को बेईमानी के राग का आवरण पहनाना ही है यदि इस बात में सत्यता नहीं है तो राष्ट्रीय जनता दल सड़क पर इसके खिलाफ क्यों नहीं उतरता,यही हाल समाजवादी पार्टी का भी है जो सड़क से दूर हुई और चाटुकारिता से सरकार बनाने का सपना देख रही है।
कृषि बिल के विरोध में किसान आंदोलन का विपक्ष द्वारा समर्थन भी कुछ इस प्रकार किया जा रहा है और इसके लिए किसानों के भारत बंद के आह्वाहन से एक दिन पहले ही 7 दिसंबर को ही विपक्ष ने अपना प्रदर्शन कर दिया और सांकेतिक गिरफ्तारी के बाद बड़े नेताओं ने मुचलके भर के आज घरों में रहने का मार्ग प्रशस्त कर लिया और किसानों के समर्थन का नाटक भी, आज कहीं कोई बड़े विपक्षी दल का प्रमुख सड़क पर किसानों के समर्थन में नहीं है और ट्वीट कर रहा है यही दोगला चरित्र हार का कारण है,क्योंकि नेता के घर में बैठने से कार्यकर्ता का मनोबल टूटता है और वह सड़क पर उतरने से डरता है ।
अखिलेश ने प्रदर्शन के लिए कन्नौज चुना जबकि यदि वह लखनऊ में अपने कार्यकर्ताओं का आह्वाहन करते तो जवानी कुर्बान गैंग के हजारों कार्यकर्ता पहुंच जाते और प्रदेश में एक बड़ा संदेश जाता और आज 8 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की सड़कों पर एक जनसमूह दिखता जोकि आज नदारद है और चंद लोगों का सांकेतिक विरोध और मीडिया में फोटो का काम किया जा रहा है , समय सम्पूर्ण विपक्ष को आत्ममंथन कर वापिस सड़क पर आने का आह्वाहन कर रहा है अगर अभी आत्मचिंतन नहीं हुआ तो जीत की आस भी बेईमानी ही है। 7 दिसंबर का प्रदर्शन सिर्फ नूरा कुश्ती से बढ़कर कुछ भी नहीं और भारत के लोगों से छल है।
यूनुस मोहानी
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