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13 मई ,लखनऊ ,मौलाना हसरत मोहानी की पुण्यतिथि के अवसर पर लखनऊ में मौलाना हसरत मोहानी कौमी वेलफेयर फाऊंडेशन द्वारा मौलाना हसरत मोहानी की कब्र पर चादर चढ़ाई गई और कुरानख्वानी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर फाऊंडेशन द्वारा कई मस्जिदों में अफ्तार का इंतजाम किया गया एवम् एक गोष्ठी का आयोजन मोहान में किया गया।
गोष्ठी में बोलते हुए फाऊंडेशन के अध्यक्ष यूनुस मोहानी ने कहा कि मौलाना हसरत मोहानी को महज एक शायर के तौर पर प्रस्तुत किया गया जोकि एक गहरी साजिश का हिस्सा है क्योंकि अगर उनके कारनामों की
को याद रखा जाता तो आज देश में सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमीशन की जरूरत नहीं होती।
उन्होंने कहा कि हसरत ने कहा था कि मैं मुल्क के मुसलमानों के हक की लड़ाई लड़ूंगा मरते दम तक और उन्हें उनका हक पहुंचा कर रहूंगा हसरत की हिन्दुस्तानी मुसलमानों को लेकर यह प्रतिबद्धता सत्ता शीर्ष को रास नहीं आई और उनकी क़ुर्बानियों का उनकी देशभक्ति का मोल उन्हें भुला कर चुका दिया गया।
हसरत के दिए नारे इंकलाब ज़िंदाबाद से लोग आज भी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं लेकिन वह हसरत को नहीं जानते ,हसरत एक पत्रकार के रूप में ब्रिटिश प्रेस एक्ट के अंतर्गत जेल जाने वाले पहले पत्रकार थे,स्वदेशी आंदोलन के ब्रांड एम्बेसडर और देश में पहला स्वदेशी स्टोर खोल उसका संचालन करने वाले व्यक्ति थे हसरत मोहानी,स्वतंत्रता संग्राम में गांधी की पंक्ति में खड़े नेता का नाम हसरत है ,पूर्ण स्वराज की सर्वप्रथम मांग करने वाले हसरत मोहानी थे ,लेकिन अफसोस आज मुसलमान उन्हें अगर जानते भी हैं तो एक शायर के तौर पर।
यूनुस मोहानी ने कहा कि आज़ाद भारत में हक की बात करने की सजा हसरत को मिली।
एडवोकेट परमानंद प्रसाद ने कहा कि अम्बेडकर के परममित्र ने समाजवाद और सामाजिक न्याय को अपने कर्म से प्रस्तुत किया और हसरत मोहानी ने बाबा साहब को अपनी प्लेट में साथ खाना खिलाया ,जिस समय छुआछूत चरम पर था सामाजिक न्याय की लड़ाई में उनका बड़ा योगदान रहा लेकिन अम्बेडकर के मानने वाले भी आज हसरत को नहीं जानते यह विडंबना है।
पूनम त्रिपाठी ने कहा असीम कृष्ण भक्त मौलाना हसरत मोहानी के विचार से ही देश में नफरत को हराया जा सकता है वह गंगा जमुनी तहजीब की अद्भुत मिसाल थे।
मोनिस मोहानी ने कहा कि देश में रहने वाले सभी समुदायों को उनकी संख्या के अनुसार भागीदारी मिलनी चाहिए इसी लड़ाई को हसरत ने लड़ा जिसके फल के रूप में उनकी कुर्बानियों को भुला दिया गया क्योंकि उन्होंने सत्ता की चापलूसी नहीं की।
इस अवसर पर मोहम्मद अजीम नक्वी,मोहम्मद इरफान उर्फी ,सलीम,मोहम्मद इकराम फरीदी,नवीन,अनवर सिद्दीक़ी ,मोहम्मद ज़ुबैर, शारिक मीनाई,मोहम्मद जावेद,नैन्सी,माया,नंदनी,सहित सैकड़ों लोगों ने शिरकत की।