जी हां मैंने गांधी को मारा है मैं यह सच डंके की चोट पर बोल रहा हूं कि मैंने ही गांधी को मारा है अब आप कहेंगे तुम पागल हो गए हो या वक़्त से पहले सठिया गये हो ,क्योंकि गांधी जी की जब हत्या हुई तब तो तुम पैदा भी नहीं हुए थे, आखिर उनके क़त्ल से तुम्हारा क्या लेना देना, लेकिन में अपना बयान बदलने को हरगिज़ तैयार नहीं हूं क्योंकि मुझमें सच बोलने की हिम्मत है और मैं कतई कायर नहीं हूं।
आखिर मैंने अगर गांधी को नहीं मारा तो में किसी और पर होते हुए ज़ुल्म को देखकर कैसे ख़ामोश हूं ,आप बताइए मैं कैसे बर्दाश्त कर सकता हूं कि एक माँ पर अपने बेटे या बेटी जो परदेस में हैं उसका हाल चाल लेने पर पाबंदी लगा दी जाय और फिर मुझसे कहा जाय कि आप भी कहिए की आल इज वेल ,अगर ऐसा है तो मैंने गांधी को मारा है।कोई इस मुल्क में रहने वाला जिसने फौज में रह कर मात्रभूमि की सेवा की हो विदेशी बता दिया जाए तो मेरी खामोशी चीख कर कहती है कि मैंने गांधी को मारा है।

अस्पताल में एक मरीज़ बिना इलाज के सांसों की लड़ियों को तोड़ दे और उसके परिजन कुछ भी न कर सके तो मैंने गांधी को मारा है, सिर्फ अकेला मै ही गांधी का क़ातिल नहीं हूं हर वह व्यक्ति गांधी का कातिल है जिसने अन्याय के खिलाफ खामोशी साध रखी है या खुद ज़ुल्म करने वालों के साथ खड़ा हो गया है।

रिश्वत के बाज़ार को गर्म करने वाले हम और आप भ्रष्टाचारियों के पिछलग्गू हम और आप गांधी जयंती के दिन सिर्फ एक निर्जीव चित्र पर मालयार्पण कर समझते हैं कि हम इस अपराध बोध को कोसों पीछे छोड़ आए जो गांधी को क़त्ल करके किया ,आप विचलित बिल्कुल न हों आप हरगिज़ यह न समझिए की नाथूराम गोडसे ने गांधी को क़त्ल किया है अगर आपकी ऐसी जानकारी है तो आप अपना अपराध किसी के सर थोपना चाहते हैं क़त्ल तो हमने और आपने मिल कर किया तो गोडसे ज़िम्मेदार क्यों?
जी हां आप उसी गांधी के हत्यारे हैं जिसका मानना था कि मनुष्य के पास अहिंसा सबसे बड़ा बल है इंसान की सारी योग्यता और बुद्धि द्वारा बनाए गए विनाश और मौत के सारे ताकतवर हथियारों से भी यह ज़्यादा शक्तिशाली है ।अहिंसा और कायरता परस्पर विरोधी शब्द हैं अहिंसा का मूल प्रेम में है और कायरता का घृणा में अब बताइए क्या कहेंगे आप राजस्थान के शंभू के बारे में जिसके घिनौने कृत के बाद एक भीड़ सड़कों पर उसे शेर प्रचारित कर रही थी क्या यह गांधी की हत्या नहीं थी?

आप तो बहुत समझदार हैं आपही बताइए क्या में झूठ कह रहा हूं आप पर इल्ज़ाम रख रहा हूं क्या आप ऊना में ख़ामोश नहीं थे? आप बताइए आप पहलू खान को मरता हुआ देख रहे थे जैसे कोई तमाशा हो?तबरेज अंसारी को पीट पीट कर मार डाला गया आप मूक दर्शक ही तो बने रहे तो क्यों नहीं आप गांधी के हत्यारे हो सकते? बताइए क्या ज़ुबान तालू में चिपक गई या गोडसे की तारीफ ने आपको भी वहीं हुनर दिया है कि सिर्फ खुद को निर्दोष कहते रहिये क्योंकि आखिर में आपको नायक मानने वाली टोली आ ही जायेगी।
आखिर मैं आपके सामने अपने जुर्म को क्यों कुबूल कर रहा हूं,जबकि मैं जानता हूं कि आपभी मेरे साथ साथ इस हत्या में शामिल हैं न मै गुजरात पर बोला न आप बोले ,न आप हाशिमपुरा पर बोल पाए न मुझमें हिम्मत हुई ,न आप मलियाना को गलत कह सके भरतपुर और भागलपुर की हिंसा पर कुछ कर सके न मैं , न मैं ही कुछ बोल पाया सहारनपुर में दलितों पर अत्याचार के खिलाफ न आप तो हम सब एक कश्ती पर सवार हैं लेकिन मुझमें हिम्मत है चीख चीख कर कहने की , कि मैंने ही गांधी को मारा है।
दलित मारे गये में ख़ामोश , गाय के नाम पर इंसान मारे गए मैं ख़ामोश,धर्म के नाम पर नफरत परोसी गई मैं ख़ामोश ,मंदिर मस्जिद के नाम पर बंटवारा हुआ मैं ख़ामोश ,सिखों का नरसंहार हुआ में ख़ामोश ,आसाम में लोग मरे मैं ख़ामोश ,हत्यारों का महिमामंडन हुआ सत्कार हुआ मैं ख़ामोश रहा,विधायक जी ने ,मंत्री जी ने बाबा जी ने मौलवी साहब ने बलात्कार किया मैं चुप ही रहा क्या फिर भी आप मुझे गांधी का क़ातिल नहीं मानते?
आप तो भाषणों में कहते नहीं थकते गांधी व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं और विचारधारा कभी नहीं मरती! फिर गोडसे कैसे गांधी का क़ातिल हो गया मैं उसे इस जुर्म से बरी करता हूं क्योंकि मेरे मन की अदालत के फैसले के अनुसार गोडसे ने गांधी के शरीर पर गोली दागी होगी लेकिन उसका निशाना एक बूढ़ा जर्जर शरीर मात्र था जो बस निर्जीव हो गया मगर गांधी को मारने का सामर्थय गोडसे में नहीं था भला कैसे मार सकता है कोई उसे मगर मुझमें यह सामर्थ्य हैं मैं हर दौर के गांधी को मार सकता हूं, मैं रिश्वत को वरदान मानता हूं बल्कि देश के संपन्न लोगों के लिए सोने का चम्मच वैसे भी गरीब का सिर्फ सर गिना जाता है लाशे नहीं,।
आप ही बताइए मैंने सही कहा है कि नहीं क्योंकि गांधी जब व्यक्ति नहीं विचारधारा है तो गोडसे भला गांधी का क़ातिल कैसे हो गया क्योंकि गांधी के बाद लालबहादुर शास्त्री तो दिखे मैंने तो कलाम को देखा है कौन कहता है गांधी को मार दिया गया ।

गांधी राजनीत का उद्देश्य स्वराज्य की स्थापना मानते थे अब इसका उद्देश्य स्विस बैंक बता सकता है हम और आप नहीं, रही बात स्वराज्य की यानी रामराज्य की तो यह धर्म का चोला पहन चुका है इसके लिए अब न कोऊ दुखी न कोऊ दीना की कल्पना वाला नहीं बल्कि धर्म के आधार पर रामराज्य लाने की बात हो रही है अब बताइए गांधी का क़ातिल गोडसे या हम और आप?
हमने अपने अंदर बैठे गांधी को मारा है ,हमने ही मारा है गांधी के विचार को वरना किसमे हिम्मत है जो गांधी को मार दे यह ताकत तो हम बेशर्मों में ही है कि हर 2 अक्टूबर को गांधी के पैदा होने की खुशी का स्वांग रचाते है और खुश होते हैं कि एक बार फिर हम 30 जनवरी को गांधी को मार देंगे।
गांधी को मैं क्यों न मारू वह कहता है कि “श्रद्धा का अर्थ है आत्मविश्वास,यानी ईश्वर पर विश्वास।श्रद्धा व्यक्तित्व की एकनिष्टता को प्रतिष्ठित करती है इसलिए आत्मविश्वास उसका लक्षण है।आत्मविश्वास से इच्क्षा संकल्प का रूप लेती है,ज्ञान मुक्ति का साधन बनता है।वहीं बुद्धि व्यक्तित्व को खंडित करती है,इसलिए उसका लक्षण है संदेह,संदेह संकल्पो को कमजोर कर देता है,अज्ञान और बंधन को जन्म देता है,”लेकिन हम तो आस्था वाले हैं जो हमारी कुटिल बुद्धि से तय होती है और हिंसा पर जिसका अंत होता है और फिर अखलाक या कोई जुनैद या फिर कोई निर्भया हमें मिलता है ।ऐसे कैसे ज़िंदा रहने दे गांधी को वह रोकता है दादरी को ,अलवर को ।

गांधी को बार बार पैदा होना ही होगा और हम बार बार उसे क़त्ल भी करेंगे जब कहीं फूल सी आसिफा को कोई भेड़िया नोच डालेगा तो हम गांधी को मारेंगे और घर में ख़ामोश बैठेंगे अगर बोले भी तो सिर्फ धार्मिक भेदभाव का चश्मा लगाकर फिर कोई दरिंदा उठेगा भारत मां की दूसरी बेटी गीता को नोच डालेगा हम फिर भी ख़ामोश रहेंगे ,अगर कोई इंसाफ मांगने निकलेगा तो पुलिस हिरासत में मारा जाएगा अगर फिर भी इंसाफ की गुहार लगाई तो ट्रक चढ़ा देंगे ,कोई राजनेता धर्म का चोला पहन कर दुराचार करेगा सत्ता उसे बचाने का प्रयास करेगी हम मूक दर्शक बने रहेंगे फिर देखते हैं कैसे ज़िंदा रहता है गांधी और हम फक्र से कहेंगे हां हां मैंने मारा है गांधी को।

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