क्या हुआ ? आप इतनी हैरत में क्यों है मैं यूँही कोई बात नहीं कह रहा चाय का सच बता रहा हूँ अभी तक चाय सिर्फ़ मानव शरीर के लिए घातक थी अब यह पूरे देश के लिए ख़तरा बनती जा रही है ।मेडिकल साइंस पहले ही इसकी तमाम बुराई बता चुकी है अब समाज में घुलते ज़हर के कारण यह और घातक हो गई है ।
जब बात चाय की छिड़ी है तो आइए इसकी एक बानगी तहज़ीब और तमद्दुन यानी अदब के शहर लखनऊ में देखते हैं जहाँ जितने मशहूर यहाँ के नॉनवेज व्यंजन हैं उतने ही मशहूर वेज व्यंजन भी है तरह तरह की लस्सी शिकंजी दही भल्ले अपनी इबारत खाने पीने वाले शौकीन लोगों की ज़बान पर लिखते रहे हैं साथ ही चाय का भी एक अलग मिजाज है लखनऊ में।
लखनऊ के लालबाग में चाय का एक मशहूर कॉर्नर है जिसके चाय समोसे की धूम है दोनों ही ऐसी चीज़े जोकी मानव शरीर के लिए सही नहीं है कच्चे दूध की हल्की चायपत्ती वाली चाय और समोसे के लिए लाइन लगती है हालांकि चाय के कद्रदान लोग इस कॉर्नर की चाय को वाहियात जैसे शब्द से नवाज़ देते हैं उनका मानना है चाय में जबतक चाय की पत्ती का एरोमा सही नहीं हो उसे चाय के दर्जे में नहीं खड़ा किया जा सकता बल्कि इसे उबले पानी में शक्कर और दूध के घोल के तौर पर देखा जाना चाहिए खैर यह अलग अलग टेस्ट और अलग अलग शौक़ का मामला है लेकिन मेरी भी निजी राय में इसे चाय नहीं कहा जाना चाहिए ।
यह बात तो ज़ायके और क्वालिटी की हुई अब असल बात पर आते हैं इस टी कॉर्नर को चलाने वाला शक्स देश से आरक्षण को समाप्त करने की वकालत करता है तो देश में धर्म के आधार पर नफ़रत का पक्षधर दिखता है इतना ही नहीं उस लखनऊ में जहाँ हिंदू मुस्लिम नफ़रत जैसा कोई इतिहास ही नहीं रहा है वहाँ खड़ा होकर धार्मिक विभाजन की बात करता है ।नफ़रत में पगा हुआ यह व्यक्ति वर्ण व्यवस्था का घोर पक्षधर है और मनुस्मृति को संविधान से बड़ा बताता है उसके लिए संविधान छोटा है जो संविधान भारत की आत्मा है उस संविधान को छोटा बता देने में इसे कोई लाज नहीं आती है ।
दरअसल नफ़रत का ज़हर इसके अंदर इसकी चाय से ज़्यादा उबाल मार रहा है इनकी दुकान पर चाय पीने वालो में एक बड़ी संख्या मुसलमानों की है लेकिन यह व्यक्ति खुले आम उनसे द्वेष की बात स्वीकार करता है इसकी यह स्वीकारोक्ति ऐसे समय में आती है जब देश की सीमाओ पर तनाव है और ऐसे कठिन संवेदनशील माहौल में देश के अंदर ऐसी बात करना देशद्रोह के समान है लेकिन इसे चाय की कमाई ने इतनी ताक़त दे रखी है कि इसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता ।
हालांकि अभी देश में मुहब्बत की ख़ुशबू कम नहीं हुई है इसीलिए इसका मुँह खुलते ही लोग ऐसे विचार के ख़िलाफ़ सड़कों पर उतर पड़े और शर्मा जी को याद दिलाने की कोशिश शुरू हो गई कि देश का संविधान सर्वोपरि है ,नफ़रत का एजेंडा नहीं चलेगा दबाव बना तो शर्मा जी को भय ने आ घेरा क्योंकि की देश का 95% नागरिक संविधान को सर्वोपरी मानता है इसी विचार के साथ खड़ा है मुहब्बत का पासदार है ऐसे में शर्मा जी बाहर आकर सार्वजनिक माफ़ी माँग लेते हैं ।
लखनऊ के सादा मिजाज़ लोग माफ भी कर देते हैं लेकिन साथ यह भी कहते है कि चाय साहब अब देश के लिए घातक हो चुकी है इसलिए चाय से बचना चाहिए मतलब आप समझ रहे हैं उन्हें नफ़रत की खौलती हुई चाय नहीं भा रही वह मुहब्बत के उबाल वाली चाय के आज भी उतने ही शौकीन है ।
संकट के समय में जब देश को एकजुट रहना है ऐसे में नफ़रत का प्रचारक बन कर बैठना सीधा देश की आंतरिक सुरक्षा के साथ खिलवाड़ है और दुश्मन की मदद का प्रयास है और जिस चाय से दुश्मन देश को फ़ायदा पहुंचता है ऐसी चाय से तौबा करना बेहतर है बात आप समझ गए होंगे क्योंकि टीवी पर बहसों को देखते हुए आप इतना तो खूब समझने लगे हैं !
जय हिन्द