जहां देश में हर तरफ मंहगाई को लेकर हाहाकार मचा हुआ है टमाटर से प्याज़ तक और गैस से पेट्रोल तक सबकुछ महंगा हो चला है ऐसे में बंगाल से एक सुखद समाचार आ रहा है जहां सूबे की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुसलमान वोटरों की नई कीमत की घोषणा की है,सिर्फ यह एक तरफा मामला नहीं है इस कीमत को बिकाऊ कयादत ने सहर्ष स्वीकार कर लिया है।

नई कीमत महंगाई भत्ते की तरह है या इसे केंद्र सरकार की राशन योजना जैसा समझ सकते हैं ,वैसे मुसलमानों में मज़हबी कयादत के नाम पर जिस तरह के लोग मौजूद हैं उनसे इससे इतर कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती और यही वजह है कि कोई भी राजनैतिक दल देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी को कोई भाव देने को तैयार नहीं है।
मजहबी कयादत लगातार सत्ता के साथ गलबहियां कर रही है,मोहन भागवत के साथ मौलाना अरशद मदनी सहित कुछ रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स ,कुछ पत्रकार और कुछ सामाजिक कार्यकर्ता लगातार संपर्क में हैं अब इनके बीच क्या ऐसी डील हुई है जिससे क़ौम का फायदा होना है किसी को नहीं पता, बल्कि इसके उलट इस मज़हबी कयादत के जरिए लगातार मुसलमानों को भड़काने का प्रयास किया जा रहा है जिससे बीजेपी को फायदा हो,यूनिफॉर्म सिविल कोड हो या ताज़ा ज्ञानव्यापी विवाद हर जगह इनका यही चरित्र सामने आया है।

नूह हिंसा के बाद बुलडोजर की कार्यवाही पर इस मज़हबी कयादत की चुप्पी ने साफ बताया कि हकीकत क्या है,हालांकि सिर्फ मज़हबी कयादत नहीं सियासी कायद भी खामोश रहे संसद भवन के बाहर बैठकर मणिपुर का दर्द गाने वाले कांग्रेसी मुस्लिम भी नदारद रहे और किसी भी तरह की मदद लेकर नहीं पहुंचे एक इनका ही मामला नहीं है यह खेल हर जगह बराबर चल रहा है ,मुसलमानों को हाशिए पर खड़ा कर दिया गया है और यह मान लिया गया है कि इनके पास तथाकथित सेक्युलर दलों को वोट करने के आलावा कोई विकल्प मौजूद नहीं है अतः सीधे तौर पर इनसे न वोट मांगने की आवश्कता है और न ही इनके लिए किसी काम को करने की ज़रूरत।

वैसे भी समय आने पर मज़हबी कयादत को उचित दाम देकर अपने हक में अपील करवा लेने में कोई बुराई नही है यह बात और है कि इससे समाज को बड़ा नुकसान होगा लेकिन हमेशा की तरह मज़हबी और सियासी कयादत मालामाल होगी किसी को ओहदा मिलेगा और किसी को कीमत खैर यह ऐसी कोई बात नहीं है जो हमारे समाज के लिए नई हो सबको पता है लेकिन फिर भी इनके फरेब में फसना हमारी नियति बन गया है यहां पर हज़रत अली का एक कौल याद रखना जरूरी है वह फरमाते हैं कि ” मोमिन एक जगह से दो बार धोखा नहीं खाता ” इस कौल के बाद हमें अपने बारे में अधिक सोचना चाहिए।

लेकिन इस बार मुस्लिम समाज के बीच से अलग सुर भी सुनाई देने लगे हैं जोकि अच्छा संकेत हैं देश की दूसरी बड़ी आबादी को मजबूर मान कर उनका वोट लेने का ख्वाब देखने वालों के लिए यह एक कड़ा संदेश भी है हालांकि इसके बाद कई लोग यह समझाते हुए आयेंगे कि यह समय बीजेपी को हराने के लिए कुर्बानी देने का है अगर हम अपने लक्ष्य से भटके तो फांसीवादी ताकतें बाज़ी मार लेंगी ,लेकिन यहीं इसका जवाब भी मौजूद है कि हमें हमारी कुर्बानी के बदले क्या मिलेगा? जब हम बिना किसी शर्त के वोट देंगे बिना किसी के मांगे तो नई सरकार से हमें क्या मिलेगा ?

क्या हम गैर भाजपा सरकारों के ज़ुल्म भूल जाएं ,क्या हम भागलपुर ,मुजफ्फरनगर,मलियाना ,कैराना,सब भूल जाएं क्योंकि यह सब हमें तोहफे में गैर बीजेपी सरकारों ने दिया है। यह बात भी सही है कि हम 20 बनाम 80 की लड़ाई में नहीं जा सकते लेकिन इसमें क्या बुराई है कि हम एक ऐसे विकल्प को तलाश करें जो दुकानदार और चकीदार दोनो को चुनौती दे सके ,खुद को सेक्युलर कहलाने वाले वोट के लिए हिंदू राष्ट्र की वकालत कर रहे हैं और मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा पर मुंह में दही जमाए बैठे हैं ऐसे में किस आधार पर इनके साथ खड़ा हुआ जा सकता है ?

यह सारे सवाल मुंह उठाए खड़े हैं ऐसे समय में दिल्ली के कॉस्टिट्यूशन क्लब में आयोजित मुस्लिम मुशावरत के आयोजन में मौलाना तौकीर रज़ा ने बड़ी बात कही है जिसपर उन्हें समाज में समर्थन भी मिला है ,उन्होंने कहा है कि हम कांग्रेस और बीजेपी दोनों की सरकारें देख चुके हैं अब हमें तीसरे मोर्चे को तैयार करना चाहिए ,क्योंकि इन दोनो ने हमें खूब तोहफे दिए हैं इनपर भरोसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने तीसरे मोर्चे की वकालत करते हुए मुस्लिम ,दलित और पिछड़ों के गठजोड़ पर ज़ोर दिया है ।

यदि उत्तर प्रदेश में ही मायावती इन दोनो गंठबंधन के बजाय असदुद्दीन ओवैसी के साथ गठजोड़ करती हैं तो दोनो गठबंधनों को भारी नुकसान तय है और इसकी सुगबुगाहट तेज़ भी हो गई है ,मौलाना की इस बात को मुस्लिम समाज में साराहा जा रहा है ,क्योंकि कांग्रेस नेतृत्व के पास समय नहीं है मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों से मुलाकात का भी क्योंकि अभी पूरे देश के लगभग 3% भूमिहार जोड़ने पर लगे हैं।
यह तो मामला मज़हबी कयादत और सियासी कयादत से होते हुए तीसरे मोर्चे के प्रयास तक पहुंच गया लेकिन ऐसे में मज़हबी कयादत को ममता बनर्जी ने 500 रुपए की सौगात दी है इमाम ,पुरोहित की तनख्वाह में 500 रुपए की बढ़ोतरी की बात कही गई है बड़ा सम्मेलन कर इसका ऐलान किया गया है ,टोपी और दाढ़ी वालों को बुलाकर यह सौगात दी गई है ताकि इस अहसान का बदला पूरा समाज पश्चिम बंगाल में इन्हें वोट कर चुकाए।
चलिए इसे मुस्लिम समाज की नई कीमत का ऐलान समझ कर झूमिये और नये धोखों के लिए तैयार रहिए।
जय हिंद।

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