जी हाँ क़ानून का जूता मज़बूत है और इतना कि आपके जिस्म को कभी भी कहीं भी सुजा सकता है ।आज दिल्ली पुलिस के जूते की हनक का दबदबा ऐसा रहा कि सारी और महत्त्वपूर्ण खबरें जूते के नीचे दब कर दम तोड़ गयीं
हालाँकि इस बार जूते की धमक दुनिया तक भी पहुँची है क्योंकि हम सब एक ग्लोबल वर्ल्ड में रह रहे हैं मतलब सोशल मीडिया ने सारी सरहदों के बंधन जो तोड़ दिये हैं जहां देखिए जूते का वीडियो है एक्स से चलकर फ़ेसबुक तक और व्हाट्सअप से इंस्टाग्राम तक हर तरफ़ जूते का चर्चा है ।

हालाँकि जूते का ताक़त को थोड़ा झटका लग गया है और दिल्ली पुलिस के जूतेबाज़ को सस्पेंड करने की खबर गूंजने लगी है मगर जूता अपना काम कर चुका है ,चुनावी वर्ष का जूता महत्वपूर्ण मुद्दा बन कर उभर गया है और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय विमर्श का मुद्दा बना डाला है यह किसी मुस्लिम मुद्दे पर इतनी त्रीव कांग्रेस की पहली प्रतिक्रिया मानी जा सकती है ।

अब जब जूते की गूंज पर सियासत के मंच पर थिरकन शुरू हुई तो बीजेपी भी इस धुन पर ख़ुद को नाचने से रोक कैसे सकती थी और सवाल आ धमका आईटीसेल की तरफ़ से की आख़िर सड़क घेर का नमाज़ पढ़ना सही है कि ग़लत ? इसके साथ ही नफ़रतों का हुजूम निकल पड़ा अलग अलग वीडियो लेकर और फिर एक नफ़रत का बाज़ार चढ़ गया तर्क शुरू हो गए जूता पिछड़ कर दूसरे पायदान पर पहुँच गया पलक झपकते ही और पहला स्थान नमाज़ बनाम कावंड यात्रा ने ले लिया ।

ख़ैर बीजेपी का सवाल कहीं न कहीं जायज़ भी है क्योंकि जब इजाज़त नहीं है तो क्यों वाजिब नमाज़ अदा करने सड़क को घेरा गया ? अब आप मुझे मूसंघी कहेंगे मैं जानता हूँ लेकिन सच कहने का सामर्थ्य है मुझमें और सच यह है कि देश जितना मेरा है उतना किसी और का भी यानी देश के हर नागरिक का देश पर समान अधिकार है यह एक सत्य है ।

लेकिन सिर्फ़ सत्य इतना ही नहीं है इसके आगे भी है और वह यह है कि हम सबको देश के क़ानून का पालन करना चाहिए सिर्फ़ इसलिए कि दूसरा नहीं करता इसलिए हम नहीं करेंगे यह तो हट्धर्मिता है किसी और के अपराध करने से आपको प्रेरित क्यों होना है ? क्या इस सवाल का जवाब है आपके पास ?
ख़ैर इस विषय पर आप अभी नहीं सोचने वाले क्योंकि आपको लग रहा है कि मैं शायद आपका पक्ष नहीं ले रहा तो जाने दीजिए अब बात मज़हब ही की कर लेते हैं तिरमिज़ी और इब्ने माज्जा में आई एक हदीस के अनुसार ‘’इब्ने उमर रिवायत करते हैं कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया कि सात जगहों पर नमाज़ न पढ़ो उनमें से सात जगह यह है कूड़े कचरे की जगह पर यानी कूड़ा घर में, शौचालय या स्नानांघर में ,स्लॉटरहाउस में ,क़ब्रिस्तान में ,ऊँठ की पीठ पर ,काबे की छत पर और रास्ते के बीच में ‘’
यानी सिर्फ़ भारतीय क़ानून के अनुसार ही नहीं इस्लाम धर्म के नियमानुसार भी नमाज़ बीच सड़क पर पढ़ना मना है तो फिर किसके आदेश पर अमल करते हुए ऐसा किया जा रहा है ?
यह सवाल हमें स्वयं अपने समाज के अंदर भी पूछना होगा यह बात हुई एक तरफ़ की अब बात करते हैं जूताबाज़ पुलिस की
आख़िर पुलिस को किसने अधिकार दिया कि शांतिपूर्वक नमाज़ अदा कर रहे लोगों पर लात घूसा चला दे ?
यदि सड़क जाम करना अपराध है तो सुसंगत धाराओं में मुक़दमा पंजीकृत किया जा सकता था इस प्रकार से सीधे व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कैसे ?
सवाल सिर्फ़ इतना ही नहीं सवाल यह भी है की जब नमाज़ शुरू होने वाली थी और लोग रोड पर जमा हो रहे थे तब यह जूते वाली पुलिस कहाँ थी ? आख़िर तब इसने नियम का पालन क्यों नहीं करवाया ?

आख़िर धर्म विशेष के लोगों के विरुद्ध ऐसी घिनौनी हरकत करने की प्रेरणा इसने कहाँ से पाई ? अब एक राजनैतिक प्रश्न भी कि प्रधानमंत्री जी क्या यही सबका साथ और सबका विश्वास वाला कारनामा है ?
जूते की गूंज से आख़िर क्या साबित करना चाह रही है पुलिस इसका अंदाज़ा सब लगाते रहें लेकिन कहना इतना है कि सोशल मीडिया पर सिर्फ़ नफ़रत की आग उगलने से बेहतर है हम सुधार के लिए प्रयास करें !!

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