संघ और सरकार आपको मोमिन बनाना चाहते हैं ?जी हाँ
आप बिलकुल इसे कोई फ़र्ज़ी बात मत समझिए यह एक ऐसी हक़ीक़त है जिसे जानकर आपकी आँख खुली की खुली रह जायेगी क्योंकि आप ऐसा सोच भी नहीं सकते जिसे आप अपना दुश्मन समझ रहे हैं वह आपके किस क़दर मोहसिन हैं यह बात आपको पता भी नहीं है ।

एक तरफ़ तो संघ और उसके आनुषांगिक संगठन लगातार मुसलमानों के ख़िलाफ़ साज़िश कर रहे हैं नफ़रत की ऐसी बयार बह रही है कि लोग खुले आम मुसलमान को मारने की बात कर रहे हैं यह करने वाले सिर्फ़ गली के बेरोज़गार और आवारा गुंडे मवाली नहीं है बल्कि ऐसा करने वाले ख़ुद को धर्मगुरु भी बता रहे हैं और कुछ राजनेता भी है।

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर इंसान की मौत पर गाय के अपमान को मुद्दा बनाया जा रहा है कहा जा रहा है कि गाय के अपमान पर लोग भड़क गए मुख्यमंत्री जी को बेगुनाह शक्स की हत्या पर कोई अफ़सोस नहीं है यह सब चल रहा है देश में इतना ही नहीं गिरिराज सिंह आये दिन ज़हरीले बोल बोलते सुने जा रहे है वहीं असम के मुख्यमंत्री तो जैसे एक ही काम करने को मुख्यमंत्री बने हैं और वह काम है मुसलमानों के लिये नफ़रत परोसना इन सब के बावजूद भी मैं कह रहा हूँ की यह सब हमें कामिल मोमिन बना देना चाहते हैं यह हमारे सच्चे मोहसिन हैं ?

यह तो एक चेहरा है दूसरी तरफ़ एक और चेहरा भी देखना होगा जहां यह सब मिलकर हमें मोमिन बनाने की मुहिम में लगे हैं वहीं ख़ुद को मौलाना ,हज़रत, पीर साहब फ़क़ीर साहब कहलाने वाले मुसलमानों को मुशरिक़ ,काफिर, मुनाफ़िक़ और न जाने क्या क्या बना रहे हैं या बना देने की फ़िराक़ में हैं , रंग बिरंगे पगड़ियाँ और लिबास पहनकर-पहनकर वज़ीरों के बगलगीर होने की करामत आप सब खूब देख रहे हैं मंत्री जी के साथ फोटो शूट के बाद अपने कारोबार को बुलंदी बख्शने वाले यह क़ौम और मिल्लत के स्वयंभू शुभचिंतक नफ़रत की सभी घटनाओं पर ख़ामोश हैं !

वहीं आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ के पास फिर काम आ गया है उसकी दुकान पर नया माल वक़्फ़ संशोधन बिल के तौर पर आ चुका है और उसकी मार्केटिंग शुरू हो गई है रिजेक्ट और सुझाव वाली ऑनलाइन पिटीशन साइन कराई जा रही है और तादाद गिना कर सौदेबाज़ी का खेल मज़बूत किया जा रहा है जबकि यही सब अल्लाह के रसूल की शान में गुस्ताखी करने वाले के ख़िलाफ़ दुरूद पढ़ने की मुहिम से किनारे थे जबकि उसमें किसी संगठन का कोई नाम नहीं होना था सबको अपने अपने नाम से करना था ,हालाँकि यह कोई नयी बात नहीं है यही रवैया हमेशा से चला आ रहा है ।

एक तरफ़ तो मसलकी जंग तेज हो चली है वहीं मसलको के अंदर भी नयी जंग छिड़ गई है आये दिन होने वाले नये नये उर्सों ,इजलासों में नयी नयी बातों को किया जा रहा है जिससे सिर्फ़ समाज में भटकाव पैदा हो रहा है और किसी तरह का कोई फ़ायदा ऐसे उर्स या इजलास में जाने वालों का नहीं हो रहा है एक बात साफ़ कर दूँ ऐसा सिर्फ़ उर्स में ही हो रहा है ऐसा बिलकुल नहीं ऐसा ही करतब इसलाही और तबलीगी इजतेमाओं में भी देखने को खूब मिल रहा है ।

क़ौम को गुमराह करने के लिए यह मज़हबी ठेकेदार अपनी हर क़वायद को ईमानदारी से करते दिखते हैं लेकिन फ़िलिस्तीन के नरसंहार पर इज़राइली और उसके समर्थक देशों की वस्तुओं के बहिष्कार पर चुप्पी साध लेते हैं इतना ही नहीं इन इंसानियत दुश्मन मुल्कों का सामान और ज़्यादा इस्तेमाल करते भी नज़र आते है।
यह सिर्फ़ बानगी है सड़ते हुए समाज की लेकिन आप सोच में पड़ गये होंगे कि मैंने बात कहाँ की शुरू की थी और कह क्या रहा हूँ आख़िर आप जानना चाह रहे होंगे कि संघ और सरकार हमें मोमिन क्यों बनाना चाह रही हैं ?

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आप पहले कुछ सवालों का जवाब दीजिए फिर मैं आपको बताता हूँ यह राज़ की बात ! पहला सवाल यह है कि जब कहीं किसी मुसलमान की मॉब लिंचिंग होती है तो पहला ख़्याल आपके मन में क्या आता है ? दूसरा सवाल मुसलमानों के घरों पर जब बुलडोज़र की कार्यवाही होती है तो आप क्या सोचते हैं ?जब मुसलमानों को एक मुखमन्त्री के द्वारा सीधे तौर पर धमकाया जाता है तब आपके मन में क्या विचार आते हैं ?
मस्जिदों और मदरसों को आये दिन निशाना बनाया जा रहा है इस पर आपके दिल में क्या ख़्याल आते हैं ?भीड़ द्वारा खुली सभाओं में जुलूसों में मुसलमानों को गालियाँ दी जाती है तब कैसे ख़्याल आते हैं ? राजनैतिक दलों की मुसलमानों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा पर चुप्पी पर आपको कैसा लगता है ?
ख़ास तौर से उस राजनैतिक दल जिसपर आप भरोसा जताते हैं जहां उसकी सरकार होती है और मुसलमानों पर ज़ुल्म होता है तो क्या सोचते हैं आप ?आपके दिमाग़ में इन सारे सवालों के जवाब में पहले तो खूब ग़ुस्सा आता होगा फिर आप ग़ुस्से में बहुत कुछ सोचते होंगे और अपने भविष्य को लेकर चिंतित हो जाते होंगे ,इतना ही नहीं इसके बाद आपको दुनिया के अलग अलग देशों के मंज़र भी याद आते होंगे और कहीं न कहीं इतिहास के वह क़िस्से भी जो या तो आपने ख़ुद पढ़ें हैं या फिर किसी से सुने हैं वरना अर्तगुल ग़ाज़ी तो खूब देख ही चुके हैं आप और आख़िर में आप जिस नतीजे पर पहुँचते हैं वह अल्लामा इक़बाल के लहजे में कहूँ तो ,
वह ज़माने में मोज़िज़ थे मुसलमाँ होकर
और तुम ख़वार हुए तारिके क़ुरआं होकर!!
हमारी सफ़ों में बैठे हमारे दुश्मन हमें अपने सही मक़सद से भटकाने के लिय नित नये फ़साने गढ़ रहे हैं नये नये फितने जन्म ले रहे हैं यहाँ तक बात आ गई है कि ख़ुद को मुफ़्ती कहलाने वाले अजमी क़ुरआन लिखने में हुई गलती देख रहे हैं और बता रहे हैं कि किस तरह अरबी ग्रामर की समझ इनको ज़्यादा है और इनके अंधभक्त मान भी रहे हैं तो दूसरी तरफ़ एक बड़े मौलाना के उर्स के मौक़े पर एक मोलवी अपनी धुन में न जाने क्या क्या बक रहा है और अपने को मुफ़्ती आलिम कहने वाले वाह वाह कह रहे हैं ,इतना ही नहीं वक़्फ़ संशोधन बिल की हिमायत करने वाला ख़ुद को सूफ़ी कह रहा है और अजमेर दरगाह का वलीअहद भी बता रहा है ।
अभी पैग़म्बरे अमन ओ शांति की विलादत के मौक़े पर एक क़ौम जश्न में डूबी तो बाक़ी सब उसे अज़ान का अदब ,नमाज़ की तालीम देने बैठ गये ऐसा नहीं कि यह इस लिये किया गया कि वाक़ई में यह सबको सही तालीम देना चाहते हों बल्कि इसके साथ मिलादुन्नबी मनाने को ग़लत बताना बड़ा मक़सद था वरना नमाज़ और अज़ान हर दिन 5 बार होती है तब यह सब कहाँ ग़ायब हो जाते हैं जुलूस के दिन से आज तक फ़रार हैं सब कोई किसी को तबलीग नहीं करता दिख रहा हालाँकि यह मसलकी विवाद हैं लेकिन उस वक़्त हैं जब सिर्फ़ मुसलमान नाम से नफ़रत का चलन हो चुका है ऐसे में इनसे इनका मसलक कौन पूछने जा रहा है लेकिन फिर भी यह सब चल रहा है ,अब ज़रा ख़ुद सोचिए इसके बाद यह सब चाहते हैं कि वक़्फ़ के मामले में सब इत्तेहाद दिखाएं क्यों ? जब आप अपने रसूल की नाम पर इत्तेहाद नहीं कर सकते तो ज़मीन बचाने को क्यों किया जाये ?

सिर्फ़ मज़हबी क़यादत ऐसा कर रही है यह सच नहीं है हमारे साथ सियासी क़यादत का भी रवैया वही है उसकी भी वजह है कि हमने अपना प्रतिनिधि नहीं चुना पार्टी का प्रत्याशी चुना है अगर वह प्रत्याशी इस पार्टी का टिकट न लाता तो आप उसे वोट नहीं देते तो जब वोट पार्टी का तो प्रतिनिधित्व भी पार्टी का ही होगा यही ईमानदारी है तो क़ौम यह भी धोखा खा गई चुनाव में!
अब आइये वापिस अपने सवाल पर आते हैं कि कैसे सरकार और संघ हमें मुसलमान बनाने पर तुल गये हैं ?
तो ख़ुद सोचिए क्या अब आप किसी मज़हबी क़ायद पर या सियासी क़ायद पर भरोसा कर पा रहे हैं ? आपका जवाब न में होगा या आप ख़ामोश हो जाएँगे जिसका मतलब आप समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या कहें मतलब साफ़ है आप उनके हिमायती तो नहीं हैं ! यानी अवामी सतह पर आप इस बात पर एकजुट हैं कि इनका भरोसा नहीं है ? अब आप किसी भी तरह की मसलकी लड़ाई में पड़ना नहीं चाह रहे हैं और प्रगतिशील सोच के साथ इस्लाम के बेसिक को जीना चाहते हैं ? अभी आप अमली तौर पर न सही लेकिन वैचारिक रूप से सारे बैरियर्स तोड़ कर एकजुट होना चाहते हैं क्योंकि आपको समझ आ चुका है कि बिखराव में नुक़सान बड़ा है ?आपको वैचारिक रूप से यहाँ तक लाने में क्या सरकार का योगदान नहीं है ? इस आख़िरी सवाल पर चौकिये मत सोचिए यही मूल सवाल और आपके फ़ायदे की बात है !
क्या अब मुसलमान ज़कात लेने और देने को लेकर ज़्यादा सजग नहीं हो गये हैं ?एजुकेशन को लेकर जागरूकता नहीं बढ़ी है ?पेपर वर्क में मुसलमान बहुत आगे नहीं बढ़ गये हैं ? इन सारे सवालों के जवाब हाँ में हैं इसका मतलब आप एक अच्छे शहरी बनते जा रहे हैं जोकि एक अच्छे मुसलमान का गुण है । अभी पहले से अधिक धैर्यवान हो चुके हैं आपमें तुरंत प्रतिक्रिया का जो अवगुण था वह दूर हो रहा है और आप समझदारी से निर्णय ले पाने में कामयाब होने लगे हैं और यह भी आपको सरकार और संघ के कारण ही करना आया है ।
धीरे धीरे आप सच्चे मुसलमान बनते जा रहे हैं जो इत्तेहाद के साथ रहना जानता हो ,पढ़ा लिखा हो , किसी के बहकावे में न आता हो ,जिसके पास अपने सारे काग़ज़ात हों यानी कुल मिलाकर अच्छा शहरी हो।ज़ोम्बी सेना के नित नये कारनामों और नफ़रती फ़रमानों से मुसलमान अल्लाह के क़रीब हो रहा है और ख़ुद उनके बीच के लोग समाज में पनपी बुराइयों के विरुद्ध मुहिम चला रहे हैं और उन्हें समाप्त कर रहे हैं कुल मिलाकर संघ और सरकार ने मिलकर वह काम कर दिया जो पिछले 70 वर्षों में नहीं हो सका था ।यानी मुसलमान मोमिन बनने की दिशा में क़दम बढ़ा चुका है अब बताइए आपके मोहसिन यह मसलकी फितनेबाज़ हैं या फिर सरकार और संघ कम से कम इनके ग़लत रवैये से ही सही आपकी दिशा तो बदली ? हालाँकि आरएसएस और सरकार दोनों आपको ऐसा बनाना नहीं चाहते लेकिन अनजाने में ऐसा हो रहा अगर मैं ग़लत हूँ तो आपके विचार आमंत्रित हैं !

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