मणिपुर में जारी हिंसा का दहला देने वाला दृश्य

देश में हर तरफ एक चर्चा है और सभी लोग इस बात से चिंतित भी हैं कि देश में नफरत का प्रसार जिस तेज़ी से हो रहा है यह बहुत घातक है , आम चुनाव नज़दीक हैं तो इसकी तैयारी में सभी दल अपने अपने हिसाब से लग गए हैं , नफे नुकसान के आकलन के अनुसार किस घटना पर आक्रोश जताना है या टिप्पणी करनी है या फिर आंदोलन करना है इसका फैसला किया जा रहा है इसलिए देश के कई ऐसे मुद्दों पर खामोशी साध कर सरकार को खुला पैसेज दिया जा रहा है कि वह अपनी मनमानी कर ले।

इसीलिए पूरा विपक्ष एक होकर मणिपुर की हिंसा पर तो बहुत मुखर विरोध जता रहा है लेकिन हरियाणा हिंसा से कहीं न कहीं खुद को दूर रखने की कोशिश में दिखा ,एक समुदाय के टारगेट कर मकान दुकान बुलडोजर से गिरा दिए गए लेकिन चुप्पी नहीं टूटी इसने साफ संदेश दिया कि दरअसल न्याय के लिए कोई नहीं लड़ रहा है सबका अपना हित है और वोट की जंग मात्र। यही वजह है कि दिल्ली सेवा बिल पर विपक्ष ने पूरा माहौल बनाया लेकिन” डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2023″ आराम से बिना किसी शोर के पास हो गया न कोई विपक्षी एकता दिखी न कोई प्रतिरोध ऐसे ही ‘ खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, 2023’ का मामला रहा जिसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया और देश की अमूल्य खनिज संपदा पर निजी उद्योगपतियों के अधिपत्य का रास्ता साफ हो गया ।

यहां पर असदुद्दीन ओवैसी को तारीफ करनी चाहिए कि उनकी आवाज अकेली सही लेकिन सही दिशा में उठती हुई हमेशा सुनाई दी ,यही वजह है कि उनका कथन कि वह अकेले इस लिए हैं क्योंकि एक तरफ चौकीदार है और एक तरफ दुकानदार ,उनकी इसी बेबाकी की वजह है कि नए बने INDIA गठबंधन में भी उनकी जगह अभी तक नहीं बन पाई है ,वहीं मुसलमान भी उन्हें शक की दृष्टि से देख रहे हैं,हालांकि यदि ओवैसी उत्तर प्रदेश में मायावती से गठबंधन कर लें तो इसमें कोई शक नहीं है कि एनडीए और INDIA दोनो को बड़ा झटका दे सकते हैं ।

क्योंकि उत्तर प्रदेश का मुसलमान अखिलेश यादव से दूर जा चुका है और बहन मायावती पर भी उसे विश्वास नहीं है ऐसे में मजबूरी स्वरूप वह कांग्रेस के पक्ष में खड़ा दिख सकता है लेकिन अगर असदउद्दीन ओवैसी और बहुजन समाज पार्टी मिल कर कोई नया गठबंधन बनाते हैं तो मुसलमान सीधे ओवैसी के साथ जाने में देर नहीं लगायेगा ऐसे में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनो को भारी नुकसान झेलना होगा।

खैर हमें बात करनी है अनिवार्य नफरत की यह कोई जुमला नहीं है बल्कि सरकारी फरमान का एक विश्लेषण हैं भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 14 अगस्त को “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस “के तौर पर मनाए जाने की बात कही है और इस संबंध में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक कार्यवाही भी कर दी गई है विभिन्न शिक्षण संस्थानों को आदेश दे दिया गया है इस आयोजन को किस प्रकार आयोजित करना है ,कहने को तो इसे आयोजित करने में इस बात का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी गई है कि किसी भी समुदाय या व्यक्ति की भावना आहत न होने पाए लेकिन जब इससे संबंधित प्रदर्शनी लगेगी तो इसमें किस प्रकार के दृश्य होंगे सब समझ सकते हैं।

विभाजन एक ऐसा काला अध्याय है जिसमें रक्तपात के अतरिक्त कुछ नहीं है इसे दिखाए जाने या याद किए जाने का कोई औचित्य नहीं है क्योंकि इसके बाद काफी लंबा समय बीत चुका है और लोग इसे भूलने लगे हैं ऐसे में दुबारा लोगों के बीच इसका प्रचार क्यों ? सवाल बड़ा है लेकिन सरकारी फरमान है इसे बजा लाना है ,आज जो बच्चे इस विभीषिका को नहीं जानते उनके कोमल मन में इसका भयानक चित्रण क्या भरेगा सब जानते हैं ,क्या अभी देश में प्रसारित हिंसा में कोई कमी है जो नया प्रयोग किया जा रहा है ? यह समाज का कड़वा सच है नफरत एक दुर्गंध की तरह है जैसे जैसे हमारा मस्तिष्क सड़ता जायेगा वैसे वैसे दुर्गंध रूपी नफरत बढ़ेगी और बदबू को सिर्फ मुहब्बत के इत्र से रोका जा सकता है हमें इस सच को जल्द समझना होगा वरना चुनाव आएंगे और चले जायेंगे लेकिन यह दुर्गंध हमें जीने नहीं देगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here