सभी लोग इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि हरियाणा में जो ज़मीन पर दिखा वह ऐसा तो नहीं था जैसा परिणाम में उभर कर आया आख़िर क्या हो गया ? जब सभी चुनावी विश्लेषक ,पत्रकार ,चुनावी आँकड़ों के माहिर खिलाड़ी एक साथ कैसे चकमा खा गए ? या फिर जैसा विधवा विलाप हार के बाद कांग्रेस ने शुरू किया है यानी वही ईवीएम और चुनाव आयोग का खेला उसमें कितनी सच्चाई है ? इन सब सवालों पर अब बहस कर देश की जनता का प्राइम टाइम बर्बाद किया जा रहा है लेकिन सच स्वीकारना ही पड़ता है और सच यह है कि कांग्रेस चुनाव में मुँह की खाई है और बीजेपी ने पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया है और लगातार तीसरी बार हरियाणा में मुख्यमंत्री बीजेपी का होगा इस बार उसे किसी बैसाखी की ज़रूरत भी नहीं है ।
हरियाणा चुनाव के परिणामों के बाद बीजेपी ने वापिस अपना विश्वास वापस पा लिया है और अब आने वाले झारखंड और महाराष्ट्र के चुनाव भी आसान नहीं होने जा रहे हैं जबकि अभी तक स्थिति यह लग रही थी की महाराष्ट्र में बीजेपी को बुरी तरह से जूझना पड़ेगा लेकिन अब स्थितियाँ बदली हैं और एक दिन में देश भर में एक संदेश चला गया है कि बीजेपी को हरा पाना इतना आसान नहीं है और इस संदेश ने कई नये बनने वाले राजनैतिक समीकरणों पर भी कुछ समय के लिये विराम लगा दिया है ।
सब लोग अपने अपने ढंग से इन परिणामों की व्याख्या कर रहे है जबकि इस पूरे चुनाव में जो सबसे बड़ा फैक्टर निकल कर बाहर आया वह उसी मुद्दे के भीतर छुपा बैठा था जिसकी वकालत राहुल गांधी और उनकी पार्टी कांग्रेस देश भर मे करती घूम रही है और वह मुद्दा है सामाजिक न्याय का ।सामाजिक न्याय के भीतर छुपा यह फैक्टर ही बीजेपी को संजीवनी हरियाणा चुनाव मे दे गया और कांग्रेस अंत तक अतिआत्मविश्वास और अतिउत्साह में इसे समझ भी नहीं सकी और खेल हो गया ।
कुमारी शैलजा की कांग्रेस आलाकमान द्वारा मिसहैंडलिंग ने इस फैक्टर को और अधिक बल दिया जिसके बाद लगभग साफ़ हो चला था कि हरियाणा चुनाव के परिणाम क्या होने जा रहे हैं जबकि सभी राजनैतिक और चुनावी विश्लेषक भी इस हवा को नहीं भाँप पाये ।
इधर भूपेन्द्र सिंह हुड्डा और उनके बेटे दीपेन्द्र सिंह हुड्डा का अहंकार आग में घी का काम करता रहा जितना राहुल गांधी बो कर आते उतना यह दोनों अपने अहंकार से जोत देते जिससे बीजेपी द्वारा शांति से सेट किया जा रहा नरेटिव मज़बूत होता रहा और फिर यह जीत की फसल लहलहा उठी जिसे समझा जा रहा था किसानों के मुद्दे पहलवानो के मुद्दे और सेना के जवानों के मुद्दे के तले रौंद दिया जाएगा !
अब आप उक्ता गये होंगे सस्पेंस से है न ? क्योंकि वैसे भी अकड़ों के बदलने की आस लगाये आप घंटों इंतज़ार कर ही चुके हैं तो आपके थके हुए मस्तिष्क को और क्यों थकाया जाये सीधे मुद्दे पर आ ज़ाया जाये शुरुवात आख़िर से करते हैं कि जब ईवीएम पर भरोसा नहीं था या नहीं है तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही दो दिन तक ऐसा क्यों रहता है ?इसके विरुद्ध व्यापक जन आंदोलन संपूर्ण विपक्ष क्यों एकजुट होकर नहीं चलाता ?जब चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं लगता तो कांग्रेस सबूत इकट्ठे करके उसी चुनाव आयोग के पास क्या करने जाएगी ?आख़िर चुनाव आयोग के ख़िलाफ़ जनआंदोलन क्यों नहीं चलाने की हिम्मत करते ? सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा क्यों नहीं खटखटाया जब महाराष्ट्र इलेक्शन साथ में चुनाव आयोग ने नहीं करवाये जबकि वन नेशन वन इलेक्शन पर चुनाव आयोग ने ख़ुद रिपोर्ट पेश की?
अगर कांग्रेस या अन्य विपक्षी पार्टियाँ इस तरह के आंदोलन का सामर्थ्य नहीं रखती तो चुनाव आयोग या ईवीएम पर आरोप लगाने का कोई औचित्य नहीं है ।
अब बात करते हैं दूसरे मुद्दे की और वह है कुमारी शैलजा की मिस हैंडलिंग आख़िर जब आलाकमान को हुड्डा प्राइवेट लिमिटेड को हरियाणा का टेंडर देना था ऐसे में कुमारी शैलजा के लिए क्या ही स्पेस बचता यह सोचने वाली बात है? कांग्रेस संगठन के नाम पर हरियाणा में हुड्डा का संगठन है और पूरा चुनाव भी हुड्डा ही ने लड़ा हर स्तर पर प्रचार के तरीक़े से लेकर मैनेजमेंट तक और बीजेपी ने इस बात का भी पूरा फ़ायदा उठाया क्योंकि कांग्रेस पूरे हरियाणा में हुड्डा प्राइवेट लिमिटेड की तरह चल रही थी मध्य प्रदेश की तर्ज़ पर और किसी की दखलअंदाज़ी हुड्डा साहब को पसंद नहीं आ रही थी यही वजह थी कि हरियाणा के प्रभारी दीपक बावरिया के हाथ बंधे ही रहे और वह अपना कोई चुनावी कौशल सिर्फ़ मीटिंग में बता पाने के आगे ज़मीन पर उतार नहीं सके ।
अब बात आती है कि चुनाव को किस बात का फ़ायदा उठा कर बीजेपी ने जीता तो वह है सामाजिक न्याय का मुद्दा आप चौक गये होंगे ? आपको चौकना भी चाहिए क्योंकि आपके अनुसार यह मुद्दा तो कांग्रेस लेकर चल रही थी तो इसके ज़रिये बीजेपी कैसे जीती ?मगर सच यही है सामाजिक न्याय की ग़लत व्याख्या ने पूरा दावँ उलट दिया और हरियाणा की सत्ता बीजेपी की झोली में डाल दी , सामाजिक न्याय का मतलब क्या है ? कमज़ोर वर्गों को भी यानी वंचित समाज को उसका हक़ देना उसकी संख्या के अनुपात में यहाँ बात कमज़ोर और वंचित के हक़ की बात है अगर इसे देने के नाम पर आप किसी ऐसे ताकतवर को सामने लाओगे जोकि सामाजिक और आर्थिक दोनों स्तर पर इन वंचित समाज का हक़ सामाजिक न्याय के नाम पर अब तक लेता रहा हो और बाक़ी समाज इसे ही अन्याय मानता आ रहा हो तो वह कैसे आपके साथ गोलबंद होगा ?
जिस तरह उत्तर प्रदेश और बिहार में यादव जाति को बाक़ी पिछड़ा वर्ग से आने वाले लोग हज़म नहीं कर पा रहे हैं ठीक वैसे ही हरियाणा में भी जाट समाज का हाल है जिसे बाक़ी समाज हज़म नहीं कर पा रहा है और इन जातियों की राजनैतिक पकड़ की वजह से उसका आक्रोश सामने तो नहीं आ पाता लेकिन पोलिंग बूथ में वह ग़ुस्सा दिखता है जहां न कोई पत्रकार होता है न कोई विश्लेषक जिस कारण कोई हवा दिखाई नहीं देती और परिणाम चौका देते हैं ।
हरियाणा में यादव और जाट भी आपस में एक नहीं होने वाले क्योंकि दोनों मार्शल जातियाँ हैं राजनैतिक और आर्थिक रूप से सक्षम और दोनों में ही राजनैतिक महत्वाकांक्षा कूट कूट कर भरी है जिसकी वजह से दक्षिणी हरियाणा में बीजेपी मज़बूती से डटी होती है वैसे भी यादव समाज बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों को छोड़कर हर प्रदेश में बीजेपी के साथ ही जाता है चाहे वह मध्य प्रदेश हो या हरियाणा , यहाँ भी कांग्रेस से चूक हुई और इस क्षेत्र के लिए वह कोई दिस रणनीति नहीं बना सकी ।
कांग्रेस का पूरा प्रचार पूरी रणनीति हुड्डा और जाट लैंड के चारों तरफ़ घूमती रही जिसने यह संदेश दिया कि जाटों की सत्ता आ रही है और जिसका सीधा फ़ायदा बीजेपी ने उठा लिया और बाक़ी की सभी जातियों को अपने साथ लामबंद करने में सफल हो गई ।बीजेपी ने ज़मीनी स्तर पर सामाजिक न्याय के मुद्दे की हवा निकाल दी क्योंकि कांग्रेस के मंच पर लगभग हर रैली में किसी न किसी समाज के नेता के साथ कुछ न कुछ होता रहा और चिंगारी नीचे नीचे सुलगती रही इधर इस बार बीजेपी ने अपनी रणनीति भी बदली और मीडिया को अपोजिट डायरेक्शन में खड़ा कर चकमा दे दिया कांग्रेस अतिउत्साह में और डूबती चली गई ।
शैलजा ने भी राहुल के सामाजिक न्याय को खोखला बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिसकी वजह दलित वोटर बीजेपी के साथ खड़े हुए और अंत तक हुड्डा एंड कंपनी ने उन्हें कोई भाव नहीं दिया कुल मिलाकर जिस मुद्दे पर लोकसभा में माहौल बना था उसी की ग़लत व्याख्या ने खेल बिगाड़ दिया ।
खोखले रणनीतिकार संघ के बैकग्राउंड से आने वाले विचारक और चाटुकारों ने अपना काम किया जबकि राहुल गांधी ने अपनी मेहनत से कांग्रेस को यहाँ तक पहुँचाया और अब इसमें कोई दो राय नहीं है कि वह एक जननेता के रूप में स्वीकार्य हो चुके हैं ,राहुल को सुनने लोग जिस तरह से आ रहे हैं और उनकी रैलियों में जैसी भीड़ उमड़ रही है देश के हर कोने में उसने कांग्रेस को पुनर्जीवित किया है लेकिन उनकी पार्टी उनके साथ उस तरह से खड़ी नहीं दिखती ख़ेमाबंदी से जैसा नतीजा आना चाहिए नतीजा वैसा ही आया अब लकीर पीटने से कुछ हासिल नहीं सिवा इसके अब सामाजिक न्याय की सही व्याख्या की जाये और कांग्रेस सेक्यूलिरिज़्म की राह पकड़े सॉफ्ट हिंदुत्व उसकी नय्या पार नहीं लगा सकता और इस बात का ख़्याल रखे कि कबूतरों की रखवाली बाज़ को नहीं सौपी जा सकती यह समझना होगा यही सामाजिक न्याय का पहला सबक़ है ।