जी हां आपको चौंकने की जरूरत नहीं है में सच कह रहा हूं और यूंही नहीं कह रहा हूं चश्मदीद गवाहों की जबानी सुनी कह रहा हूं, अब आप मुझे बताइए क्या आपको जन्नत जाना है वहां भुकमरी है,बीमारी है, खौफ है जी हां न वहां दूध की नदियां बह रही हैं ,न ही खूबसूरत नज़ारे दिलों को खुश कर रहे हैं हर तरफ पसरा है गहरा सन्नाटा ,खौफ ,बिलखने की आवाजे,अब मुझे काफिर कहने का दिल कर रहा होगा आपको मै पागल लग रहा हूंगा लेकिन मै पहले ही कह चुका हूं कि मैं यह सब चश्मदीद गवाहों के बयान के आधार पर कह रहा हूं।

आपने कभी दवा के आभाव में अपने बच्चे को तड़प तड़प कर मरते देखा है सिर्फ दवा ही नहीं बच्चा 3 दिन का भूका भी हो अगर नहीं देखा है तो जन्नत आइए आपको यह नजारा भी मिल जाएगा,बाप की आंखों में बेपनाह लाचारगी और मां का असीम दुख से पागल हो जाना यह भी जन्नत का एक नजारा है,सिर्फ इतना ही नहीं लाशों का हुजूम भी जन्नत में है अब तो आपने पक्का यकीन कर लिया होगा कि या तो में पागल हो गया हूं या फिर नास्तिक लेकिन सुनिए न तो में नास्तिक हुआ हूं और न ही मैं पागल हो गया हूं मैं बस आपको चीखती चट्टानों की आवाज़ सुना रहा हूं।

जब ज़बान पर पहरा हो तब खामोशी बोलती है और उसकी आवाज़ की गूंज से कान के पर्दे फट जाते है आपको अब में दार्शनिक लग रहा हूंगा क्योंकि में आपको शब्दों के मकड़जाल में बांधने की कोशिश जो कर रहा हूं तो सुनिए मैं शब्दों का चयन नहीं कर पा रहा हूं दर्द को बयान करने के लिए चार दिन से भूके बच्चे के चेहरे पर मां की नजर किस तरह जाती है आप ही बताइए इसके लिए कौनसा शब्द है जिससे पीड़ा बयान की जा सके आप भी हांथ खड़े कर दीजिए क्योंकि झूठी तसल्ली के सिवा आपके पास भी कुछ नहीं है।

जाने दीजिए मेरे बारे में कोई राय बनाने में माथापच्ची मत कीजिए मै आपकी परेशानी खतम कर देता हूं मै ईश्वर की बनाई उस जन्नत की बात नहीं कर रहा हूं जहां 70- 70 हूरे मिलेंगी,दूध और शहद की नदियां होंगी कोई बीमारी नहीं होगी सब जवान होंगे , मैं बात कर रहा हूं दर्द से कराहती वादी की ,जी हां उसी वादी की जिसके बारे में कहा गया कि गर फ़िरदौस बर रुए ज़मीं अस्त हमीअस्त हमींअस्त यानी अगर ज़मीन पर कहीं जन्नत है तो वह यहीं है यहीं है अब तो आप समझ गए होंगे कि मै कश्मीर की बात कर रहा हूं।
जी हां कश्मीर भारत का अभिन्न अंग जहां आजकल मौत सी खामोशी है 5 अगस्त 2019 से आजतक जहां गहरा सन्नाटा है,वजह आप जानते हैं भारतीय संसद द्वारा धारा 370 के संबंध में लिए गए फैसले के बाद से आजतक हालात ऐसे है कि अपने खूबसूरत नजारों के लिए मशहूर घाटी जिसे
देखकर अनायास ही मुंह से वाह कश्मीर निकल जाता था आज सिर्फ कह सकते हैं आह कश्मीर,

आपको यहां एक बात और बताता चलूं कि कुछ लोग सेव कश्मीर का हैशटैग भी चला रहे हैं सोशल मीडिया पर उनका दर्द हर सोशल प्लेटफार्म पर दिख रहा है लेकिन इसकी भी पड़ताल होनी चाहिए कि क्या सत्य में इस अभियान को शुरू करने वालों का सियासत के आकाओं से कोई संबंध नहीं क्योंकि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग इसे सरकार का साहसिक फैसला मानता है और धारा 370 पर लिए गए फैसले का स्वागत कर रहा है साथ ही वहां जो प्रतिबंध लगाए गए हैं उनके संबंध में सरकार द्वारा जो तर्क दिए गए हैं उनसे संतुष्ट है तो फिर आप समझदार है मुझे कुछ कहने की जरूरत नहीं है।

आपका सवाल है अगर यह न करें तो क्या सुलगते कश्मीर को यूंही तबाह होते देखे? ज़ुल्म के खिलाफ आवाज भी बुलंद न करे ?,मेरा जवाब भी वही है बिल्कुल कीजिए ।
कश्मीर में जो भी हालात हैं उसके चार पक्ष हैं एक हमारी सरकार,एक पड़ोसी मुल्क की सरकार,एक कश्मीर के लोग और एक शेष भारत के लोग ,सरकार कह रही है कश्मीर में सब हालात सामान्य हैं आखिर यूंही तो सरकार के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कश्मीर जाकर सड़क पर खाना नहीं खा आए यह हालात सामान्य होने का सबूत है यह और बात है कि विश्वास हुआ नहीं।

दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान है जिसे सुनहरा मौका मिला है भारत के खिलाफ दुनिया को लामबंद करने का और इमरान खान ने संयुक्त राष्ट्र संघ में कश्मीर को लेकर जिस तरह जज्बाती बात की उससे कश्मीर में बसने वालों में जहां पहले ही भारत के प्रति अविश्वास घर कर चुका है पाकिस्तान के प्रति प्रेम उमड़ने लगा उन्हें महसूस हुआ कि कहीं तो कोई उनके अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहा है,हालांकि यह सिर्फ छलावा है कश्मीर में बसने वालों की यही हार का कारण है ।

कश्मीर में सक्रिय मजहबी कट्टरपंथी जिनका धर्म से कोई लेना देना नहीं है कश्मीर को शांत नहीं होने देना चाहते हैं क्योंकि जैसे ही शांति बहाल होगी उनका नकाब नोच दिया जायेगा ,अगर ऐसा होता है तो राजनीत की बिसात पर दोनों मुल्कों की हार होगी।
भारत जहां जल्दबाजी में एक खतरनाक क़दम उठा चुका है जिसके दुष्परिणाम सामने हैं और पाकिस्तान उसका फायदा उठा रहा है वहीं जन्नत के लोगों की नासमझी भी उनकी इस हालत की ज़िम्मेदार है ,क्योंकि वह अपना मसीहा उसे समझ रहे हैं जो सिर्फ उनकी लाशों से फायदा उठाना चाहता है ,जन्नत में हालात खराब है एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 13000 बच्चे गायब हैं जिनके घर वालों का आरोप है कि उन्हें पुलिस या सुरक्षा बल पूछताछ के नाम पर उठा ले गए।
वहीं सुरक्षाबलों का कहना है कि यह बच्चे लापता हैं हम इनकी तलाश कर रहे हैं,सरकार का एक और फैसला यह कि कश्मीर के अधिकतर नेता या तो जेल में हैं या फिर नजरबंद तो ऐसे में कश्मीरियों को ऐसा लग रहा है कि उनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नहीं वहीं अगर पूरे देश में कहीं कोई भी कश्मीर की बात करता है तो उसे राष्ट्रद्रोही सरकार के लोग करार दे रहे हैं ,ऐसे में अविश्वास को विश्वास में कैसे बदला जा सकता है और इसी मौके का फायदा इमरान खान ने उठाया और अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस मुद्दे को उठा दिया।
सरकार के इस फैसले से पहले हुए एक सर्वे में आम कश्मीरियों में से महज 1% लोगों ने ही पाकिस्तान के साथ जाने की बात की लेकिन अब जगह जगह पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे लोगों का हुजूम दिखता है जिनकी सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ होती है।

लोगों को न बड़ी मस्जिदों में इकट्ठा होने की इजाज़त है न इंटरनेट और मोबाइल सेवा ही मौजूद है ऐसे में शांति बहाल करने की कोशिश सफल होगी कहना सिर्फ ख्वाब है।
कट्टरपंथी विचार को पनपने का पूरा मौका है अगर हालात सामान्य हों तो ही विचारधारा को हरा कर कश्मीरियों में विश्वास बहाल किया जा सकता है कि सिर्फ कश्मीर ही नहीं कश्मीरी भी हमारे हैं

इधर चौथा पक्ष यानी शेष भारत जो दो हिस्सों में बटा है जिनमें कुछ इस फैसले के साथ हैं और कुछ इसके खिलाफ हालांकि दोनों ही कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं लेकिन सरकार के इस फैसले पर बंटे हुए हैं, जो भारतीय राजनीति को पोषण दे रहे हैं ,एक ओर सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रवाद की परिभाषा के अनुरूप लोग और दूसरी तरफ सत्तापक्ष द्वारा घोषित राष्ट्रद्रोही टोली यानी सब सियासी खेल है जिसे समझना ज़रूरी है क्योंकि अगर इसे नहीं समझा गया तो नुकसान है।

कश्मीर के लोगों को भी समझना होगा कि धारा 370 हटने पर जिस तरह की प्रतिक्रिया हुई है वह उचित नहीं है क्योंकि इससे पहले भी उनकी ही अगुवाई करने वालों ने इसे कमजोर किया है और 75%से अधिक इसे समाप्त किया जा चुका था जो तथ्यात्मक सत्य है और इसमें अब कश्मीरी अवाम को गुमराह करने वाले शामिल थे ,इस बार बस इतना हुआ है कि भारत की मौजूदा सरकार ने अपने राजनैतिक एजेंडे के अनुरूप शोर मचा कर ऐसा किया है ताकि आरएसएस द्वारा चलाई जा रही मुहिम को कामयाब कर देने का संदेश जाय इससे ऊपर कुछ नहीं।
अगर ऐसा नहीं होता तो जैसे पूरवर्ती सरकारों ने इसे आसानी से खोखला किया है इस बार भी किया जा सकता था लेकिन उससे सियासी रोटी नहीं सिक पाती अब इसे मजहबी रंग से भी दिखाया जा रहा है जो उचित नहीं है।
कुल मिलाकर कश्मीर के लोगों को इसे समझना चाहिए और शांति की स्थापना के लिए प्रयास करने चाहिए क्योंकि जिधर वह देख रहे हैं वहां सिर्फ छलावा है कट्टरपंथी और अलगावादियों की सोच से बाहर आकर नई सुबह के लिए कोशिश करनी चाहिए क्योंकि कश्मीर को वापिस जन्नत बनाने की ज़िम्मेदारी भी हमारी है लिहाज़ा यह अमन के बगैर नहीं हो सकता चीज़ों को मजहब के चश्मे से न देखते हुए मानवता की नजर से देखा जाना चाहिए भूख ,बीमारी से मरते लोग हमारे हैं भारत के लाल है हमें इन्हें बचाना होगा ।
सरकार को भी इस काम के लिए समाजसेवी संस्थाओं की मदद लेनी चाहिए प्रतिबंध धीरे धीरे समाप्त किए जाने चाहिए ताकि लोगों में विश्वास बहाल हो दरअसल आज जो हो रहा है उसी की भविष्यवाणी मौलाना हसरत मोहानी ने की थी इन्हीं हालात को देश में पनपते हसरत तब देख रहे थे आइए अब हसरत को समझने की कोशिश दुबारा करे तो समस्या को सुलझाने का हल मिल सकता है। कश्मीरियों ने 370 को भावनात्मक मुद्दा बना दिया है जबकि यह राजनीति का विषय है और इसे शांति से हल किया जाना चाहिए।खैर यूं समझिए यह है किस्सा सियासत का जिसमें जन्नत में फाके हैं।

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