आप फिर मुझपर आग बबूला हो गये होंगे ,सोच रहे होंगे आ गया फिर बेतुकी बात करने , दरअसल आपने तो मुसलमानों की बहादुरी के किस्से कहानी सुन रखें हैं कैसे कैसे लड़ाई जीत ली अरब से चल कर अमेरिका तक पहुंच गए आखिर जब इतना सुन चुके हैं तब यह बात आप कैसे तस्लीम कर सकते हैं ?


जरा सोचिए मौलाना महमूद मदनी ने जब से यह बात कही है कि 2014 के बाद से मुसलमान डरा हुआ है तभी से मुसलमानों की अलग अलग जमाते उनकी टांग खींच रही हैं और उनकी इस बात को सिरे से खारिज कर रही हैं उनका कहना है कि यह मुसलमानों का हौसला तोड़ने की साजिश है और जब पूरे देश में ऐसी प्रतिक्रिया आ रही हो तब अगर मैं कह रहा हूं कि मुसलमान डरा हुआ ही होता है तो आप कैसे बर्दाश्त कर सकते हैं।
हालांकि जमीयत के प्लेटफार्म से अपने निजी मसलों की शिकायत बड़ी खूबसूरती से महमूद मदनी साहब ने करते हुए कहा कि मैं अपने निजी मसलों के लिए जमीयत का प्लेटफार्म नहीं इस्तेमाल कर सकता यह तो उनका हुनर हुआ इसके लिए उनकी खिंचाई नही बल्कि सराहना की जानी चाहिए क्योंकि सलीके से अगर की जाए तो हर बात सुनी जाती है तो मौलाना महमूद मदनी को बात कहने का सलीका भी है उनके पास अल्फाज भी हैं और उन्हें पिरोना वह बखूबी जानते हैं यह उनकी खुसूसियत यानी विशेषता है ,आप मुझसे गुस्सा क्यों हो रहे हैं मैं ईमानदारी से अपनी बात कह रहा हूं आखिर इतना हक तो दीजिए मुझे ,जिसकी जो विशेषता है उसे मानना चाहिए।


खैर जाने दीजिए आप ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर पाएंगे ,क्योंकि हैदराबादी तेवर में आप सुन ही चुके हैं जमीयत के अधिवेशन पर बेबाक राय जिसे आप बेबाक मानते हैं मैं बेबात मानता हूं लेकिन यहां हमारा आपका कोई झगड़ा नहीं जरूरी नहीं कि विचार मिलें लेकिन हां जमीयत का यह अधिवेशन बेमाना रहा यह जरूर कहा जाना चाहिए क्योंकि वह पूरी तरह रक्षात्मक दिखाई दी सब्र की तलकीन मजलूम को जुल्म के खिलाफ नहीं की जाती उसे हौसला दिया जाता है तब जब उसमे प्रतिकार की क्षमता हो लेकिन इस पूरे अधिवेशन में पूरी कौम को जिस प्रकार से मायूसी के दलदल में धकेलने जैसी बात हुई उसने थोड़ा निराश अवश्य किया,लेकिन यह सिर्फ एक पहलू है उसका दूसरा पहलू भी है कि समझदारी से निर्णय लेने की बात भी की गई जो इस पूरे भारतीय मुसलमान के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।


भारतीय मुसलमानों का सबसे बड़ा मसला उनकी गैर समझदारी भरी प्रतिक्रिया ही रही है हमेशा वह स्वयं अपने ही खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल होते आए हैं और अभी भी यह सिलसिला रुकने को तैयार नहीं है तो इस ओर जिस प्रकार ध्यान आकर्षित कराया गया है उसकी सराहना भी होनी चाहिए ।
चलिए अब मैं अपने मुद्दे पर आता हूं कि आखिर मौलाना महमूद मदनी की आधी बात सही और आधी गलत क्यों है ,मौलाना ने कहा की 2014 से मुसलमान डरा हुआ है इसमें इतना हिस्सा कि मुसलमान डरा हुआ है सच है ,लेकिन 2014 से डरा हुआ है यह झूठ है ,क्योंकि मैंने जितना इस्लाम समझा उस अनुसार मुसलमान डरा हुआ है।


मेरी बात को आप शायद समझ नहीं रहे या समझने को तैयार नहीं है आइए आपको कुरान से समझाता हूं।कुरान में तकवा का जिक्र 250 मर्तबा आया है दरअसल तकवा का प्रयोग अलग अलग मानो में कुरान में किया गया है लेकिन इसका मुख्य ध्येय अल्लाह से डरने का है और नैतिकता अनुसार व्यवहार और समाज कल्याण के कार्य करते रहने से है वहीं कुरान में खश्यतिल्लाह की बात भी दोहराई गई है जिसका सीधा अर्थ अल्लाह से डरना है अर्थात मुसलमान होने की यह शर्त है कि मुसलमान अल्लाह से डरता रहे और गुनाहों से दूर रहे इससे यह पता चलता है कि मुसलमान होने की एक शर्त है कि वह अल्लाह से डरता हो अब कुरान से यह साबित होता है कि अल्लाह से डरने वाला मुसलमान होता है यानी मुसलमान डरा हुआ ही होता है आज डर पैदा हो गया ,कल पैदा हो गया ऐसा नहीं है।


लेकिन जिस संदर्भ में मौलाना ने बात की है उसमें और इस बात में फर्क है क्योंकि जो क़ौम अल्लाह से डरती है वह फिर दुनिया में किसी से नहीं डरती और फितना फसाद से दूर रहती है और समाज में न्याय का व्यवहार करती है प्रेम, करुणा मर्यादित आचरण करती है और जो क़ौम दुनिया के किसी जुल्म या जालिम से डरती है इसका सीधा अर्थ जाता है कि अभी उसने कुरान के संदेश को ग्रहण नहीं किया या समझ नही सकी तो अगर मौलाना की बात मानी जाये तो मौलाना को पहले क़ौम तक कुरान के सही संदेश को पहुंचाने का कार्य करना था न कि पूरे मुसलमानों को डरा हुआ बता कर हौसला तोड़ने का हालांकि बात सिर्फ यहीं खत्म नहीं होती जिस तरह पूरे अधिवेशन में प्रस्ताव पारित हुए ज्ञानव्यापी ,मथुरा आदि को लेकर या एनआरसी और कॉमन सिविल कोड को लेकर उससे पहले मौलाना को और पूरी जमीयत को बल्कि मुसलमानों के सभी संगठनों संस्थानों आदि को मिलकर यह प्रस्ताव पास करना चाहिए था कि जो पिछली शताब्दियों में एकेडिमिक क्राइम हुआ है जिसके आधार पर लोग गाहे बगाहे पैगंबरे आज़म और इस्लाम पर भद्दी टिप्पणी कर देते हैं और अपनी बातों को आधार देने के लिए उन किताबों का हवाला पेश करते हैं जिन्हें अब तक मुसलमान कुरान के बाद सबसे अधिक विश्वसनीय माने बैठे हैं उनमें से ऐसी चीज जो दूषित विचार वालों की साजिश के तहत शामिल की गई है हटाई जाए।


कुरान क्योंकि अल्लाह का कलाम है यानी ईश्वरीय वाणी है और स्वयं अल्लाह ने उसकी हिफाजत की जिम्मेदारी ली है अर्थात उसके भीतर किसी भी प्रकार का बदलाव संभव नहीं है लेकिन उसके अतरिक्त कोई भी किताब ऐसी नहीं जिसमे बदलाव न किया जा सके एक अनौपचारिक बातचीत के दौरान इस्लामिक विद्वान और विश्व प्रसिद्ध इस्लामिक विश्विद्यालय जामें अल अज़हर मिस्र से पढ़ कर आए मौलाना अब्दुल मोईद अज़हरी ने कहा कि कुरान अल्लाह की किताब है उसमें बदलाव संभव नहीं है और पैगंबर की बातो का संकलन ईश्वरीय वाणी नहीं है लिहाजा इसमें किसी साजिश के अंतर्गत फेरबदल संभव है इसे ऐसे देखा जाना चाहिए कि पैगंबर खुदा नहीं है इसलिए उससे संबंधित अगर कोई बात कही जा रही है तो दूषित मानसिकता के लोगों द्वारा उसके साथ छेड़छाड़ संभव है यदि ऐसा संभव न होता तो लोग या तो पैगंबर को खुदा समझने की भूल कर देते या कुरान को भी ईश्वरीय वाणी मानने से इंकार कर देते ।अब इस बात पर गौर किया जाना नितान्त आवश्यक है कि मुसलमानों को अपनी धार्मिक किताबों को छानना चाहिए ताकि जो एकेडिमिक क्राइम हुआ है उसे समझा जा सके और आने वाले समय में लोगों को सही बात बताई जा सके ,इससे जहां आए दिन होने वाली भद्दी टिप्पणियों पर लगाम लगेगी वहीं बेमकसद के विवाद से बचा जा सकेगा।

अभी पैगंबर की शान में जो गुस्ताखी हो रही है उसमें काफी हद तक जिम्मेदार मुस्लिम कौम स्वयं है एकतरफ उसके यहां मौजूद कुछ लोभी बेजमीर लोग दूसरों पर भद्दी टिप्पणी करते हैं या मजाक उड़ाते हैं जिसके फलस्वरूप सामने से जब कोई ऐसी बात होती है तो विवाद करते हैं जबकि दूसरी तरफ वह जिम्मेदार जानकार लोग भी इसके मुजरिम हैं जिन्होंने अब तक ऐसे एकेडिमिक क्राइम पर नजर नहीं डाली और जबरन लोगों को उसे ही सच मानने का दबाव बना डाला।


खैर पैगंबर की तौहीन करने वाले किसी भी व्यक्ति को कानून की मदद से जेल की सलाखों के पीछे धकेला जाना चाहिए ,खासतौर पर जब यह सत्ताधारी दल के प्रवक्ता द्वारा की गई हो तो सरकार का यह नैतिक दायित्व है कि वह अपने ही नारे सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास पर अमल करते हुए कार्यवाही करे और नूपुर शर्मा को जेल भेजे क्योंकि समाज में ऐसी बातों का जिससे देश में सांप्रदायिक माहौल बनता हो और लोगों में घृणा का भाव पनपता हो कोई स्थान नहीं होना चाहिए ऐसा करने वाले वैचारिक आतंकी हैं जो अपने दूषित विचार से देश में आग लगाना चाहते हैं।


दरअसल पूरे देश में नई तरह का विमर्श चल रहा है लोग जहां बदलते हुए परिवेश में समय के साथ चलने के लिए विचार कर रहे हैं वहीं मुस्लिम समुदाय अपनी घिसी पिटी परिपाटी पर ही सिर धुन रहा है उसे समय के साथ अपनी सोच में परिवर्तन लाना होगा और अबतक जो उसने नहीं किया और अपनी नजरे फेरे रखी उस काम को करना होगा यानी एकेडिमिक क्राइम को समझ कर उसे सही करने का वरना ऐसे विवाद मुंह बाए आए दिन खड़े रहेंगे और पूरा समुदाय इसी में उलझा रहेगा।
खैर यह पूरा मामला डर से शुरू हुआ और अंत में मैने भी आने वाले समय का डर आपको बता दिया लेकिन यह बात बिलकुल सच है कि मुसलमान डरा हुआ ही होता है जिसमें खुदा का डर नहीं वह मुसलमान नहीं हो सकता वहीं इसके उलट एक बात और है कि खुदा के अलावा अगर किसी और का डर मौजूद है तो ईमान की कमजोरी है मुसलमान अपना ईमान मजबूत करें वैसे मुसलमान से कोई नफरत नहीं कर सकता क्योंकि अल्लाह से डरने वाला न्यायप्रिय होता है और मुसलमान डरा हुआ ही होता है।
यूनुस मोहानी

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