बच के रहना ब्रो ,क़ानून को मिल गये हैं नैना दो !!
जी हाँ अब क़ानून अंधा नहीं है अब तक सिर्फ़ उसके हाथ ही लंबे थे जिससे मुजरिम का बच पाना मुश्किल था लेकिन अब तो उसके पास आँखें भी हैं वह देख देख कर लंबे हाथों से पकड़ सकता है ।न्याय की देवी के हाथ में तराजू और तलवार होने के साथ आंखों में पट्टी इंसाफ की व्यवस्था में नैतिकता के प्रतीक माने जाते हैं.लेकिन अब न्यू इंडिया में धारणा बदल चुकी है अब क़ानून देखे बिना न्याय कैसे करेगा ?
अब यहाँ एक वाजिब सवाल उठता है कि हम सबने हमेशा से क़ानून के हाथों की विशेषता सुनी है क़ानून की दृष्टि बाधिता सुनी है लेकिन क्या कभी आपने क़ानून के कानों के बारे में भी कुछ सुना है ? यह कैसे सुनता है ? किसकी सुनता है ? और क्या सुनता है ?शायद नहीं सुना होगा क्योंकि जब अंधा क़ानून था तो उसके सुनने न सुनने पर किसी का ध्यान ही नहीं गया शायद हाँ लेकिन अधिक ज्ञानी लोग आ जाएँगे यह बताने कि क़ानून संविधान की सुनता है सुबूत सुनता है और गवाही सुनता है लेकिन क्या कभी आपने ख़ुद किसी से ऐसा सुना तो जवाब न होगा !
अब आप भी बेमक़सद की बहस से पक गए होंगें हालाँकि यह तो अब आप अपनी आदत बना चुके हैं बेकार की बहसों को घंटों सुनने की जिसमें एंकर से लेकर पैनलिस्ट तक सब एक दूसरे को कोस रहे होते हैं लेकिन मैं आपको क्यों पकाऊँ मैं सीधे विषय पर आ जाता हूँ ।
विषय यह है कि न्याय की देवी को आँखें मिल गई हैं ,आज भारत के सर्वोच्च न्यायालय में नई मूर्ति लगा दी गई है जिसकी आँखों पर कोई पट्टी नहीं हैं यानी साफ़ है अब इसे महाभारत के युद्ध का वर्णन संजय से नहीं सुनना होगा सीधे धृतराष्ट्र अपनी आँखों से देखेंगे !वैसे देखा जाये यह एक बड़ी खबर नहीं लगती लेकिन जब आप इस पूरे राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य को देख कर इस खबर को समझेंगे तो यह देश की बहुत बड़ी खबर है जिसका अपना बड़ा असर है ।
हालिया विभिन्न न्यायालयों के जिस तरह के फ़ैसले आ रहे हैं और अलग अलग राज्यों में न्यायालय के न्यायमूर्ति जैसी टिपड्डी कर रहे हैं उस पर विचार की ज़रूरत है अभी कर्नाटक के उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ने कहा कि मस्जिद के भीतर जय श्रीराम का नारा लगाने से किसी की कोई भावना आहत नहीं होती लिहाज़ा मुलज़िम पर कोई मामला नहीं बनता और उन्होंने केस डिसमिस कर दिया ,यह मात्र एक बानगी भर है ऐसे न जाने कितने मामले इस देश में रोज़ हो रहे हैं उनमें कुछ चर्चित प्रकरण ही लोगों की नज़र में आते हैं जैसे उमर ख़ालिद और शरजील इमाम ,और उनके साथ बंद न जाने कितने युवा जिन्हें बिना किसी वजह के ज़मानत नहीं दी जा रही है जबकि भारत का सर्वोच्च न्यायालय ख़ुद कहता है कि ज़मानत अधिकार है लेकिन इन युवाओं को जबरन सलाख़ों के पीछे रखना ही न्याय है कैसे बाबा राम रहीम को हर कुछ दिन में पेरोल मिलना यह बताता है कि जघन्य से जघन्य अपराध करने के बाद भी आपको सब सहूलियत मिल सकती है क्योंकि यह नया तंत्र है !
बिना किसी क़ानूनी प्रक्रिया को अपनाये सरकारों द्वारा लोगो को दूषित करार देकर उनके मकान को ध्वस्त करने का खेल चल रहा है और न्यायालय सिर्फ़ टिप्पड़ी करता है ।
पुलिस के द्वारा ख़ुद ही सज़ा देने का खेल आम है आरोप लगा कि पुलिस ने न्याय दिया और एक जैसी कहानी बताकर इनकाउंटर का नाम दे दिया यह सब हो रहा है यानी जिस समय यह महसूस होने लगा है कि अब अदालतों का काम लग़भग समाप्त हो चुका है और त्वरित न्याय की प्रक्रिया शुरू हो गई है !
ऐसे समय में देश के मुख्य न्यायाधीश की पहल पर सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया की जजेस लाइब्रेरी में न्याय की देवी की मूर्ति बदल दी गई है अब इसकी आँखों पर पट्टी नहीं है और न इसके हाथ में तलवार बची है उसकी जगह संविधान ने ले ली है यानी क़ानून देख कर न्याय करेगा !
अब बड़ा सवाल यह है कि क़ानून क्या देखेगा अपराध की क्रोनोलॉजी और साक्ष्य या फिर प्रधानमंत्री जी की बात मानेगा जिसमें वह कहते हैं कपड़े देख कर पहचानिये?
अब क़ानून देखेगा कि मामला किसी दलित आदिवासी या मुसलमान का है या फिर किसी और का और उस आधार पर न्याय देगा ?
यानी अब क़ानून प्रधानमंत्री के बताये फ़ॉर्मूले के आधार पर कपड़ों से आपराधियों की पहचान करता दिख सकता है तो हैरानी की बात नहीं होनी चाहिये, व्यक्ति के धर्म को आधार बनाकर या जाति को आधार बनाकर न्याय मिलता है अभी यह धारणा धीरे धीरे मज़बूत हो रही थी विभिन्न न्यायालयों की टिप्पड़ी के आधार पर या उनके द्वारा दिये गये फ़ैसलों के आधार पर इसको और अधिक बल देश के मुख्य न्यायाधीश के उस बयान ने दिया जिसमें वह बाबरी मस्जिद रामजन्मभूमि विवाद पर बात करते हुए कहते हैं कि जब यह मामला मेरे पास आया तो मैं भगवान की शरण में चला गया ।
अभी इस मामले ने तूल पकड़ लिया है और इनके तमाम फ़ैसलों की समीक्षा शुरू हो गई है क्योंकि माननीय मुख्य न्यायाधीश का कार्यकाल 11 नवंबर को समाप्त हो रहा है और उनकी जगह जस्टिस खन्ना लेंगे वही जस्टिस खन्ना जिनकी नियुक्ति पर बड़ा बवाल मचा था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में उनकी नियुक्ति पर कोलेजियम को आपत्ति थी ख़ैर क़ानून का राज इस हद तक क़ायम हो ही चुका है कि अब न्यायालयों में चक्कर लगाने की ज़रूरत लगभग ख़त्म हो गई है और सरकार और उसका तंत्र त्वरित न्याय दे रहा है चाहे घर गिराना हो या फिर इनकाउंटर करना हो फटाफट हो रहा है !
यदि कोई व्यक्ति अपनी फ़रियाद लेकर न्यायालय जा भी रहा है तो न्यायालय का फ़ैसला आये इससे पहले काम हो जाता है ऐसे हालात में जब न्याय देख देख कर पहचान पहचान कर किया जा रहा है तब क़ानून की देवी आँखों में पट्टी क्यों बांधे रहती लिहाज़ा उसकी आँखें हर मंज़र गौर से देखें और अच्छी तरह पहचान कर ही फ़ैसला करें इसके लिए आज़ाद कर दी गई है ।
प्रधानमंत्री से लेकर सड़क का कार्यकर्ता तक अपराधियों की पहचान धर्म और जाति के आधार पर करने की वकालत कर रहे हैं और मीडिया उस एजेण्डें को लगातार हवा दे रहा है कभी थूक जिहाद की खबर बना कर कभी फ़र्ज़ी पोस्टमार्टम रिपोर्ट पर चीख कर लेकिन न्यायालय ख़ामोश है देश में नरसिंहानंद जैसे लोग ज़हरीले बोल बोल कर आज़ाद हैं और आज़म ख़ान को बीमारी की हालत में जेल में रहना है ।
जब देश में नफ़रती बोल के ख़िलाफ़ क़ानून है तो कैसे सुदर्शन न्यूज़ ज़हर उगलता रहता है झूठी फ़र्ज़ी खबरें चलाकर और सब ख़ामोश देखते हैं बस इसलिए कि यह एक ख़ास धर्म की बात करने वाला चैनल है ?यह सारी बानगी है देख कर न्याय करने की इसलिए अब बिना किसी लुका छुपी के इसे किया जाना चाहिए इसलिए आँखें खोल दी गई हैं और क़ानून के डर को वीके ख़ास तरह के लोगों को आज़ादी मिल सकती है इसलिए तलवार की जगह किताब ने ले ली है अब वह भारत का संविधान है या फिर ख़ास तरह के क़ानूनो का ज़ख़ीरा इस बात पर सब मौन हैं क्योंकि देश में संविधान को बदलने की माँग चल ही रही है क्यूँकि बाबा साहब का संविधान भारत की वकालत करता है और बिना भेद भाव के हम भारत के लोग कहता है जो न्यू इंडिया में क़ुबूल नहीं है ।
आइये अब न्यू इंडिया में क़ानून जोकि अंधा नहीं है देख देख कर फ़ैसला करने में सक्षम है उसका स्वागत करें !!!!