आप परेशान हो गये होंगे जिसे शेर समझ रहे थे आखिर कैसे डर गया? जिन असदउद्दीन ओवैसी के सोशल मीडिया पर पोस्टर तैरते हैं जिसपर लिखा होता है LION आखिर वह अपने ही घर में कैसे डर गया ? हैरान मत होइए बल्कि परेशान होइए क्योंकि जिस तरफ आप अपनी क़यादत के लिए उम्मीद लगाए बैठे थे आप का भ्रम टूट गया है ,और यह भ्रम यूं नहीं टूटा है कि कोई क्रिच निकली हो यह चकनाचूर हो गया है,रेत का किला ढह चुका है और अब वक़्त है आपके बेदार हो जाने का।
हैदराबाद यानी वह शहर जहां से असदुद्दीन ओवैसी आते हैं वहीं तहरीक मुस्लिम शब्बान ने एक कार्यक्रम आयोजित करने का मन बनाया जिसका नाम सदाए उम्मत कांफ्रेंस रखा गया ,इस दो दिवसीय कार्यक्रम में पहले दिन तो मुस्लिम बुद्धिजीवियों को सर जोड़कर बैठना था और देश में वर्तमान समय में मुसलमानों के सामने मुंह बाये खड़े तीखे सवालों के जवाब तलाशने थे और दूसरे दिन आधे वक़्त यही काम किया जाना था फिर एक जनसभा होनी थी जिसमें पूरे देश से आये हुए मुस्लिम संसद सदस्य और उलमा को अपनी बात रखनी थी।यहां एक बात याद रखनी होगी कि कार्यक्रम हैदराबाद में हो रहा था लेकिन इसमें असदुद्दीन ओवैसी को दावत नहीं दी गई थी।

बात इतनी ही भर नहीं थी बल्कि कार्यक्रम को आयोजित करने वाले लोग भी हैदराबाद के ही थे अब यहीं से शुरू होता खौफ का खेल हुआ यूं कि जब इस कार्यक्रम की घोषणा हुई तो उसके बाद से ओवैसी भक्त एक गीरोहबंदी में जुट गए जिसका सीधा फायदा इस कार्यक्रम को होने लगा क्योंकि मनुष्य की आदत है कि उसे जिस चीज से रोका जाता है वह उसे जरूर करना चाहता है ,अभी लोग एकजुट सिर्फ इसलिए होना शुरू हुए क्योंकि बात समाज की और देश के मौजूदा हालात पर होनी थी दूसरा यह कि आखिर क्यों रोका जा रहा है?

इस कार्यक्रम में जहां उत्तरप्रदेश , बंगाल बिहार ,कर्नाटक , महाराष्ट्र ,दिल्ली,पंजाब,आसाम से हर जगह से वह लोग आ रहे थे जो कहीं न कहीं मुस्लिम समाज का अपने अपने क्षेत्र में नेतृत्व कर रहे थे यही बात कौम के शेर को पसंद नहीं है कि कोई उसकी मांद के बाहर आकर वह बात करे जिससे उसका शिकार भड़क जाय और भाग जाए।
अगर बिहार से कोई जहांगीर अदील,दिल्ली से अशहर हाशमी, यूपी से मोईद अजहरी,राजस्थान से हुसैन शेरानी,बंगाल से मंज़र जमील ,अलीगढ़ से नजर अब्बास जैसे लोग जमा हो रहे हैं हालांकि यह सभी लोग अपने अपने क्षेत्र में समाज और देश के हित में बड़ा काम कर रहे हैं तो इससे कौन सा खतरा है?

देश की संसद में अपनी अपनी पार्टियों में मुसलमानों के चेहरे के तौर पर चुनकर अाए सांसद भी इस आयोजन में आ रहे थे सवाल यह भी है कि क्या जनप्रतिनिधि को किसी मुद्दे पर बात करने से रोका जा सकता है?
यहां मैंने खुदको और आपको ही शिकार कहा है बुरा मत मानिएगा हम और आप शिकार ही हैं जो चाहता है अपना पेट भरने के लिए हमें इस्तेमाल करता है।वैसे भी हम एक झुंड के तौर पर बिकते रहने के आदी हो चुके हैं और हमारी इस आदत का फायदा धार्मिक ठेकेदार लगातार उठाते अाए हैं चाहे वह नाम जमीयत का हो या फिर किसी और नाम पर मुसलमान को बेचते रहने में सभी बराबर के हिस्सेदार हैं और यह काम अभी भी चल रहा है।
अभी जिस तेज़ी से सत्ता से चिपकने के लिए लोग बेचैन है उसका ताज़ा नमूना कश्मीर मामले पर कुछ लोगों का यह कहना कि वहां सब कुछ सामान्य है हम कश्मीर में लोगों से मिलकर आ रहे हैं वहां सब ठीक है यह लोग दिल्ली में पहले भारत के गृहमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात करते हैं फिर एक प्रतिनिधिमंडल लेकर कश्मीर जाते हैं और यह बयान देते हैं ।खैर औरंगज़ेब और छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना तो आप छोटे मदनी से सुन ही चुके हैं ऐसे बहुत से मामले है जिन्हे आप याद कीजिए तो ज़हन में बहुत सी तस्वीरें आयेंगी और आपका विश्वास टूटता चला जाएगा।

खैर बात हो रही थी असदुद्दीन ओवैसी की जिनकी तरफ इस समय देश का मुसलमान इसलिए बढ़ रहा था कि अब हम अपनी सियासी लीडरशिप के साथ ही रहेंगे उनका खौफ भी कम नहीं है जो इस कार्यक्रम के आयोजन की बात शुरू होते ही बाहर आ गया या यूं कहिए खाल उतर गई और असली चेहरा सही वक़्त पर नजर आ गया ।
आप मेरी इस बात से नाखुश हो सकते हैं मुझे भला बुरा कह सकते हैं मुझपर इल्ज़ाम लगा सकते हैं लेकिन मेरा काम सिर्फ आपको यह अहसास दिलाना है कि हम कहां जा रहे हैं इसपर सहमत होना या न होना आपका व्यक्तिगत मामला है।
दरअसल असदुद्दीन ओवैसी इस वक़्त स्वयंभू या समाज के पास नेतृत्व न होने की वजह से मजबूती का फायदा उठाते हुए समाज के नेता बनने की मुहिम में हैं और वह इस समय ऐसी कोई भी नई बात छेड़ने वाले को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं जो उनकी सत्ता को चुनौती दे सके क्योंकि आम जनता में अभी उनके नेतृत्व को एकमत की स्वीकृति प्राप्त नहीं है लोग उन्हें आरएसएस का एजेंट भी मानते हैं और इस बात को झुठलाने का असफल प्रयास लगातार चल रहा है और यही डर की वजह है।

जैसे ही हैदराबाद में सदाये उम्मत कांफ्रेंस का ऐलान हुआ वैसे ही घर के अंदर ही बगावत के तौर पर इसे देखा जाने लगा और इसे रोकने या असफल करने के प्रयास तेज हो गए लेकिन क्योंकि समाज में इस वक़्त झटपटाहट इतनी ज़्यादा है कि इसे रोक पाना किसी के बस की बात नहीं थी लिहाज़ा फिर आखरी हथकंडा अपनाया गया और तेलंगाना में मजलिस के समर्थन से चल रही सरकार के तंत्र ने आयोजन की इजाज़त देने से इंकार कर दिया और कहा गया कि इस आयोजन से कानून व्यवस्था बिगड़ने का बड़ा खतरा है,आइए अब समझते हैं यहीं से कि खेल क्या है?
दरअसल बाबरी मस्जिद,तीन तलाक़, जैसे इश्यू पर भावुकता के साथ जज्बाती बात करने वालों की समर्थित सरकार उस आयोजन की इजाज़त नहीं देती जो मुसलमानों द्वारा इन मुद्दों पर सर जोड़कर कोई राय बनाने के लिए किया जाना था आखिर क्यों ? सवाल यह भी है कि जब हैदराबाद में देश के सांसद जाकर आवाम से बात नहीं कर सकते तो कश्मीर का रोना क्यों ?आप जवाब दीजिए कि उम्मत का दुश्मन कौन ? मैं अपनी तरफ से कोई विचार नहीं रख रहा हूं सब आपको सोचना है अब अगर आपने गलत फैसला किया तो भेड़ बकरियों के बराबर भी आपकी कीमत नहीं है और फिर भी यह ठेकेदार आपको बेच ही देंगे।

याद रखिए बाबरी मस्जिद के लिए आंसू बहाने वाले ,तीन तलाक़ पर खूबसूरत तकरीर करने वाले और आपको जज्बाती बयान से बेवकूफ बनाने वाले सिर्फ आपको बेचने की फिराक में हैं अब आप इतने समझदार तो हैं ही कि आप समझ सके कि अपने ही घर में क्यों डर गए ओवैसी? अगर नहीं समझे तो अभी बिकते रहिए आपको बेचने वालों कि लंबी फौज मौजूद है।
यूनुस मोहानी

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