आज़म ख़ान की बदजुबानी कोई नई बात नहीं है लेकिन उनकी कोई भी बात बेमकसद तो नहीं होती ऐसा माना जाता रहा है,हर बार वह अपने व्यंग्य के तीरों से मैदान फतह करते रहे हैं।अभी ताज़ा मामला है संसद में प्रोटेम स्पीकर पर टिप्पणी का,वैसे तो आज़म की पूरी बात जो उन्होंने कही उसमे कहीं भी अमर्यादित वार्तालाप नहीं है,लेकिन सियासत तो इसी का नाम है कि बयान के बाद सियासी तूफ़ान आ गया है।
तूफ़ान ऐसा वैसा नहीं इतना तेज़ है कि उसने महिला आयोग को झकझोर कर रख दिया ,छोटी छोटी बच्चियों के चीर हरण पर ख़ामोश रहने वाला आयोग कार्यवाही करने के लिए आतुर हो गया।चलिए यह तो बात नारी संवेदना की है।

हालांकि देश में कई जगह बाढ़ आयी हुई है लोग ज़िन्दगी , मौत की लड़ाई लड़ रहे हैं, लेकिन यह बात इसलिए महत्व नहीं रखती क्योंकि इसमें मरने वाले कोई धन्ना सेठ नहीं है ,बल्कि गरीब हैं ।
गरीबी की बात भारत के हर ज़िक्र में आ जाती है,अभी ताज़ा तरीन तस्वीरें उड़ीसा से अाई हैं ,
उड़ीसा के एक अस्पताल का दर्दनाक मंज़र जहां पति अपनी पत्नी के शव को बोरी में ले जाने के लिए उसे तोड़ता हुआ।

जहां पति अपनी पत्नी की लाश को घर ले जाने के लिए अस्पताल में उसकी हड्डियां तोड़ता है ताकि उसे बोरी में भरकर और बांस में लटकाकर पिता और पुत्र अपने गांव ले जा सके।यह इसी भारत की तस्वीर है जहां बुलेट ट्रेन की बात हो रही है ,और जहां दीप जलाने के लिए करोड़ों की व्यवस्था की जाती है।
आपको इन सब बातों को जानकर दुखी होने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि आप हिन्दू ,मुसलमान, सिख, ईसाई,और न जाने क्या क्या हैं,आपके लिए लाशे कोई महत्व नहीं रखती ,अगर वह किसी बड़े नेता की न हों ,लाशों की बात अाई तो फिर शहीदों की भी बात करनी चाहिए क्योंकि कल कारगिल विजय दिवस था,जिसके आयोजन पर देश के बड़े बड़े नेताओं को आपने शहीदों को याद करते देखा होगा। जब बात कारगिल की आ ही गई है तो ज़रा अपने वीरो के परिवारों की तरफ भी देख लिया जाए जो अभी भी चक्कर काट रहे हैं दफ्तरों के । शहादतों को मेरा सलाम लेकिन व्यवस्था पर अफसोस ,भारत के वीरों ने तो अपनी ज़िम्मेदारी अपने खून की आखरी बूंद तक वतन को देकर निभा दी व्यवस्था ने उन्हें जो दिया आप खूब जानते हैं।
लीजिए आपको बेवजह मैंने दुख की दास्तान सुना डाली जिससे आप शायद थोड़ा समय कुछ सोच में पड़े बाद में आपको इससे कोई फर्क नहीं पड़ना है ,मैंने शायद आपका समय और अपने शब्द दोनों बर्बाद कर लिए, आप मुझे ज़रूर बता दीजिए मैं आपसे माफ़ी मांग लूंगा ,क्योंकि मुझे आपकी नारजगी से डर लगता है आखिर आये दिन लोगों को मारा जा रहा है ।
चलिए आपके चाव के विषय पर आते हैं राजनीत की बात करते हैं जिससे आपकी दिलचस्पी बहुत है मगर यह बात और है कि आप शायद समझते नहीं या समझना चाहते नहीं ,खैर जो भी है बात आज़म की हो रही है उन्होंने साफ कहा कि वह अपनी टिप्पणी पर माफ़ी नहीं मांगेगे,जिसे जो कार्यवाही करनी हो करे,संसद में सब एक सफ में खड़े हैं चाहे कांग्रेस हो या बीएसपी अब यहीं से शुरू होती है कहानी,।
अखिलेश की निष्क्रियता और गलत फैसलों से समाजवादी पार्टी को जिस तरह नुकसान हुआ है उसकी भरपाई अब अखिलेश यादव के बस की बात नहीं है,क्योंकि न मुलायम अब पहले की तरह काम कर सकते हैं वहीं चाचा शिवपाल भी अपनी नई पार्टी बना कर उनके लिए मुसीबत बने हैं ऐसे में अगर अखिलेश को वापिस खेल में प्रासंगिक होना है तो आज़म ज़रूरी है।
अखिलेश यादव अभी मुस्लिम समाज के विश्वास को खो चुके हैं यह वह बखूबी जानते हैं वहीं यादव भी अभी फैसला नहीं कर पा रहे कि उन्हें किसके साथ जाना है ,क्योंकि लगातार यादवों की हो रही हत्या पर अखिलेश का एसी कमरे में बैठ कर ट्वीट करना लोगों को अखर रहा है,चापलूस मंडली की राय पर प्रतिनिधिमंडल की राजनीति ने उनकी साख को और बट्टा लगाया है।
समाजवादी पार्टी की पहचान उसके कार्यकर्ताओं का सड़क पर उतर कर प्रदर्शन थी जिसे लगातार वह खोती जा रही है जिसकी वजह चापलूसों का वर्चस्व है जिससे ज़मीनी कार्यकर्ता घर बैठ गया और पार्टी लोकसभा चुनाव में गठबंधन के बावजूद 5 सीटों पर सिमट गई ,यहां तक की डिंपल भी चुनाव हार गई।
शिवपाल यादव संघर्ष को तैयार

अभी चाचा शिवपाल ने कमर कस ली है और उन्होंने सड़क की लड़ाई लड़ने का फैसला कर लिया है,इस क्रम में वह 8 अगस्त को लखनऊ में प्रदर्शन करने जा रहे हैं सरकार के खिलाफ,यह प्रदर्शन अगस्त क्रांति दिवस 9 अगस्त की पूर्व संध्या पर होना है पहले इसे 9 को किया जाना था लेकिन 9 अगस्त शुक्रवार है इसका ख्याल रखा गया है।हालांकि अभी अखिलेश भइया सोच विचार में हैं वैसे भी उत्तर प्रदेश विधानसभा में आज़म के न होने से समाजवादी पार्टी की कोई मजबूत आवाज़ नहीं दिखती जिसका भी नुकसान हो रहा है।
अब अखिलेश रामगोपाल पर भरोसा करते हैं तो अगला चुनाव उन्हें बीजेपी के साथ ही मिल कर लड़ना होगा उसके सिवा कोई अन्य उपाय नहीं होगा लेकिन अगर आज़म चाचा के सुझाव पर अमल होता है तो बाज़ी पलटने की ओर विचार किया जा सकता है।
दरअसल सीन यह है कि आज़म ने टिप्पणी कर दी है जिसके विरूद्ध लगभग सभी दलों के सांसद हैं ,और वह आज़म के खिलाफ कार्यवाही चाहते हैं ,आज़म ने मौके का फायदा उठाते हुए साफ कह दिया कि वह माफ़ी नहीं मांगेगे ,जो कार्यवाही करनी हो कर दी जाय,आज़म के समर्थन में अखिलेश यादव खड़े हो गए हैं ।
वहीं एक बहस चल निकली है कि बीजेपी के बहुत से नेताओं ने अमर्यादित टिप्पणी महिला सांसदों पर की यहां तक कि खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ऐसी टिप्पणी की
कांग्रेस नेत्री रेणुका चौधरी जिनपर प्रधानमंत्री ने सदन में टिप्पणी की थी।

लेकिन तब कोई कार्यवाही नहीं की गई,आज़म के खिलाफ यह कार्यवाही दुश्मनी निभाने के लिए की जा रही है ,आज़म का जुर्म यह है कि वह मुसलमान है।
अब काफी कुछ आप समझ रहे होंगे ,यानी आज़म के विरूद्ध कार्यवाही का मतलब मुसलमानों के खिलाफ कार्यवाही और जिसपर कांग्रेस ,बीएसपी यानी सभी खुदको सेक्युलर कहने वाले दल आज़म के खिलाफ कार्यवाही में साथ हैं ।इससे जहां अखिलेश प्रियंका फैक्टर को दबा सकते हैं वहीं मुस्लिम समाज को अपने साथ खड़ा कर सकते हैं । माया को भी बड़ा नुकसान होगा और उनकी संभावनाओं को जो पहले भी कमजोर थी और ठेस लगेगी ।

आज़म की अगर सदस्यता जाती है तो वह पूरे समाज में अपनी मजलूमियत का रोना रोएंगे ,लोगों को बताएंगे कि कैसे उनके साथ ज़ुल्म हुआ क्योंकि वह मुसलमान हैं, वह अपनी लड़ाई को समाज की लड़ाई बना देंगे और अपनी बनाई संस्था जौहर यूनवर्सिटी का लोगों को हवाला देंगे कि उन्होंने समाज के लिए यह बड़ा काम किया है और इसे बचाने के लिए वापिस प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार ज़रूरी है।
अखिलेश आज़म ख़ान का समर्थन कर रहे हैं

आज़म ने यहीं दूसरा खेल भी खेल दिया है कि अगर उनकी सदस्यता जाती है तो वह रामपुर से डिंपल यादव को लोकसभा चुनाव लड़ाएंगे ,अपने ऊपर ज़ुल्म की बात कर आज़म डिंपल को जिता कर यह संदेश दे देंगे कि मुस्लिम समाज समाजवादी के साथ आ खड़ा हुआ है लिहाजा यादवों की दुविधा भी दूर होगी ।
हालांकि यह सिर्फ कयास भर है लेकिन अगर ऐसा होता है तो यह अखिलेश के लिए संजीवनी ही होगा। अब शिवपाल यादव को इस चाल की काट ढूंडनी है जबकि उनके पास पर्याप्त सामर्थ्य है अगर वह सड़क की लड़ाई जीत लेते हैं और मुसलमानों को भागीदारी की बात पर कायम रहते हैं तो चाल उल्टी पड़ सकती है ,क्योंकि मुसलमान अब बंधुआ के तौर पर वोट करने को तय्यार नहीं है।
और सिर्फ इतना ही नहीं अब वह सियासत की उठापटक को भी समझने लगा है वह आज़म के इस प्लान का तब ही समर्थन करेगा जब उसके पास कोई विकल्प न हों ,अगर उसे विकल्प मिलता है तो प्लान आज़म फेल भी हो सकता है।लेकिन अभी आज़म खान ने एक तीर से कई निशाने साध दिए हैं,जहां एक ओर वह अखिलेश की समाजवादी में भी उसी भूमिका में होंगे जैसी भूमिका उनकी मुलायम के दौर में थी,और इस बार उनकी पकड़ और मजबूत होगी क्योंकि अखिलेश में मुलायम जैसी समझ और क्षमता नहीं है,वहीं वह समाजवादी पार्टी को मजबूत का लेंगे,मायावती की संभावनाओं को रोक कर तेज़ी से पैर पसार रही कांग्रेस पर रोक लगा देंगे,इसी क्रम में वह असदउद्दीन ओवैसी की उत्तर प्रदेश में बाढ़ रही लोकप्रियता पर अंकुश लगाकर खुद को अकेला सबसे बड़ा मुसलमान नेता प्रदेश में स्थापित कर लेंगे।
यूनुस मोहानी
8299687452,9305829207
younusmohani@gmail.com

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