हां आजकल जिधर देखिए सिर्फ अमृत की ही बात हो रही है भले ज़हर उगलने वाले ही क्यों न हों लेकिन उनकी ज़बानो पर भी अमृत का ही गुणगान है ,आखिर क्यों न हो अमृत की बात आखिर अमृत महोत्सव जो है वह भी आज़ादी का अमृत उत्सव। बस यहीं भूल हो गई उस नादान से अमृत अमृत का शोर सुनकर उसके मन भी एक इच्छा जागी होगी चलो हम भी अमृत पान करें और उसके साहस को आज़ादी शब्द ने और बल दिया कि अब आजादी भी है और अमृत भी क्यों न मैं भी अमृत का मज़ा चखू ,यहीं चूक हो गई शायद ?आखिर बच्चा तो बच्चा है उसे कहां समझ इतनी कि अमृत पर पहरा है विष भरे भूजंगों का और उसने गलती कर दी।

भारत का संविधान जो अमृत उत्सव मनाने में अभी 4 साल पीछे है हाथ बांधे यह सब देख रहा था उसके अंदर समहित शब्द जो अनुच्छेद 17 में पिरोये हुए थे आपको भी याद होंगे कभी आपने भी पढ़े होंगे वरना सुने जरूर होंगे, भारत का संविधान कहता है” अस्पृश्यता का अंत किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है । ‘अस्पृश्यता’ से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू करना अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा ।” अनुच्छेद 17 ,हालांकि बालक को कहां इतनी समझ कि संविधान को जाने लेकिन उसने बड़ी गलती कर दी समाज को समझने में ,उसने खुद को भी इंसान समझ लिया घोर पाप ,भला दलित भी इंसान होते हैं कहीं ?

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शायद उसे लगा होगा हर तरफ हिंदुत्व की लहर चल रही है अपने झोपड़े में भी उसने सुना होगा कि भारत में हिन्दू खतरे में हैं और वह भी हिंदू हैं ,शायद कहीं से उसके कानों में आवाज पड़ी हो कि बड़े बड़े नेता जी लोग दलितों के यहां खाना खा रहे हैं और दलित बस्तियों में प्रवास कर रहे हैं, उसे क्या समझ यह राजनीत है उसने सच समझ लिया होगा उसका बाल मन यही से शायद भ्रमित हुआ है कि अब तो सब एक समान हैं फिर सब अमृत पान कर सकते हैं, लेकिन नासमझ यह नहीं समझा यह सिर्फ छल है सच नही, आप समझ तो रहे हैं कि मैं राजस्थान के इंद्र मेघवाल की बात कर रहा हूं वही बच्चा जिसे पानी पीने की कीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

वही बच्चा जो कथित ऊंची जाति की नजरों में अछूत था ,वही इंद्र जिसे बाबा साहब द्वारा लिखे भारत के संविधान ने बराबरी का हक़ दिया है लेकिन यह हक अभी भी कागज़ में दर्ज है।अस्पृश्यता पर रोक लगाने के लिए अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम, 1955 बनाया गया था जिसे बाद में बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कर दिया गया ।इसके बारे में आपने सुना ही होगा वहीं भारत में दलितों की सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 मौजूद है इन सब के बावजूद बड़ी जाति वाले मास्टर साहब के घड़े तक एक दलित जाति से संबंध रखने वाले बच्चे के हाथ पहुंचने पर मौत का विधान है यह है जगलराज ।

भारत में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की 2020 की रिपोर्ट में रिकॉर्ड किया गया है कि भारत में अनुसूचित जाति (एससी) के एक व्यक्ति को पिछले एक साल में हर 10 मिनट में अपराध का सामना करना पड़ा, 2020 में दर्ज किए गए कुल 50,291 मामलों में वृद्धि हुई जोकि पिछले वर्ष से 9.4% बढ़े। वहीं अनुसूचित जनजाति (एसटी) समुदायों के खिलाफ अपराध भी 9.3% बढ़े जो पहले से बढ़कर कुल 8,272 मामले हो गए।
आप आंकड़ों में मत उलझिए बस इतना समझिए उसने सोचा था कि अमृत महोत्सव है घड़े में शायद अमृत हो इस बार सबको इजाजत है अमृत पान की और बस उसके हाथ घड़े तक पहुंच गए जिसकी कीमत उसकी जान निकली।

हालांकि यह अमृत उत्सव आजादी का था लेकिन अब उस बालक को क्या खबर ,वह बेचारा समाज को कैसे समझता कि आजादी के लिए दंगाई होना जरूरी है और हत्यारा भी बलात्कारी होने पर तो पूरी आजादी का अमृत उसी के लिए होगा जो इन योग्यताओं को रखता होगा ।
आखिर आजादी का अमृत पीते गुजरात के बलात्कारियों हत्यारों की तस्वीर तो आपने देखी होगी ,प्रधानमंत्री जी की ओजस्वी वाणी में जब भारत नारी सम्मान की कथा सुन रहा था तभी एक गर्भवती महिला का बलात्कार करने वाले उसकी बच्ची सहित 7 लोगों के हत्यारे आजादी का अमृत पान गांधी के गृह राज्य में कर रहे थे।

बिलकीस का नाम लेना जरूरी नहीं लेकिन आपको शायद वॉट्सएप की दुनिया में नाम याद न रहा हो इसलिए ले रहा हूं ।जो चुनावी हिंदू हैं और सामाजिक दलित,अछूत हैं वह आजादी के इंतजार में हैं बलात्कारियों और हत्यारों की आजादी छीनी जाए आंखों में आसूं लिए निशब्द बिल्कीस की गुहार कौन सुनेगा अभी हम सब इंतजार में हैं।वैसे आपको आजादी का अमृत भरा कलश मुबारक जिसे छूने से दलित मार डाला जाता है।

यूनुस मोहानी
younusmohani@gmail.com

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