यह एक नई बहस है लेकिन इस समय इसका समझा जाना मुल्क की आवाम के लिए ज़रूरी है,राहुल गांधी अभी ब्रिटेन में हैं और कांग्रेस मौन व्रत में जबकि संघ और भारतीय जनता पार्टी अपने काम में जुटी हुई है,जहां संघ और बीजेपी को लग रहा है कि वह कुछ कमज़ोर है वहां उसने सिर्फ उसकी भरपाई के लिए एक वर्ग की तैयार करने की ठानी है और उस पर लगातार काम जारी है।

मुसलमानों की रहनुमाई का दावा कर सरकारी सुख सुविधाएं बटोरने वाली जमात अब संघ की गोद में बैठी है क्योंकि अभी सरकार भारतीय जनता पार्टी की है तो संघम शरणं गच्छामि की धुन पर थिरकते हुए तथाकथित मुस्लिम रहनुमा नज़र आ रहे हैं। संघ का प्लान साफ है कि अगर उसे 10% मुस्लिम वोट भी मिल जाता है तो उसके विपक्षी को 20% का सीधा नुकसान होगा वहीं इस 10% वोट से उसका अपना वोटर भी मोटिवेट होगा और उसको होने वाले नुकसान में कमी होगी ।

अगर ऐसा होता है तो मोदी है तो मुमकिन है की गूंज अगले 5 वर्षों के लिए बढ़ जायेगी और कांग्रेस अपनी सुस्ती का मातम मनाती रहेगी क्योंकि कांग्रेस आज आयातित विचार से चल रही है और अपने मूल विचार को भूलती जा रही है ,हालांकि राहुल गांधी अकेले व्यक्ति हैं जोकि कांग्रेस के विचार को जिंदा रखना चाह रहे हैं और एक राजनैतिक संत के रूप में उनको समझा जाना गलत नहीं है लेकिन उन्ही के पार्टी में उनके विचार के साथ मिलकर चलने वालों की कमी है जिसका हालिया उदाहरण छत्तीसगढ़ कांग्रेस अधिवेशन में फूलों की सड़क बना कर मात्र चाटुकारिता करने वाली हरकत है ।
क्योंकि एक तरफ राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा पैदल करते हैं सर्दी गर्मी ,बरसात सब झेलते हैं वहीं प्रियंका गांधी का इस तरह का स्वागत अखरता है अब इसमें गलती किसकी है यह अलग विषय है लेकिन साफ तौर से यह कांग्रेस के नए विचार की अपरिपक्वता ही समझी जायेगी।खैर यह बहस का विषय नहीं है अभी मुद्दा मुसलमानों की रहनुमाई का दावा करने वाले जमीयत के दोनों धड़ों का संघ प्रेम ,जमाते इस्लामी का समर्थन और नदवा तथा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सभी का साथ जिस तरह संघ और बीजेपी को मिल रहा है उसने उनके मंसूबों को कामयाब करने की जिम्मेदारी उठा ली है,और मुसलमानों की कमजोरी वह रिटायर्ड सरकारी अधिकारी जिनको अपने घर में भी शायद बहुत कुछ अहमियत नहीं मिलती और क़ौम के अलंबरदार बन जाते हैं ने भी इस काम को अंजाम देने का ठेका लिया हुआ है।

उधर कांग्रेस सिर्फ मुसलमानों को करीब करने में डरती दिख रही है और सॉफ्ट हिंदुत्व का नया चोला पहनकर इतरा रही है जबकि यह बात बिल्कुल साफ है कि कांग्रेस को समर्थन करने वाला वर्ग किसी धर्म के नाम पर वोट नहीं करता बल्कि भारत की आत्मा सद्भाव ,प्रेम भाईचारा में विश्वास करता है।
जमीयत के अधिवेशन में मौलाना अरशद मदनी ने जो नई बहस छेड़ी और इसका जो असर हुआ उससे सीधे तौर पर संघ को फायदा हुआ और वक्त बीता कि पत्रकार और पूर्व सांसद शाहिद सिद्दीकी की अगुवाई में पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी,पूर्व कुलपति अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय जमीरुद्दीन शाह जमीयत के लोगों के साथ संघ की शरण में पहुंच गए वहां इन्होंने क्या समझाया या इनको समझा कर भेजा गया इस बात को किसी भी पक्ष ने देश के सामने नहीं रखा ।
इसे इस तरह से भी देखा जा सकता है कि क्या गोपनीय रणनीत बनी इसे कोई नहीं जानता सिवा इस पूरे खेल में शामिल कथित मुस्लिम कयादत के वैसे यहां एक बात खूब अच्छी तरह से समझने की है यह जिस विचारधारा से आते हैं उसके मानने वाले भारत में मात्र 10% मुसलमान ही हैं और आरएसएस का टारगेट भी वही है ,लिहाजा संघ ने इनसे डील कर ली और आगे का सफर शुरू भी कर दिया जिसका उदाहरण है अगला आयोजन स्नेह मिलन ।
उधर कांग्रेस को यह हकीकत आज तक समझ नहीं आ सकी और उसने हमेशा इन 10% मुसलमानों के नेताओं की ही बात सुनी जबकि भारत में रहने वाले मुसलमानों का लगभग 80% सूफी विचार से सहमत है और यही एकमात्र वजह है कि देश में नफरत का प्रसार तेजी से नहीं हो पा रहा ।
राहुल गांधी कन्याकुमारी से कश्मीर तक पहुंच जाते हैं लेकिन उसके बाद भी अगर इस हकीकत को नहीं समझते तो यह कांग्रेस नेतृत्व के पतन का मुख्य कारण है,दरअसल अभी जहां कांग्रेस तीन राज्यों का चुनाव हारी लेकिन उपचुनावों में उसे बंगाल और महाराष्ट्र में जीत हासिल हुई और उसके पास जश्न मनाने की एक वजह आई वह मात्र इस कारण आई क्योंकि मुसलमानों ने सीधे तौर पर कांग्रेस को समर्थन दिया ।
लेकिन एक तरफ मुसलमानों की बिकाऊ कयादत और संघ अथक परिश्रम कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर कांग्रेस आयातित विचार को पोषण दे रही है और मुसलमानों से बराबर दूरी बनाए हुए है और एक शायर को मुसलमानों का नेता बनाने की कोशिश में थक रही है जबकि ऐसा हो पाना संभव नहीं है ,वहीं जब कोई प्रभावी सूफी विचारों वाला व्यक्ति मात्र मुलाकात की बात भी करता है तो बीच में बैठे संघ से कांग्रेस की सुपारी लेकर भेजे गए एजेंट उसकी काट में लगे रहते हैं।
यदि ऐसा ही चलता रहा तो कांग्रेस का 2024 का परिणाम अभी से घोषित है और मुसलमानों को अपना वोट खराब करने की आवश्कता नहीं है ,अब गेंद कांग्रेस नेतृत्व के पाले में है वह इस सच्चाई को समझता है या चाटुकारिता के दलदल में फंसा रहकर मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखता रहता है।

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