मुबारक हो यह हिंदोस्तान है यहां मोहब्बत को हरा देना इतना आसान नहीं है,हां कुछ सरफिरे ज़रूर है जिनको धर्म के नाम पर बहकाया जा सकता है मगर मेरे देश में प्रेम की जड़ें बहुत मजबूत हैं तभी तो देखिए कोई बस्तियां जलाने का मंसूबा लेकर आता है तो सारा शहर का शहर मोहब्बत का पानी लेकर पहुंच जाता है।
ताज़ा खबर उन्नाव की है वही उन्नाव जहां महाकवि निराला की कविता परवान चढ़ती है , उन्नाव वही जहां चंद्रशेखर आज़ाद भारत भूमि को गुलामी की जंजीर से आज़ाद कराने के लिए क्रांति का बिगुल फूंकते हैं ,जी उन्नाव जहां मौलाना हसरत मोहानी इंकलाब ज़िंदाबाद का नारा बुलंद करते हैं ,उसी उन्नाव में चंद सरफिरे युवकों ने नफरत का घिनौना खेल खेला और फिर कुछ नादान लोगों ने वहीं किया जो यह सरफिरे चाहते थे बल्कि सही बात तो यह है कि इन बेवकूफ नवयुवकों का भी कोई कुसूर नहीं खेल तो कोई और खेल रहा है यह बेचारे बस मोहरे भर हैं।
देश में बेरोजगारी दर बढ़ रही है ,हर साल इनकी तादाद में वृद्धि हो रही है,सरकारी उपक्रम बिक रहे हैं यानी अवसर कम हो रहे हैं आखिर इस भीड़ को कहीं तो काम पर लगाया जाए ताकि यह सही समस्या की तरफ विचार न करें ,अपने अधिकारों के लिए लड़ाई न छेड़े तो सबसे अच्छा है धर्म के नाम पर अधर्म का पाठ पढ़ा दिया जाए फिर सब आसान है ,बानगी आपके सामने है फैसला आपको करना है।
खैर मै मूल विषय से भटक गया बात उन्नाव की थी जहां नफरत हारी और मोहब्बत जीत गई ,सिर्फ भारत में यह एक नारा नहीं है हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई,आपस में हैं सब भाई भाई आइए उन्नाव में इसे देखिए तो सही यही बसते हैं इकराम मोहम्मद फरीदी इनके पास पैसे तो बहुत नहीं हैं लेकिन प्रेम का अंबार है ,हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एकता मंच के बैनर तले हर धर्म के उत्सव में आप उन्नाव नगर में इन्हे गुलाबो के साथ देख सकते हैं यह अकेले नहीं है इनके साथ सभी धर्मों के लोग नजर आते हैं यही भारत है।आज जब बड़ा तनाव फैला हुआ था अफवाहों का बाज़ार गर्म था तो फिर मोहब्बत वाले खामोश कैसे बैठते ।
सब इकट्ठा हुए जगह तय की गई जहां सबको मिलना था , राम के असली भक्त हों या रहीम की इबादत करने वाले, जगह गुरु की शरण थी यानी गुरुद्वारा, जहां से ज्ञान मिलना है प्रेम का, सब एक साथ बैठे और तय हो गया कि हम मोहब्बत के पासदार हैं नफरत को हरगिज़ बर्दाश्त नहीं करेंगे,ईद मिलकर मनाते आये है होली में मिल कर रंग खेला है आगे भी ऐसा ही रहेगा उन्नाव नफरत को जीतने नहीं देंगे । जो काम प्रशासन को करना था उस मोहब्ब्त के सिपाहियों ने कर दिया।

ज़रा शहर काज़ी साहब पर भी बात होनी चाहिए क्योंकि उनका काम था मस्जिद के मिंबर से मोहब्बत का पैगाम सुनाने की उनका काम प्रशासन को सड़कों पर उतरने की बात करना नहीं था वह भी तब जब हालात नाज़ुक हों ऐसे में उन्हें मोहब्बत का पैग़ाम देते हुए प्रशासन से बात करनी थी उम्मीद है अब वह समझेंगे भी और समझाएंगे भी मस्जिद से होने वाला ऐलान गुरुद्वारे से हो गया है ,।

सबने निगहबानी का बेड़ा उठा लिया है नफरत को हरा दिया गया है पहले यह दिल्ली में करके दिखाया अब उन्नाव में देखिए सबक लीजिए कि देश में हम सब मिलकर नफरत को इसी तरह हरा देंगे,कहीं इकराम मोहम्मद फरीदी खड़े होंगे,कहीं रामदयाल,कहीं फादर डिसूजा तो कहीं सतनाम सिंह हम सबको इसका बेड़ा उठाना है क्योंकि मोहब्बत को जिताना है नफरत को हराना है।
सबको मोहब्ब्त मुबारक क्योंकि नफरत हार गई ।

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