देश में दोबारा भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनने के बाद से देश में मुसलमान बदले हुए सियासी समीकरण को खूब समझ गया है।  जिस तरह बिहार और उत्तर प्रदेश में गठबंधन की हार हुई, और वोटिंग पैटर्न के जो आंकड़े सामने आये उसने एक बात साफ कर दी कि गठबंधन को मुसलमानों ने भरपूर और एकजुटता के साथ मत दिया, लेकिन और लोगों ने वोट नहीं किया उत्तरप्रदेश में तो सपा बसपा के गठबंधन को मुसलमानों का लगभग 75% वोट मिला लेकिन गठबंधन को सिर्फ 15 सीट ही मिली । यहां एक बात और गौर करने की है कि बसपा को 10 सीट मिली और सपा को मात्र 5 ,सपा की 5 सीटों में भी आजम खान,एस टी हसन और शाफिकुर्रहमान बर्क मुस्लिम बाहुल्य सीटों से विजय रथ पर सवार हुए यहां तक की अखिलेश यादव भी मुस्लिम मतदाताओं की वजह अपनी सीट बचा पाए, वहीं धर्मेन्द्र यादव,डिंपल यादव और अक्षय यादव, चुनाव यादव हार्ट लैंड से हार गए ,जबकि बीएसपी के वोटर जहां एकजुट हुए और मुस्लिम वोटर के साथ खड़े हुए वहां बीएसपी ने पाला मार लिया ।यह हाल तो उत्तरप्रदेश का है वहीं बिहार में भी कुछ अलग नहीं हुआ लालू का दिया फार्मूला “एम+ वाई = सत्ता “बुरी तरह विफल रहा क्योंकि मुस्लिम तो साथ रहा मगर तेजस्वी यादव भी यादवों को अपने साथ लामबंद नहीं कर सके और न ही अन्य जातियों का वोटर इस महागठबंधन के साथ खड़ा हुआ, सीटों के बंटवारे में आरजेडी ने जिस तरह की हटधर्मिता दिखलाई उससे भी बड़ा नुक़सान हुआ और उत्तर प्रदेश की ही तर्ज पर बिहार में भी लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप ने परिणामों को परसेप्शन के माध्यम से प्रभावित किया जैसा शिवपाल यादव ने उत्तरप्रदेश में किया।

यह एक सच है कि यह सारे गठबंधन मात्र मुस्लिम वोटों को एकत्रित रखने के लिए किये गये ऐसा साबित हुआ और मुसलमानों ने ऐसा करके दिखाया भी, यहीं से भारतीय जनता पार्टी को संजीवनी मिली और उसने प्रचंड बहुमत प्राप्त कर लिया।

खैर अब पिछली बातों का कोई फायदा नहीं है अब बदले हुए परिदृश्य में देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश में मुसलमान चुपचाप तमाशा देख रहा है ,हालांकि वह अखिलेश यादव पर अब भरोसा नहीं कर पा रहा है वहीं मायावती के साथ उसका पिछला अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा ऐसे में जहां एक वर्ग सीधा बीजेपी के साथ जाने की हिमायत करता दिख रहा है,उसका मानना है कि अब तक देश का मुसलमान जो गलती करता आया है कि किसी एक राजनैतिक दल को अछूत समझा जाता रहा अब उसे सही किया जाना चाहिए और खुल कर बीजेपी के साथ जाना चाहिए, वहीं दूसरा बड़ा तबका अब असदुद्दीन ओवैसी की हिमायत में खड़ा नजर आ रहा हैउसका मानना है कि अब सीधे तौर पर हमें अपनी क़यादत खड़ी करनी चाहिए अगर ऐसा होता है तो यह कई क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान होगा, क्योंकि अब मुसलमान वोटर वोट बैंक बनने के लिए तैयार नहीं है ऐसे में यह नामुमकिन भी नहीं है।

यानी एक बात साफ है बीजेपी और AIMIM दोनों को अछूत समझा जाता रहा है जहां बीजेपी को मुस्लिम शत्रु मानते रहे हैं वहीं उवैसी को एजेंट मानते रहे हैं या ध्रुवीकरण के लिए मुसलमान ज़िम्मेदार लेकिन अब वह इस मिथक को तोड़ना चाहते हैं।

इसकी एक सीधी वजह यह है कि सभी कथित सेक्युलर पार्टियां जहां भारतीय जनता पार्टी के द्वारा सेट किए गए एजेंडे पर चुनाव लड़ी यानी हिंदुत्व चाहे वह हार्ड हिंदुत्व हो या सॉफ्ट उसने मुसलमानों को सीधा संदेश दिया कि यह दल वोट तो चाहते हैं लेकिन भागीदारी देने के पक्ष में नहीं हैं।कहीं न कहीं इन दलों के अस्तित्व पर सवालिया निशान भी इसी लिए लगा है कि इनकी अपनी कोई विचारधारा नहीं है यह दूसरे के द्वारा चलाए गए अभियान के पिछलग्गू मात्र हैं तो इनके साथ जाने से बेहतर सीधे उसके साथ जुड़ा जाय जिसकी अपनी विचारधारा हो।

ऐसे में उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी का अपने पतन की ओर बढ़ना और बिहार में आरजेडी का कमजोर होते जाना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में शिवपाल यादव की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी तब संभव है जब वह अपनी नीतियों पर काम करें न की उसी प्लान पर जिसे बीजेपी ने सेट किया और कांग्रेस समेत सभी दल उसपर लग गए। शिवपाल को मुस्लिम वर्ग को अपने साथ खड़ा करने में बहुत दिक्कत नहीं होगी, वहीं उन्हें पिछड़े वर्ग को मजबूती के साथ खुद से जोड़ना होगा यदि वह इस दिशा में काम करते हैं तो कुछ हो सकता है ,क्योंकि जहां तक स्वर्ण वोटर की बात है तो वह बीजेपी के साथ है और इतनी आसानी से उसे हटाना मुमकिन नहीं है तो अपनी शक्ति को इनके पीछे भाग कर क्षीण करना समझदारी नहीं होगी, इसकी तुलना में ओबीसी कार्ड पर मजबूत काम होना चाहिए और सभी छोटी बड़ी पिछड़ी जातियों को लामबंद कर नया समीकरण तैयार करना चाहिए, वहीं मुसलमानों को भी खुल कर साथ लाना होगा

बिहार में तो कांग्रेस विकल्प बनती दिख रही है

अगर उत्तरप्रदेश में भी इस तरह काम न हुआ तो कांग्रेस को मजबूत होने में अधिक वक़्त नहीं लगेगा ,हालांकि अभी मुस्लिम पेंडुलम की तरह है और मीम से लेकर बीजेपी तक के विषय में सोच रहा है ,यह पूरे देश के मुसलमानों का हाल है लेकिन उत्तरप्रदेश में शिवपाल को मौका मिल सकता है लेकिन उसके लिए उन्हें एम+ओ+डी यानी मुस्लिम ओबीसी और दलित का नया समीकरण बनाना होगा, देखना यह है कि सॉफ्ट हिंदुत्व से नाता जोड़ेंगे शिवपाल या समाजवाद की धुरी पकड़ेंगे।

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